अकाल से जूझते भारत को गेहूं न देने की धमकी देने वाला अमेरिका आज पीएम मोदी के लिए रेड कॉर्पेट क्यों बिछा रहा है?
कभी अमेरिका ने भारत को गेंहू न देने की धमकी दी थी. काफी लंबे समय तक अमेरिका और भारत के बीच के रिश्ते में खटास रही, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था बेहतर होने के साथ अमेरिका ने अच्छे रिश्ते बनाने शुरू किए.
1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में मिले घावों के दर्द से भारत उबरा नहीं था कि एक और दुश्मन पाकिस्तान ने 1965 में हमला बोला दिया. भारत का दुर्भाग्य सिर्फ यही नहीं था. इसी वक्त भीषण अकाल भी बड़ी चुनौती बनकर आ चुका था. सदियों से गुलामी झेल रहे भारत को आजादी मिलने के बाद अभी कई इम्तेहान देने बाकी थे. 1965 के युद्ध के समय देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे. पाकिस्तान को लगा कि एक दुबला-पतला शख्स और मीठी आवाज बोलने वाला नेता तुरंत सरेंडर कर देगा. अमेरिकी टैकों के दम पर घमंड से चूर पाकिस्तान ने कभी सोचा भी नहीं था कि भारत की सेना लाहौर तक पहुंच जाएगी.
दरअसल 1965 में पैटन टैंकों का टूटना एक तरह से अमेरिकी घमंड का भी चकनाचूर होना था जिसे उसने पाकिस्तान की सेना को दिए थे. युद्ध में पाकिस्तान को खदेड़ चुके भारत को अमेरिकी चौधराहट का सामना करना था. अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से फरमान आया युद्ध को रोक दो नहीं तो गेहूं देना बंद कर दिया जाएगा.
भारत को अमेरिका की ये धमकी चुभ गई. लाल बहादुर शास्त्री ने इस धमकी को नकार दिया. 1965 में दशहरे के दिन रामलीला मैदान में शास्त्री ने रैली की. इसी रैली में 'जय जवान-जय किसान' का नारा दिया गया, साथ ही लाल बहादुर शास्त्री ने जनता से एक वक्त का खाना छोड़ने की भी अपील की. वो खुद भी एक वक्त का खाना नहीं खाने लगे.
जब भारतीय 'जय जवान, जय किसान' के नारे लगा रहे थे, तब पूसा इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक अनाज की कमी को दूर करने के लिए बीजों की खेप की तैयारी कर रहे थे.
ये नारा इतना ताकतवर हुआ कि 1968 तक हरित क्रांति की लहर पूरे देश में दौड़ पड़ी. भारत एक ऐसे देश में बदल गया जहां पर अनाजों का ढेर लग गया और कॉलेज, स्कूल और सिनेमा घरों में अनाजों का स्टोर किया जाने लगा.
आज भारत दुनिया की इकोनॉमी में तेजी से उभरने वाला देश बन चुका है. भारत की जीडीपी के 2028 तक जापान और जर्मनी से आगे निकलने की उम्मीद है. भारत दुनियाभर में सांतवा सबसे बड़ा निर्यातक देश बन चुका है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के बुनियादी ढांचे में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है. बेहतर अर्थव्यवस्था वाले एक गरीब देश ने विज्ञान, कूटनीति और राजनीतिक साहस के दम पर अपनी पहचान बना ली है, और आज ये देश अमेरिका जैसी हस्ती का महत्वपूर्ण सामरिक साझेदार बनने की राह पर खड़ा है.
भारत-अमेरिका की दोस्ती
दोनों ही देशों ने औपनिवेशिक सरकारों के खिलाफ संघर्ष कर आजादी हासिल की है. एक स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर दोनों ही देशों ने शासन की लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाया, लेकिन आर्थिक और वैश्विक संबंधों के क्षेत्र में भारत- अमेरिका दोनों का नजरिया अलग था. इस वजह से लंबे समय तक दोनों देशों के संबंधों में कोई प्रगति नहीं हुई. पिछले कुछ साल भारत और अमेरिका के बीच नजदीकी बढ़ने के साल थे.
आधुनिक भारत और अमेरिका के बीच अंतरराष्ट्रीय संबंधों की शुरुआत अमेरिकी राष्ट्रपति हेनरी ट्रूमैन के समय 1949 में ही हो गई थी. ये वो दौर था जब अमेरिका पूंजीवादी विचारधारा को लेकर चल रहा था. उस समय नेहरू की विचारधारा समाजवादी थी. नतीजा ये हुआ कि भारत अमेरिका के बीच का सम्बन्ध महज एक औपचारिकता का ही रह गया.
1954 - अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ मिलकर एक ‘सेंटो’ नामक संस्था की स्थापना की, भारत को ये बात पंसद नहीं आई. भारत ने सोवियत रूस के साथ रिश्ते मजबूत कर लिए. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत ने सोवियत संघ के खिलाफ शीत युद्ध में अमेरिका का साथ देने से इनकार कर दिया.
साल 1961 में उन्होंने भारत को गुटनिरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा बनाया जो कि तटस्थ विकासशील देशों का समूह था. इसी दौरान भारत ने शीत युद्ध से अपने आप को अलग रखने की बात कही. इसके बाद 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका ने प्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान का साथ देने की कोशिश की. इस लड़ाई में भारत की जीत हुई, तब अमेरिका को लगा कि दक्षिणी एशिया में भारत बड़ी शक्ति है. उसने भारत के साथ रिश्ते मजबूत करने चाहे.
1991 में सोवियत रूस अलग हुआ. इसके बाद भारत और अमेरिका के संबंध सुधरने लगे. भारत और अमेरिका की रिश्तों में कई उतार-चढ़ाव आये. 90 के दशक में भारत एक उभरती अर्थव्यवस्था बन रहा था. 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण किया, तब अमेरिका ने इसका खुले तौर पर विरोध किया. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत से सभी रिश्तों को ख़त्म करने की धमकी दी थी. लेकिन 9/11 आतंकी हमले के बाद अमेरिकी की भी आंखें खुल गईं. तब उसे आतंकवाद के दर्द का अहसास हुआ जो वर्षों से भारत झेल रहा था.
दूसरी ओर एशिया में चीन भी एक बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है और उसका सामना करने के लिए अमेरिका को भारत की जरूरत महसूस हुई.
भारत-अमेरिका, बिगड़ने से लेकर सुधरने तक की कहानी
साल 1974 में भारत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सफल परमाणु परीक्षण किया. इससे अमेरिका सहित पूरी दुनिया चौंक गयी. उस समय तक भारत को छोड़ कर संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थाई सदस्यों ने ही इस तरह का न्युक्लियर परमाणु परीक्षण किया था. इसके बाद अमेरिका ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए. अमेरिका ने परमाणु सामग्री और ईंधन आपूर्ति को पूरी तरह से बंद कर दिया. इससे भारत और अमेरिका के संबध खराब हो गए.
18 मई 1974 को पोखरण परमाणु का सफल परीक्षण किया गया और भारत के पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान दोनों में खलबली मच गई. ये वो समय था जब भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए जाने लगे, लेकिन भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर बेहतर बनने लगी. भारत और अमेरिका के बीच अंतरराष्ट्रीय संबंध सामान्य तरीके से ही चलते रहे लेकिन कड़वाहट खत्म नहीं हुई. लेकिन जैसे -जैसे भारत की अर्थव्यवस्था बेहतर हुई अमेरिका ने खुद ही खटास दूर की. नीचे इसकी पूरी टाइमलाइन समझिए:
1 जनवरी, 1978: राष्ट्रपति कार्टर का भारत दौरा
अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर भारतीय राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी और प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई से मिलने और संसद को संबोधित करने के लिए तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर भारत आए.
10 मार्च, 1978: अमेरिका ने परमाणु अप्रसार अधिनियम लागू किया
कार्टर प्रशासन ने परमाणु अप्रसार अधिनियम लागू किया, जिसके तहत अप्रसार संधि में शामिल नहीं हुए देशों को सभी परमाणु सुविधाओं के निरीक्षण की अनुमति देने की जरूरत होती है. भारत ने इनकार कर दिया, और अमेरिका ने भारत को सभी परमाणु सहायता समाप्त कर दी.
28 जुलाई, 1982: इंदिरा गांधी की अमेरिका यात्रा के बाद संबंध सुधरे
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दोनों देशों के तनावपूर्ण संबंधों को सुधारने के लिए राजकीय यात्रा के दौरान राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से मुलाकात की. गांधी ने व्हाइट हाउस में अपने भाषण में अमेरिका और भारत के बीच मतभेदों का जिक्र किया और उसे दूर करने की बात कही. अमेरिका ने पूरे दो साल तक इस मामले पर चुप्पी साधे रखी. दो साल बाद उपराष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश ने भारत की एक उच्च स्तरीय यात्रा की.
पोखरण-2 मई 1998
1998 तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने पोखरण में दूसरा परमाणु परीक्षण किया. इस परीक्षण के बाद इजराइल को छोड़कर पूरी दुनिया भारत के खिलाफ उठ खड़ी हुई और अमेरिका सहित कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिया. अमेरिका ने भारत से अपने राजदूत को भी वापस बुला लिया था. इसके बाद कुछ समय तक दोनों देशों के बीच के रिशते काफी खराब दौर से गुजरे.
3 मार्च, 1999: कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच झड़प
पाकिस्तानी सेना ने भारत प्रशासित कश्मीर में घुसपैठ की. भारत ने बदले में हवाई हमले शुरू किए, और सशस्त्र संघर्ष जुलाई की शुरुआत तक जारी रहा. राष्ट्रपति क्लिंटन ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को चार जुलाई को आपातकालीन बैठक के लिए बुलाया. इसके बाद शरीफ ने नियंत्रण रेखा से पाकिस्तानी बलों को वापस बुला लिया.
20 मार्च, 2000: क्लिंटन की भारत यात्रा
राष्ट्रपति बिल क्लिंटन 1978 के बाद पहली अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर भारत यात्रा पर आए. इस यात्रा से 1998 के भारतीय परमाणु हथियार परीक्षणों के बाद के अलगाव का अंत हो गया. भारत-अमेरिका यात्रा के दौरान विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंच भी स्थापित किया गया. जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ने लगी, अमेरिका -भारत के संबध सुधरने लगे.
22 सितम्बर 2001: अमेरिका ने भारत पर लगे प्रतिबंधों को हटाया
राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने 1998 के परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर लगाए गए सभी अमेरिकी प्रतिबंधों को हटा दिया. अधिकांश आर्थिक प्रतिबंधों को उनके लागू होने के कुछ महीनों के भीतर कम कर दिया गया था.
6 सितम्बर 2008: परमाणु ऊर्जा नियामक ने भारतीय परमाणु व्यापार की अनुमति दी
परमाणु ऊर्जा नियामक ने भारत को तीन दशकों में पहली बार परमाणु व्यापार में शामिल होने की अनुमति दी. जानकारों के मुताबिक यह सौदा भारत की आर्थिक वृद्धि और ऊर्जा की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में काफी सुधार आया.
साल 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिका ने संयुक्त सत्र को संबोधित कर भारत और अमेरिका के बीच नए संबंधो की नींव रखी. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय में भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में काफी सुधार आया. 2008 में भारत और अमेरिका के बीच सिविल न्यूक्लियर डील ने भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को और भी मजबूत किया.
जो बाइडन प्रशासन में भारत अमेरिका के रिश्ते
जो बाइडेन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति हैं और कमला देवी हैरिस देश की पहली महिला और पहली भारतीय और अफ्रीकी-अमेरिकी उपराष्ट्रपति बनाई गईं. बाइडन और हैरिस ने 20 जनवरी 2021 को पद की शपथ ली थी. ऐसे कई फैक्टर हैं जिनसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था, इसकी सेहत और इसकी सरकार के नीतिगत विकल्प भारत पर भी प्रभाव डालते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने 24 सितंबर, 2021 को संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जोसेफ आर. बाइडेन के साथ पहली बार मुलाकत की थी. दोनों नेताओं ने इस मुलाकात पर भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी और द्विपक्षीय सहयोग को और मजबूत करने की क्षमता की समीक्षा की थी.
पेरिस जलवायु समझौता इसका एक उदाहरण है. बाइडन ने पेरिस जलवायु समझौते में फिर से शामिल होने का वादा किया. इस समझौते से भारत जैसे देशों को तकनीकी और वित्तीय दोनों तरह की भारी चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकती है.
27 अक्टूबर 2020 को भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका ने बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट – बीईसीए पर हस्ताक्षर किए. इस पर 2+2 वार्ता के तीसरे दौर के दौरान हस्ताक्षर किए गए थे.
बीईसीए का मतलब बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट है. यह भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय और अमेरिकी रक्षा विभाग की राष्ट्रीय भू-स्थानिक-खुफिया एजेंसी के बीच भू-स्थानिक सहयोग पर एक समझौता है. यह दोनों देशों को सैन्य जानकारी साझा करने और अपनी रक्षा साझेदारी को मजबूत करने में सक्षम करेगा.
बिजनेस ले लेकर निवेश तक, अमेरिकी सरकार का भारत पर असर
आर्थिक संबंध: 2017 -18 के बाद से भारत और अमेरिका के बीच व्यापार में थोड़ी कमी आई थी. बाइडन प्रशासन के तहत अमेरिका के साथ भारत का व्यापार उबरा है.
ट्रेड सरप्लस : भारत का अमेरिका के साथ हमेशा ट्रेड सरप्लस (आयात से अधिक निर्यात) रहा है. ट्रेड सरप्लस 2001-02 में 5.2 बिलियन अमरिकी डॉलर से बढ़कर 2019-20 में 17.3 बिलियन अमरिकी डॉलर हो गया है. 2017-18 में ट्रेड सरप्लस 21.2 अरब डॉलर पर पहुंच गया था.
2019-20 में भारत ने अमेरिका को 53 बिलियन अमरिकी डॉलर के सामान का निर्यात किया .
निवेश : अमेरिका भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का पांचवां सबसे बड़ा स्रोत है. भारत में सभी विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में भी अमेरिका की हिस्सेदारी एक तिहाई है.
एच1-बी वीजा मुद्दा: एक अमेरिकी राष्ट्रपति एच1-बी वीजा मुद्दे को कैसे देखते हैं, यह किसी भी अन्य देश के युवाओं की तुलना में भारतीय युवाओं पर ज्यादा असर करता है. राष्ट्रपति ट्रम्प ने "अमेरिका फर्स्ट" की अपनी नीति का हवाला देते हुए वीजा व्यवस्था कमी कर दी. इससे भारत को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा था.
हाल में हुए भारत-अमेरिका के बीच अहम दौरों पर एक नजर
- फरवरी 2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत का दौरा किया था. यह ट्रंप का पहला भारत दौरा था. इस यात्रा में दोनों देशों ने मुख्य रूप से रणनीतिक संबंधों और रक्षा में द्विपक्षीय संबंधों को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने की बात की थी.
- सितंबर 2019 में पीएम मोदी ने ह्यूस्टन का दौरा किया. उन्होंने ह्यूस्टन एनआरजी स्टेडियम में 50 हजार अमेरिकी-भारतीयों को संबोधित किया. राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ उन्होंने टाइगर ट्रायम्फ अभ्यास की शुरुआत की. इसका मकसद सैन्य सहयोग बढ़ाना था.
- जुलाई 2009 में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की भारत यात्रा पर आए. इस दौरान एक "रणनीतिक वार्ता" की शुरुआत की गई. सामरिक वार्ता का पहला दौर जून 2010 में वाशिंगटन डीसी में आयोजित किया गया था. इसके बाद जुलाई 2011 में नई दिल्ली में दूसरा दौर आयोजित किया गया था. विदेश मंत्री ने वार्ता के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया.
- अमेरिकी विदेश मंत्री ने अमेरिका की ओर से वार्ता का नेतृत्व किया. सामरिक वार्ता की तीसरी बैठक जून 2012 में वाशिंगटन में हुई.
अमेरिका क्यों सुधार रहा भारत के साथ संबंध- दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि अमेरिका-भारत रक्षा प्रौद्योगिकी ने अपने लक्ष्यों को अभी तक हासिल नहीं किया है. दोनों ही देश आपसी सहयोग चाहते हैं. भारत हमेशा से स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी पर जोर देता रहा है.
आजादी के बाद रूस भारत के साथी के तौर पर उभरा . जिससे अमेरिका और भारत के बीच गतिरोध पैदा हुआ. अमेरिका को कहीं न कहीं ये डर है कि रूस का भारत को समर्थन दूसरे एशियाई देशों के बीच उसके लिए कोई खतरा न पैदा कर दे. अमेरिका ने शुरू से ही भारत को एक ताकतवर एशियाई देश माना है. हाल ही में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की तारीफ की थी.