वॉशिंगटन: गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई को अमेरिका के नेताओं के सामने पेश होना पड़ा. इस दौरान वो उन्हें ये बता रहे थे कि गूगल डेटा को कैसे इकट्ठा करता है और उसकी फिल्टरिंग का तरीका क्या है. लेकिन साढ़े तीन घंटों तक चले इस सत्र में पिचाई को कुछ बेहद अनोखे सवालों का सामना करना पड़ा जिससे अमेरिकी सांसदों की तकनीक की समझ की भी पोल खुली. इस दौरान एक सांसद के सावल के जवाब में पिचाई को बताना पड़ा कि आईफोन बनाने वाली कंपनी गूगल नहीं है.


द वर्ज पर छपी एक स्टोरी में बताया गया है कि सांसद स्टीव किंग ने उनसे ये सवाल किया. स्टीव ने पूछा, "मेरी सात साल की पोती चुनाव के दौरान अपना आईफोन इस्तेमाल कर रही थी और वो वैसा गेम खेल रही थी जैसा बच्चे खेलते हैं. इस दौरान उसके फोन पर उसके दादा (यानी स्टीव की) की तस्वीर सामने आती है. और मैं ऑन रिकॉर्ड ये नहीं बताने जा रहा कि उसके दादा की तस्वीर के साथ कैसी भाषा का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन मैं आपसे पूछना चाहता हूं: बच्चों का गेम खेल रही सात साल की बच्ची के आईफोन पर ऐसा कुछ कैसे दिखाई दे सकता है?"


इसका जवाह देते हुए पिचाई को बेहद हिचकिचाहट का सामना करना पड़ा. उन्होंने कहा, "सांसद महोदय, आईफोन एक दूसरी कंपनी बनाती है (गूगल नहीं). मेरा मतलब है कि आपको तो पता ही है." इसका बाद झेंप गए किंग ने ठान ली कि फोन का ब्रांड मायने नहीं रखता. उन्होंने कहा, "ये एक एड्रॉयड भी हो सकता था. मेरा मतलब है कि ये एक सेकेंड हैंड फोन था." इसके जवाब में पिचाई ने कहा कि अब जब उनके पास सारी जानकारी है तो वो इसका जवाब दे सकते हैं और फिर बताया कि फोन में कोई नेटिफिकेशन ऑन रही होगी जिसकी वजह से ऐसी तस्वीर सामने आई होगी.


साढ़े तीन घंटे तक चले सवाल जवाब के इस दौर में सांसदों ने पिचाई के ऊपर सवालों की बारिश कर दी और कंज़र्वेटिवों के ख़िलाफ़ पक्षपात का भी आरोप लगाया. इस दौरान उनसे पूछा गया एक सावल वायरल हो गया है. पिचाई से पूछा गया था कि गूगल पर 'इडियट' लिखने पर ट्रंप की तस्वीरें क्यों दिखाई देती हैं. सिनेटर जो लोफ्रेन ने पिचाई से सवाल किया, "अभी जब हम गूगल पर इडियट शब्द को इमेज में सर्च करते हैं, डोनाल्ड ट्रंप की एक तस्वीर सामने आ जाती है. मैंने खुद ये करके देखा है, ऐसे क्यों होता है?"


इसके जवाब में पिचाई ने इतना लंबा और तकनीक से भरा बोझिल सा जबाव दिया जो आम लोगों के समझ से परे थे. ये इस बारे में था कि गूगल का सर्च कैसे काम करता है. पिचाई ने कहा, "जब कभी आप एक कीवर्ड सर्च करते हैं, गूगल ख़रबों वेबसाइट्स की इंडेक्स स्टोरीज़ आप तक लेकर आता है. फिर हम कीवर्ड को लेकर उनके पेजों के साथ मैच करते हैं और उन्हें 200 सिग्नलों के आधार पर मिलाते हैं- इनमें प्रासंगिकता, ताजगी, लोकप्रियता, अन्य लोग इसका उपयोग कैसे कर रहे हैं जैसी बातें शामिल होती हैं."


इसे समझाते हुए उन्होंने आगे कहा, "और किसी भी समय हम उस पर आधारित उस क्वेरी के लिए सबसे अच्छे खोज परिणामों को खोजने और रैंक करने की कोशिश करते हैं और फिर हम बाहरी रेटिंग देने वाले से उनका मूल्यांकन करवाते हैं और वो इसका मूल्यांकन ऑब्जेक्टिव गाइडलाइन्स के आधार पर करते हैं. ऐसे ही हम इस प्रक्रिया के सही तरीके से काम करने की बात को तय करते हैं."


इसके बाद लोफ्रेन ने व्यंग्यात्मक लहज़े में पूछा कि इसका मतलब ये है कि पर्दे के पीछे बैठा कोई छोटा आदमी ये तय नहीं करता कि लोग स्क्रीन पर किसे देखने जा रहे हैं. इसके जवाब में पिचाई ने कहा कि सर्च के नतीजों के मामले में गूगल में मैन्युअली कुछ नहीं किया जाता है.


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