लंदन: ब्रिटेन में प्रत्यर्पण (डिपोर्टेशन) से जुड़ी सुनवाई के दौरान विजय माल्या के बचाव पक्ष ने दावा किया कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अगुवाई में बैंकों के समूह ने शराब कारोबारी माल्या की उस पेशकश को ठुकरा दिया था जिसमें उसने कर्ज की करीब 80 फीसदी राशि लौटाने की बात की थी.
इस पर भारत सरकार की ओर से दलील पेश कर रही ‘क्राउन प्रोसेक्यूशन सर्विस’ (सीपीएस) ने कहा कि ऐसे प्रस्ताव को ठुकराने का कारण यह था कि बैंकों को पता था कि पूरे बकाये के भुगतान के लिए माल्या के पास साधन हैं.
माल्या की वकील क्लेयर मोंटगोमरी ने सवाल किया कि क्या 80 फीसदी पैसे वापस करने की उनके मुवक्किल की पेशकश को एक दिन बाद ही बैंकों द्वारा ठुकराया जाना चाहिए था.
ब्रिटेन की वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत में यह सुनवाई चल रही है. इस सुनवाई का फैसला तय करेगा कि माल्या को वापस भारत भेजा जाना चाहिये या नहीं. माल्या पर 9,000 करोड़ रुपये के गबन और बैंकों के साथ धोखाधड़ी के मामला बनता है.
माल्या के बचाव में बैंकिंग विशेषज्ञ को एक गवाह के तौर पर पेश किया गया. बैंकिंग विशेषज्ञ पॉल रेक्स ने अपनी दलील में इस बात पर जोर दिया कि वास्तव में माल्या का ‘धोखाधड़ी’ करने का कोई इरादा नहीं था.
बैंकिंग विशेषज्ञ पॉल रेक्स का बैंकिंग क्षेत्र में 20 साल से अधिक का अनुभव है. उन्होंने बैंकिंग क्षेत्र में इंडिपेंडेंट स्पेशलिस्ट के तौर पर काम किया है. उन्हें सुनवाई के तीसरे दिन अदालत में पेश किया गया.
माल्या की वकील क्लेयर मोंटगोमरी ने अपनी दलीलों को पेश करते हुए कहा कि भारत सरकार की ओर से पेश हुई क्राउन प्रोसीक्यूशन सर्विस (सीपीएस) उनके मुवक्किल पर दायर मामले को प्रथम दृष्टया (प्राइमा फेसिया) धोखाधड़ी का मामला साबित करने में असफल रही है.
उधर, रेक्स की दलील के मुताबिक माल्या की धोखाधड़ी करने की कोई मंशा नहीं थी. जबकि सीपीएस की दलील थी कि माल्या ने जो कर्ज लिया उसे चुकाने की उसकी मंशा नहीं थी क्योंकि उनकी विमानन कंपनी किंगफिशर का बंद होना तय हो गया था.
क्लेयर ने यह बताने की कोशिश की कि किंगफिशर के बंद होने में परिस्थितियां जिम्मेदार रहीं क्योंकि 2009 से 2010 के बीच वैश्विक आर्थिक मंदी का दौर रहा था और कंपनी का बंद होना कंपनी के नियंत्रण से बाहर हो गया था.