Israel-Palestine Conflict: इजराइल और फलस्तीन के बीच एक बार फिर से संघर्ष की शुरुआत हो चुकी है. फलस्तीन समर्थक और गाजा पट्टी पर शासन चलाने वाले हमास ने इजराइल पर शनिवार (7 अक्टूबर) को मिसाइल हमला किया. जवाबी कार्रवाई में इजराइल ने भी हमास के ठिकानों पर बमबारी की है. शनिवार से ही गाजा के अलग-अलग हिस्सों में बमबारी जारी है. इस हमले में अब तक इजराइल और फलस्तीन दोनों के ही सैकड़ों नागरिक मारे गए हैं.
इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हमास के हमले को युद्ध की शुरुआत करना बताया है. हमास के जरिए इजराइल पर हाल के सालों में किया गया ये सबसे बड़ा हमला है. इस साल की शुरुआत से ही फलस्तीनी लोग इजराइल के खिलाफ आवाज उठा रहे थे. ऊपर से अब हमास ने भी हमला कर दिया है. ऐसे में एक बार फिर से इंतिफादा की बात हो रही है. आइए जानते हैं कि इंतिफादा क्या है और क्यों अब लोग कह रहे हैं कि तीसरे इंतिफादा की शुरुआत हो गई है.
इंतिफादा क्या है?
इंतिफादा का मतलब आमतौर पर लोग 'बगावत' या 'विद्रोह' के तौर पर निकाल लेते हैं. लेकिन अरबी भाषा में इसका मतलब 'उथल-पुथल' या 'किसी से छुटकारा' पाना होता है. इजराइल और फलस्तीन के लोगों के बीच जब भी संघर्ष होता है, तो इस शब्द का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता है. आसान भाषा में कहें, तो इंतिफादा का मतलब इजराइल के खिलाफ एक संगठित विद्रोह से है, जिसे फलस्तीनी लोगों का समर्थन मिला हुआ है.
अब तक कितने इंतिफादा हुए और क्यों?
इंतिफादा शब्द सबसे पहले 1987 में पॉपुलर हुआ था. उस वक्त फलस्तीनी लोगों ने वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में इजराइल की मौजूदगी के खिलाफ आवाज उठाई थी. पहले इंतिफादा की शुरुआत 1987 में हुई, जो छह साल तक चली और 1993 में जाकर खत्म हुई. चार फलस्तीनी मजदूरों की मौत की वजह से शुरू हुआ पहला इंतिफादा बेहद ही खतरनाक रहा. इस दौरान इजराइली सैनिकों के खिलाफ दंगे भड़क उठे. इजराइल ने फलस्तीनी लोगों की आवाज को कुचलने की कोशिश की.
फलस्तीनी और इजराइली सैनिकों के बीच देश के अलग-अलग हिस्सों में टकराव देखा जाने लगा. इस हिंसा पर 1993 में जाकर तब रोक लगी, जब इजराइल की सरकार और फलस्तीनी संगठन पीएलओ के बीच ओस्लो शांति समझौता हुआ. इस तरह पहला इंतिफादा खत्म हुआ, लेकिन तब तक 1,203 फलस्तीनी और 179 इजराइली मारे जा चुके थे. इस घटना की वजह से इजराइल की अंतरराष्ट्रीय छवि को काफी नुकसान भी पहुंचा.
दूसरा इंतिफादा साल 2000 में शुरू हुआ और ये 2005 में जाकर खत्म हुआ. दरअसल, 28 सितंबर 2000 को इजराइल के नेता आरियल शेरोन ने इजराइल के नियंत्रण वाले पूर्वी यरुशलम का दौरा किया. इस तरह दूसरे इंतिफादा की शुरुआत हुई. फलस्तीनी लोगों को लगा कि इजराइल ऐसा करके अल-अक्सा मस्जिद कंपाउंड पर अपना दावा कर सकता है. कुछ महीनों के भीतर ही शेरोन देश के प्रधानमंत्री बन गए. हमास इससे नाराज हुआ और उसने हमले की शुरुआत कर दी.
फलस्तीन समर्थक हमास ने कई सारे इजराइली इलाकों पर आत्मघाती हमला किया. इजराइल ने भी इसका मुंहतोड़ जवाब दिया. पांच साल तक चले इस संघर्ष में 1,330 इजराइली और 3,330 फलस्तीनी नागरिक मारे गए. हालांकि, 2004 में पीएलओ के नेता यासिर अराफात की मौत के बाद इंतिफादा ठंडा होता गया और फिर 2005 में जाकर ये पूरी तरह से खत्म हो गया. हालांकि, इस वजह से गाजा पट्टी से लेकर वेस्ट बैंक तक में बहुत नुकसान पहुंचा.
क्यों तीसरे इंतिफादा की हो रही है बात?
दरअसल, पिछले कुछ सालों से इजराइल में यहूदी दक्षिणपंथियों का उदय हुआ है. उनका फलस्तीन को लेकर आक्रामक रुख है. यहूदी दक्षिणपंथियों की वजह से फलस्तीनी लोगों में गुस्सा है. अक्सर ही अल-अक्सा मस्जिद कंपाउंड में यहूदी दक्षिणपंथियों और फलस्तीनी लोगों के बीच टकराव होता रहता है. इसकी वजह से धीरे-धीरे नाराजगी बढ़ रही थी. इस साल यरुशलम में अल-अक्सा मस्जिद कंपाउंड में इजराइल ने कई बार रेड भी मारी है, जिसे तनाव को बढ़ाने का काम किया है.
हमास लगातार चेतावनी दे रहा था कि इजराइल अल-अक्सा मस्जिद कंपाउंड में अपनी कार्रवाई बंद करे. फलस्तीनी लोगों की तरफ से भी यही बात दोहराई जा रही थी. ऐसे में जब शनिवार से संघर्ष की शुरुआत हुई, तो लोगों ने इसे तीसरे इंतिफादा के तौर पर भी देखा. बड़ी संख्या में हमास के लड़ाके गाजा पट्टी की सीमाओं को तोड़कर इजराइल में घुस आए. इजराइल के खिलाफ इसे फलस्तीनी लोगों के विद्रोह के तौर पर देखा गया.
यह भी पढ़ें: कैसे हिटलर के कत्लेआम ने पैदा किया इजराइल-फलस्तीन विवाद? पढ़िए यहूदी मुल्क की पूरी कहानी