भारत द्वारा रूस से रियायती दामों पर तेल खरीदे जाने की संभावनाओं के बीच अमेरिका ने भारत को रूस के खिलाफ चेताया है और कहा है कि भारत ने अगर ऐसा किया तो ये आक्रमणकारियों के साथ खड़ा होने जैसा होगा. इसी से सवाल उठता है कि क्या अमेरिका को इस रीजन में बन रहे रूस, चीन और भारत के ऐक्सिस से डर लग रहा है?


एक तरफ यूक्रेन में रूसी हमले के बावजूद अमेरिका की भूमिका पर दुनिया में सवाल खड़े हो रहे हैं तो दूसरी तरफ शायद अब अमेरिका को इस रीजन में बन रहा रूस, चीन और भारत का ऐक्सिस परेशान कर रहा है. अमेरिका के व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने आज भारत को रूस से तेल खरीदने की संभावना की चर्चाओं के बीच चेतावनी दी है. व्हाइट हाउस प्रवक्ता ने कहा कि भारत अगर ऐसा करता है तो ये आक्रमणकारियों के साथ खड़े होने जैसा होगा और इतिहास इसे याद रखेगा. गौरतलब है कि अमेरिका चाहता है कि सभी देश रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का ध्यान रखे.


भारत की तरफ से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं


भारत सरकार ने अभी तक अमेरिका की इस चेतावनी पर प्रतिक्रिया नहीं दी है. हालांकि भारत में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि अमेरिका से जरूर हमारे रिश्ते हैं पर इसका मतलब ये नहीं कि हम रूस से अपने रिश्ते खत्म कर दें. रूस के साथ संबंधों को लेकर भारत सरकार सोच समझ कर अपना रुख तय करेगी. 


असल में सूत्रों के मुताबिक हाल ही में भारत के पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह और रूसी उप प्रधानमंत्री एलेक्जेंडर नोवाक के बीच हुई फोन पर बातचीत में रूसी उप प्रधानमंत्री ने भारत को सस्ते दामों में तेल देने मुहैया कराने का प्रस्ताव दिया था, इसके बाद से ही इस बात की संभावना जताई जा रही है कि भारत रूस से रियायती दाम पर तेल खरीदने पर विचार कर रहा है. अमेरिका ने इसी पर अपनी प्रतिक्रिया में भारत को ऐसा करने से चेताया है.


ऐक्सिस से डर तो नहीं रहा अमेरिका?


ऐसे में सवाल उठता है कि कही अमेरिका इस रीजन में बन रहे रूस, चीन और भारत के ऐक्सिस से डर तो नहीं रहा? विदेश मामलों के जानकारों का मानना है कि अमेरिका ने खुद रूस और चीन का ये ऐक्सिस बनाया है और अब भुगतना भी उसे ही पड़ रहा है. यही नहीं, पूर्व राजनयिक एम्बेसेडर अनिल त्रिगुनायत का ये भी कहना है कि भारत अपने प्रिंसिपल के साथ खड़ा है और अमेरिका ने इराक, लीबिया और यमन में भी यही सब किया था. गौरतलब है कि भारत ने रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद संयुक्त राष्ट्र में रूसी हमले की भर्तसना तो की मगर रूस के साथ अपने पारंपरिक और गहरे संबंधो को देखते हुए अब तक उसके खिलाफ एक बार भी वोट नहीं किया है.


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