अमेरिका में 3 नवंबर यानी कल राष्ट्रपति चुनाव होना है. इस बार रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार और वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन कड़ी टक्कर देते नजर आ रहे हैं. अमेरिका के इतिहास में अब तक ऐसा 16 बार हो चुका है जब जनता ने अपने राष्ट्रपति को दूसरी पर पद पर बने रहने का मौका दिया है.


कैसे होता है राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चयन


भारतीय चुनाव व्यवस्था के उलट अमेरिकी वोटर्स राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चयन करते हैं. दोनों प्रमुख पार्टियां रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी राष्ट्रपति उम्मीदवार के चयन को लेकर भी जनता के बीच जाती हैं. राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने की चाहत रखने वाले लोगों को हर राज्य में प्राइमरी और कॉकस इलेक्शन में हिस्सा लेना होता है. जो व्यक्ति सभी राज्यों में प्राइमरी और कॉकस चुनाव जीतता है, उसे निश्चित संख्या में डेलिगेट्स का भी समर्थन हासिल करना होता है.  इसके बाद ही वह पार्टी का औपचारिक उम्मीदवार बनता है.


इलेक्टोरल कॉलेज सिस्टम से चुना जाता है राष्ट्रपति


अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में मतदाता सीधे राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को वोट नहीं देते हैं. हर राज्य के निवासी इलेक्टर्स चुनते हैं. हर राज्य में एक निश्चित संख्या में इलेक्टोरल कॉलेज वोट होते हैं. यह राज्य की जनसंख्या पर निर्भर करता है. कुल 538 वोट होते हैं जिनमें से 270 या फिर उससे ज्यादा वोट जीतने के लिए हासिल करने होते हैं. जिस उम्मीदवार को 270 इलेक्टर्स का समर्थन मिल जाता है वह अमेरिका अगला राष्ट्रपति बनता है.  538 इलेक्टर्स में 435 रिप्रेजेंटेटिव्स, 100 सीनेटर्स और तीन डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया के इलेक्टर्स होते हैं.


राष्ट्रपति बनने के लिए योग्यता


अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति अमेरिका में ही जन्मा होना चाहिए. उसकी उम्र कम से कम 35 साल होनी चाहिए. अमेरिकी राष्ट्रपतियों की फेहरिस्त में सबसे कम उम्र में यह पद संभालने वाले थियोडर रूजवेल्ट थे जिन्हें 25वें राष्ट्रपति विलियम मैकिनले की हत्या के बाद यह जिम्मेदारी मिली थी. राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़कर व्हाइट हाऊस पहुंचने वाले जॉन एफ कैनेडी थे जो 43 वर्ष की आयु में अमेरिका के सुप्रीम कमांडर बन गए थे.


इलेक्टोरल वोट्स नहीं पर ऐसे होगा फैसला


अगर किसी भी प्रत्याशी को बहुमत से इलेक्टोरल वोट्स नहीं मिलते हैं तो अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स करते हैं. हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव उन तीन उम्मीदवारों को चुनता है जिसने ज्यादातर इलेक्टोरल वोट्स जीते हैं. प्रत्येक राज्य को एक वोट का अधिकार दिया जाता है. जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा राज्यों का वोट हासिल करता है वह राष्ट्रपति चुना जाता है. ऐसा केवल साल 1824 में अमेरिकी चुनाव में हुआ था जब इलेक्टोरल वोट बंट गए थे.अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत हमेशा उस उम्मीदवार की नहीं होती है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा वोट आते हैं.


पॉपुलर वोट ज्यादा मिलने से नहीं पड़ता है फर्क


अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2016 में डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंकटन को करीब 29 लाख ज्यादा लोगों ने वोट किया लेकिन वह चुनाव हार गईं. इसकी वजह यह है कि डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में इलेक्टोरल वोट ज्यादा पड़ा. है. ऐसा 2000 में जॉर्ज डब्ल्यू बुश के साथ हुआ था. वह भी डेमोक्रेटिक उम्मीदवार अलगोर के मुकाबले पॉपुलर वोट में पिछड़ गए थे लेकिन इलेक्टोरल वोट उन्हें 266 के मुकाबले 271 मिले थे. 19वीं शताब्दी में जॉन क्विंसी एडम्स, रदरफोर्ड बी हायेस और बेंजामिन हैरिसन भी पॉपुलर वोट में पिछड़ने के बाद इलेक्टोरल वोट के जरिए जीते थे.


सबसे महंगा अमेरिकी चुनाव


अमेरिका में इस वर्ष हो रहा राष्ट्रपति चुनाव देश के इतिहास का सबसे महंगा चुनाव बनने जा रहा है. इस चुनाव में पिछले राष्ट्रपति चुनाव के मुकाबले दोगुनी राशि खर्च होने का अनुमान है. इस बार करीब 14 अरब डॉलर खर्च होने की उम्मीद है.


बिडेन को मिला ज्यादा फंड


बिडेन दो साल में 1 अरब अमरीकी डॉलर जुटाने वाले पहले राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने की राह पर हैं. उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर बढ़त हासिल है. अकेले अगस्त और सितंबर में बिडेन ने 700 मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक जुटाए. वहीं ट्रंप ने दानकर्ताओं से 59.6 करोड़ डॉलर का कोष चुनाव प्रचार के लिए जुटाया है.


इतिहास का सबसे बूढ़ा राष्ट्रपति चुनेगा अमेरिका


अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के 225 साल से अधिक पुराने इतिहास में पहली बार मुकाबला दो सबसे बूढ़े उम्मीदवारों के बीच है. व्हाइट हाउस के लिए दूसरी पारी हासिल करने में जुटे डोनाल्ड ट्रंप 74 साल के हैं. वहीं राष्ट्रपति पद की रेस में उनके सामने खड़े जो बाइडन 77 साल के हैं. यानी जॉज वाशिंगटन से लेकर अब तक हुए राष्ट्रपतियों की कतार में 2020 की चुनावी दौड़ का विजेता अमेरिका का सबसे बूढ़ा सुप्रीम कमांडर होगा.


बेहद अहम हैं भारतीय-अमेरिकी वोटर्स की भूमिका


अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2020 में भारतीय-अमेरिकियों की भूमिका बेहद अहम है. भारतीय मूल के वोटरों के अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खुद को भारत का सच्चा दोस्त बताने में जुटे हैं. वहीं पारंपरिक रूप से भारतीय अमेरिकी समुदाय में पैठ रखने वाली डेमोक्रेटिक पार्टी अपने इस वोटबैंक को बचाने के लिए भरपूर कोशिश कर रही है. यहां तक कि डेमोक्रेट खेमे ने कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है जो भारतीय मूल की हैं.



US Presidential Elections 2020: इतिहास का सबसे बूढ़ा राष्ट्रपति चुनेगा अमेरिका, उप-राष्ट्रपति की भूमिका भी होगी काफी अहम


US Presidential Elections 2020: इस बार बेहद अहम हैं भारतीय-अमेरिकी वोटर्स की भूमिका, ट्रंप-बाइडेन ने लगाया पूरा दम