Ukraine Crisis: यूक्रेन संकट दिनों-दिन गहराता जा रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूरोप में अतिरिक्त सैन्य बलों को भेजने का फैसला किया है. करीब दो हजार सैनिकों को इस हफ्ते पोलैंड और जर्मनी भेजा जा रहा है. जबकि जर्मनी से एक हजार सैनिकों को रोमानिया पहुंचाया जा रहा है. अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन की तरफ से इस बारे में जानकारी दी गई. हालांकि, पेंटागन ने एक लिखित बयान में ये बताया है कि सैनिकों कि तैनाती का मकसद आक्रमण को रोकना है और जोखिम बढ़ जाने के दौरान अग्रिम सहयोगियों में अपनी रक्षा क्षमता को बढ़ाना है.


पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन किर्बी ने बताया कि रूसी सैनिकों की तरफ से लगातार सैनिकों का जमावड़ा किया जा रहा है. ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि क्या ये एक और युद्ध की आहट है? क्यों रूस की तरफ से यह कदम ऐसे वक्त पर उठाया गया जब दुनिया कोरोना महामारी से परेशान है? और अमेरिका की तरफ से सैन्य बलों को भेजे जाने के बाद आखिर क्या है रूस का एक्शन प्लान? आइये विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं.




क्यों पैदा हुआ यूक्रेन संकट?


दरअसल, इस सवाल के जवाब में अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हर्ष वी. पंत ने ABP Live से बात करते हुए बताया कि ये सिर्फ यूक्रेन का सवाल नहीं है, बल्कि शीतयुद्ध के बाद जो ज्योपॉलिटिकल स्थिति यूरोप में बनी थी, इसके पीछे रूस को उस शक्ति संतुलन को साधना एक बड़ा मकसद है. उन्होंने कहा कि यूक्रेन एक बैटलग्राउंड है, इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि यूक्रेन संकट का चाहे जो भी परिणाम हो लेकिन एक बात साफ है कि रूस ने जो मांग नाटो और अमेरिकी से की है वे ये कि शीतयुद्ध के बाद जिस तरह अमेरिका और नेटो का जिस तरह रूस के चारों और मिलिट्री पोस्चर बना है, उसको बदला जाए, उसे पीछे हटाया जाए.


उन्होंने कहा कि रूस को ऐसा लगा कि शायद ये इस वक्त मौका है क्योंकि अमेरिका थोड़ा मुश्किल में हैं, खासकर अफगानिस्तान में उसके फैसले को देखते हुए, उसे थोड़ा बल मिला. इसके अलावा, रूस को ये भी लगता है कि अमेरिका का फोकस इंडो पैसिफिक यानी चीन की तरफ  बढ़ गया है.  ऐसे में नेगोशिएटेड सैटेलमेंट भी किया जा सकता है.




रूस की दबाव वाली रणनीति


हर्ष वी. पंत मानते है कि अभी तक सेना को इकट्ठा किया गया है, लेकिन उसकी तैनाती नहीं की गई है. कूटनीतिक बातचीत अभी भी चल रही है. ऐसे में रुस को ये लगता है कि वे अमेरिका पर दबाव देकर अपनी मांगों को मनवा सकता है. उन्होंने कहा कि रूस अपने चारों तरफ जहां शेयर ऑफ एन्फ्लूएंस मानता रहा है, वो चाहता है कि वहां पर उसका दबदबा एक बार फिर से बने. इसलिए इस वक्त ये सवाल गहरा गया है. ऐसे में अमेरिका और नेटो भी अगर पीछे हटता है तो ये उनकी विश्वसनीयता के लिए एक बड़ा सवाल है. यही वजह है कि अमेरिका, यूरोप कई देशों में सैनिकों को भेजा जैसे- एस्टोनिया, लैट्रिया जो सारे सोवियत के प्रभाव में आते थे.


रूस नहीं कर सकता हमला


पंत बताते हैं कि ऐसे में यह एक क्रेडिबिलिटी का सवाल है, आगे आने वाले समय का सवाल है. इसलिए इसमें जल्द कोई समाधान नहीं नजर आ रहा है. उन्होंने युद्ध के सवाल पर बताया कि दोनों ही तरफ सैन्य संघर्ष के गंभीर नुकसान हो सकते हैं. दूसरा यूक्रेन पर और भी तरीके हैं रूस के पास दबाव बनाने के लिए. इसलिए, अगर रूस लड़ाई करेगा तो वे वहां पर जाकर फंस जाएगा. दूसरा ये कि रूस अगर आक्रमण करता है तो उसके सहयोगी दल नेटो के साथ जा सकते हैं. इसलिए रूस के लिए निगेटिव्स बहुत ज्यादा होंगे.




 


जबकि, अमेरिका को इस लड़ाई से कोई फायदा नहीं होने जा रहा है. इसलिए रूस पर अगर आर्थिक प्रतिबंध भी लगाया जाएगा तो उल्टा जर्मनी और पश्चिमी देशों पर ही इसका असर होगा. लेकिन वे ये भी बताते हैं कि युद्ध कई बार गलतफहमियों से भी हो जाता है. इसलिए दोनों तरफ से अगर सैनिकों की इतनी बड़ी तादाद में तैनाती की जा रही है तो फिर कुछ भी हो सकता है.


दों देशों के बीच टग ऑफ वॉरहै


जबकि, रक्षा मामलों के जानकार कमर आगा बताते हैं कि ये दो बड़े परमाणु संपन्न देशों के बीच टग ऑफ वॉर है. उन्होंने कहा कि वॉर का मतलब पूरी तरह से बर्बादी हो जाएगी. दोनों देशों के बीच क्षमता है बम को दुनिया में कहीं भी पहुंचाने की. ऐसे में ना ही यूरोप चाहता है लड़ाई लडने और ना ही यूक्रेन ने कहा कि वह युद्ध चाहता है. जर्मनी की इस बारे में अलग राय है. लेकिन ब्रिटेन और अमेरिकी की सोच एक है. लेकिन बाकी देशों के अलग-अलग मत है.




उन्होंने बताया कि जंग से मसले हल नहीं हुए वो चाहे बात अफगानिस्तान की करें या इराक या फिर कंबोडिया की. यूरोप तो पहले और दूसरे वर्ल्ड वॉर में पहले ही काफी तबाह हो चुका है. कोरोना महामारी के संकट से जूझ रहा है. आर्थिक संकट से जूझ रहा है. ऐसे में अगर युद्ध होती है और रूस की तरफ से गैस और तेल की आपूर्ति नहीं की गई तो इसके 25 से 30 फीसदी दाम बढ़ सकते हैं.


पुतिन ऐसा क्यों कर रहे हैं?


इस सवाल के जवाब में कमर आगा बताते हैं कि नेटो की योजना रूस को घेरने की है. सोवियत संघ को टूटने के बाद नेटो का एक्सपेंशन शुरू हो गया था. फिर सोवियत यूनियन का जिन देशों पर कब्जा था नेटो वहां पर जाने के बाद बॉर्डर पर धीरे-धीरे आने लगे. ऐसे में यह रूस की तरफ से दवाब है नेटो और अमेरिका के ऊपर, वहां से हटाने की.