Vivek Ramaswamy on Taiwan: अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल भारतवंशी विवेक रामास्वामी ने साफ कर दिया है कि वह ताइवान पर किस तरह का रुख रखने वाले हैं. ताइवान को लेकर अमेरिका की वर्तमान नीति काफी अस्पष्ट रही है. मगर ऐसा लग रहा है कि रामास्वामी ताइवान को लेकर चीन के खिलाफ जाने को भी तैयार हैं. हाल में ताइवान पर दिए उनके एक बयान की वजह से इस बात की चर्चा हो रही है.
दरअसल, चीन 'वन चाइना पॉलिसी' के तहत काम करता है. इसके तहत चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और इस बात पर जोर देता है कि अगर जरूरत पड़ी तो वह बलपूर्वक इसे अपनी मुख्य भूमि के साथ मिला लेगा, जबकि ताइवान खुद को चीन से पूरी तरह से अलग मानता है. यही वजह है कि दोनों मुल्कों के बीच हमेशा तनाव बना रहता है. चीन की तरफ से ताइवान को डराने के लिए अक्सर ही लड़ाकू विमान भेजे जाते रहे हैं. इस पर अमेरिका हमेशा ही आपत्ति जताता रहा है.
ताइवान पर क्या बोले रामास्वामी?
रिपब्लिकन पार्टी के नेता विवेक रामास्वामी ने कहा है कि अमेरिका ने ऐसी नीति अपनाई है, जो ताइवान को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता देने में विफल है. अमेरिका चीन के हमले के खिलाफ ताइवान की रक्षा करेगा या नहीं, इस पर ‘रणनीतिक अस्पष्टता’ की मुद्रा अपनाई गई है. ताइवान मुद्दे पर चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच रामास्वामी ने रविवार को एक बयान में कहा, ‘अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि चीन वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला पर एकमात्र नियंत्रण हासिल न कर ले.’ उनके इस बयान से चीन परेशान हो सकता है, क्योंकि इससे सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में उसकी चुनौती बढ़ सकती है.
रामास्वामी के इस बयान के कई तरह के मायने निकाले जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि अगर रामास्वामी राष्ट्रपति बनते हैं, तो वह खुलकर ताइवान का समर्थन करेंगे और चीन से दूरी बढ़ाने पर जोर दे सकते हैं. अमेरिका चीन की वन चाइना पॉलिसी को मानता है. हालांकि, जिस रिपब्लिकन पार्टी से रामास्वामी आते हैं, वह कुछ हद तक इसका विरोध करता रहा है. उसका मानना है कि ताइवान को अपनी संप्रभुता हासिल करने का पूरा हक है. ऐसे में रामास्वामी पार्टी की लाइन पर रहते हुए ताइवान के समर्थक रह सकते हैं.
अमेरिका ने ताइवान को सैन्य मदद
पिछले हफ्ते जो बाइडेन प्रशासन ने विदेशी सैन्य वित्त पोषण (एफएमएफ) के तहत ताइवान को आठ करोड़ अमेरीकी डॉलर के सैन्य हस्तांतरण की मंजूरी दी थी. इस कार्यक्रम का आमतौर पर संप्रभु राष्ट्रों के लिए उपयोग किया जाता है. घटनाक्रम के जवाब में चीन के एक सरकारी अखबार ने कहा था कि अमेरिका ने अब हद पार कर दी है, जिसके ‘घातक परिणाम’ होंगे.
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