US Presidential Election 2024: अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के नतीजे घोषित किए जा चुके हैं. रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार चुनाव जीत कर अमेरिका के राष्ट्रपति बनेंगे. डोनाल्ड ट्रंप ने 279 इलेक्टोरल वोट हासिल किए हैं. वहीं उनकी प्रतिद्वंदी और डेमोक्रैटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस ने 219 इलेक्टोरल वोट जीते हैं. ट्रंप ने अमेरिका के सात में से चार स्विंग स्टेट्स में जीत हासिल कर ली है. इनमें जॉर्जिया, नॉर्थ कैरोलाइना, विस्कॉन्सिन और पेन्सिलवेनिया शामिल हैं.




अमेरिका में कुल 538 इलेक्टोरल कॉलेज वोट हैं, बहुमत के लिए 270 वोट की ज़रूरत होती है. जॉर्जिया और नॉर्थ कैरोलाइना में 16-16 इलेक्टोरल वोट हैं. जबकि पेन्सिलवेनिया में सबसे अधिक 19 इलेक्टोरल वोट हैं. इन तीन के अलावा अन्य स्विंग स्टेट्स नेवाडा, मिशिगन और एरिजोना हैं. 


दुनिया भर के नेताओं और राष्ट्राध्यक्षों ने ट्रंप को बधाईयां दी, लेकिन साल 2021 में जब डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता छोड़ा था तो शायद ही किसी को इसकी उम्मीद थी कि ट्रंप एक बार फिर से देश के राष्ट्रपति बनेंगे. अमेरिकी राजनीति की परख रखने वाले सियासी पंडितों ने तो यहां तक ऐलान कर दिया था कि ट्रंप के राजनीतिक पारी का सूर्य अस्त हो गया है. लेकिन क्या वजहें रहीं जो डोनाल्ड ट्रंप ने फिर से अमेरिका की सत्ता पर अपना कब्जा जमा लिया ? आइए जानतें हैं कि वह कौन सी वजहें रहीं जिसने ट्रंप को एक बार फिर से जीत का स्वाद चखा दिया. 


बेरोजगारी का मुद्दा


जो बाइडेन की सरकार में महंगाई और बेरोजगारी सबसे बड़े मुद्दे रहे. इसी साल की शुरुआत में अमेरिका की बेरोजगारी दर दो वर्षों में सबसे अधिक हो गई थी. अमेरिकी श्रम विभाग के मुताबिक, इस साल जनवरी में बेरोजगारी दर 3.7% से बढ़कर 3.9% हो गई थी. इसके साथ ही जो बाइडेन के सत्ता संभालने की शुरुआती सालों में महंगाई ने नागरिकों की कमर तोड़ दी. इसका नुकसान ये हुआ कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त हो गई. 


थिंक टैंक इमेजिन इंडिया के प्रेसिडेंट और 'कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप की राजनीति' पर किताब लिखने वाले रॉबिन्द्र सचदेव ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में कहा, "डोनाल्ड ट्रंप ने युवाओं का टारगेट किया. अमेरिका के युवाओं में अभी ऐसा स्थिति आ चुकी है वह बेरोजगारी को लेकर हताश है. जो बाइडेन को लेकर युवाओं में वह उत्साह नहीं था. ट्रंप के लिए युवाओं में एक मैसेज गया कि वह कड़े फैसले ले सकते हैं. ट्रंप ने इस इमेज को प्रोजेक्ट कर युवाओं को अपनी ओर खींचा."


जंग न चाहने वाला उम्मीदवार के तौर पर ट्रंप की छवि


अमेरिका लंबे वक्त से जंग के बीच फंसा हुआ है. कभी अफगानिस्तान, कभी इराक और फिर सीरिया में अमेरिकी सेना की लंबी तपस्या ने अमेरिकी वोटर्स के बीच में खीझ सा पैदा कर दिया था. इसके बाद रूस-यूक्रेन जंग में अमेरिका का फंस जाना भी नागरिकों को रास नहीं आया. इस सब्र की इन्तेहां तो तब हो गयी जब अमेरिका ने इजरायल को हमास और फिलिस्तीन के खिलाफ खुले तौर पर छूट दे दी. इस जंग को लेकर भी जो बाइडेन की खूब फजीहत हुई. 


इस बीच जो बाइडेन ने खुद की छवि को जंग न चाहने वाले नेता के तौर पर विकसित कर ली. रॉबिन्द्र सचदेव कहते हैं, "गाजा जंग को लेकर ट्रंप पहले से ही कहते आ रहे थे कि अगर वह राष्ट्रपति होते तो इस जंग को शुरू ही नहीं होने देते. अब चुनाव प्रचार के दौरान भी उन्होंने सीधे तौर पर ये भी कहा कि जब वह राष्ट्रपति बनेंगे तो रूस-यूक्रेन और इजरायल बनाम हमास के जंग को रोक देंगे. लोगों पर इसका असर पड़ा. क्योंकि ट्रंप ने कुछ वाजिब बातें भी कहीं थीं. उन्होंने कहा था कि हम दूसरे देश में जाकर क्यों जंग लड़ते हैं जबकि हमें खुद अपने देश में सुधार करना चाहिए. इसमें सबसे अच्छी बात ये रही कि वह अमेरिकी नागरिकों में उनका 'अहम' जगाने में कामयाब रहे. मसलन मेक अमेरिका ग्रेट अगेन सरीखे नारों से."


माइग्रेशन के मुद्दा


बाइडन सरकार के शुरुआती तीन साल में अमेरिका में अवैध शरणार्थियों का आंकड़ा बढ़कर 63 लाख तक पहुंच चुका था. पूरे चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने बाइडेन प्रशासन के खिलाफ इस मुद्दे को हथियार की तरह इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा कि ये बाइडेन सरकार की खराब इमीग्रेशन नीति की वजह से हो रहा है.



ट्रंप ने अमेरिकियों से वादा किया कि वो अमेरिका और मेक्सिको के बीच उस दीवार को बनाएंगे जिसका वादा पिछले कार्यकाल में कर चुके हैं. रॉबिन्द्र सचदेव कहते हैं, ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका में बिना दस्तावेज़ के रहने वाले प्रवासियों को वापस भेजेंगे. ये सीधे-सपाट वादे भी नागरिकों की दिलों में घर कर गए. ट्रंप ने इस बात पर जोर दिया था कि हजारों मील दूर के जंग में शामिल होने से अच्छा की हम अपनी सरहदों की हिफाजत करें."


वफादार वोटर्स ने ट्रंप का दिया साथ


डोनाल्ड ट्रंप की जीत के सबसे धाकड़ योद्धा रहे उनके चाहने वाले. अमेरिका में बड़ी संख्या में डोनाल्ड ट्रंप की फैन फॉलोइंग है. चुनाव के दौरान ये एक फौज की तरह काम करती रही. ट्रंप के समर्थकों की सबसे बड़ी खूबी रही कि उन्होंने हमेशा उनका साथ दिया. बुरे वक्त में जब डोनाल्ड ट्रंप ने अदालतों में मुकदमे लड़े तब ये समर्थक हो उनके साथ थे.  इसके अलावा जब डोनाल्ड ट्रंप को गोली लगी थी कि तब उनके चाहने वालों के बीच उनका क्रेज और भी बढ़ गया था.


रेसिस्ट और अल्पसंख्यक विरोधी के तमगे से ट्रंप को मिली राहत


डोनाल्ड ट्रंप की छवि अश्वेत विरोधी की बनी रही है. जब पहली बार 2016 में राष्ट्रपति बने तो उन्हें देश भर में 8 प्रतिशत अश्वेत वोटर्स के वोट मिले. इस बार लगभग 10 में से 8 अश्वेत मतदाताओं ने कमला हैरिस का समर्थन किया. लेकिन ये आंकड़ा पिछले चुनाव के मुकाबले ट्रंप के पक्ष में है.साल 2020 चुनाव में जो बाइडेन का समर्थन करने वाले लगभग 10 में से 9 अश्वेत मतदाता थे. वहीं साल 2020 चुनाव में लगभग 10 में से 6 हिस्पैनिक मतदाताओं ने जो बाइडेन को वोट दिया था. लेकिन इस बार ये आंकड़ा 50-50 में बंट गया. 


विदेश मामलों के जानकार रॉबिन्द्र सचदेव कहते हैं, "लैटिन मूल के जो लोग अमेरिका में हैं, उसकी मर्द आबादी ट्रंप के पक्ष में चली गई. अफ्रीकन-अमेरिकी वोट बैंक को अपने लिए बदलाव की उम्मीद थी. उनकी उम्मीद भी डेमोक्रैटिक पार्टी से थी लेकिन वह बदलाव की आस में थक हार कर दूसरी ओर चले गए. हालांकि इसका कुछ हिस्सा ही ट्रंप के पक्ष में आया लेकिन छोटी-छोटी बातें ही बड़ी जीत दिलाती है."


मुस्लिम-अमेरिकी या अरब-अमेरिकी हमेशा से पारंपरिक तौर पर डेमोक्रैटिक पार्टी को ही वोट देते आए हैं, लेकिन पश्चिम एशिया में जंग की जो लपटें उठीं, उस वजह से इन वोटर्स ने तय किया वह बाइडेन-हैरिस को 'सजा' देंगे. इन वोटर्स ने ट्रंप को वोट नहीं दिया लेकिन कमला हैरिस को वोट नहीं दिया, इसका सीधा फायदा ट्रंप को मिला.


एलन मस्क और सोशल मीडिया का कमाल


अमेरिकी चुनाव में अरबपति कारोबारी एलन मस्क की चर्चा खूब रही. मस्क ने खुले तौर पर डोनाल्ड ट्रंप को समर्थन दिया है. खासकर स्विंग स्टेट्स में जहां ट्रंप थोड़ा पिछड़ रहे थे. उन्होंने 7 स्विंग स्टेट के लिए ऐलान किया था कि वह हर रोज किसी एक वोटर को 1 मिलियन डॉलर गिफ्ट के तौर पर देंगे. पेन्सिलवेनिया राज्य इसमें सबसे अहम रहा. ट्रंप ने यहां कमला हैरिस को करीब 3 प्रतिशत वोट से हराया.


रॉबिन्द्र सचदेव कहते हैं, "एलन मस्क के पैसे का बहुत असर नहीं कह सकते हैं. लेकिन ये अहम कड़ी हो सकती है. जिस तरह से पेन्सिलवेनिया के हर रजिस्टर वोटर को एक ऑनलाइन पीटिसन साइन करने के लिए 100 डॉलर की रकम मुआवजे के तौर पर दी गई, वह काफी कारगर रहा."


रॉबिन्द्र सचदेव कहते हैं, "हालांकि सबसे ज्यादा फायदा सोशल मीडिया पर ट्रंप के पक्ष में माहौल बनने से हुई. इसका सीधा श्रेय एलन मस्क को जाता है. आपके साथ ऐसा इंसान है जिसके हाथ में एक्स जैसे प्लेटफॉर्म हैं तो फिर सोशल मीडिया पर कैंपेन करने का भी फायदा डोनाल्ड ट्रंप को मिल गया."



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