Monkeypox: आखिर क्यों बदलना चाहता है WHO मंकीपॉक्स का नाम, जानकर रह जाएंगे आप भी हैरान
WHO Asking For Renaming Monkeypox: विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) मंकीपॉक्स (Monkeypox) का नाम बदलना चाहता है और इसके लिए उसने लोगों से सुझाव मांगे है.
WHO Is Looking To Rename Monkeypox: विश्व स्वास्थ्य संगठन- डब्ल्यूएचओ (World Health Organization-WHO) मंकीपॉक्स का नाम बदलने पर विचार कर रहा है. मंगलवार को उसने इस मामले में पब्लिक से मदद मांगी है. डब्ल्यूएचओ ने लोगों से इस तेजी से फैल रही बीमारी का कम डराने वाला नाम सुझाने के लिए कहा है. संयुक्त राष्ट्र (UN) की स्वास्थ्य एजेंसी मई से वैश्विक स्तर पर उभरी इस बीमारी के नाम को बदलने के लिए हफ्तों से चिंता में है. गौरतलब है कि इस बीमारी का नाम बंदरों से जुड़े होने की वजह से हाल ही में उन पर हमला होने के मामले सामने आए हैं. विशेषज्ञों ने इसके लिए डब्ल्यूएचओ को चेताया है.
मंकीपॉक्स के नाम पर बंदरों पर हुए हमले
विशेषज्ञों ने चेताया है मंकीपॉक्स नाम की वजह से मानव सरीखे जानवरों (Primates) के वंश का नाम कलंकित हो सकता है. दरअसल इस बीमारी का नाम उसे बंदरों से जोड़ता है. विशेषज्ञों का कहना है कि जबकि इस बीमारी के फैलने में बंदरों की बहुत कम भूमिका है. अफ्रीका (African) महाद्वीप में इस बीमारी को फैलने के लिए जानवरों को जवाबदेह ठहराया गया. उदाहरण के लिए, हाल ही में ब्राजील (Brazil,) में बीमारी के डर से लोगों के बंदरों पर हमला करने के मामले सामने आए हैं.
मंकीपॉक्स के नए नाम के लिए बनी वेबसाइट
डब्ल्यूएचओ (WHO) की प्रवक्ता फडेला चाईब (Fadela Chaib) ने जिनेवा (Geneva) में पत्रकारों से कहा, "बीमारियों के नाम देने के मौजूदा सबसे अच्छे तरीकों से पहले ही मानव मंकीपॉक्स को इसका नाम दिया जा चुका था." वह कहती है, "हम वास्तव में एक ऐसा नाम खोजना चाहते हैं जो कलंकित न हो." चाइब ने कहा, "नए नाम के सुझाव के लिए अब एक खास वेबसाइट बनाई गई है जो सभी के लिए खुली है."
गौरतलब है कि मंकीपॉक्स को ये नाम इसलिए मिला कि वास्तविक रूप में इसके वायरस की पहचान बंदरों में की गई थी. साल 1958 में डेनमार्क (Denmark) में अनुसंधान के लिए रखे गए बंदरों (Monkeys) में ये वायरस पाया गया था. हालांकि यह बीमारी कई अन्य जानवरों में भी पाई जाती है. ये बीमारी ज्यादातर कृन्तकों (Rodents) में होती है. पहली बार 1970 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (Democratic Republic Of Congo) में मनुष्यों में ये बीमारी फैली थी. तभी से यह बीमारी खासकर कुछ पश्चिम (West) और मध्य अफ्रीकी (Central African) देशों तक सीमित है. यहां यह स्थानिक (Endemic) है.
रोमन अंको पर सहमत हैं एक्सपर्ट
संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने पिछले हफ्ते एलान किया था कि विशेषज्ञों के एक समूह ने पहले ही मंकीपॉक्स वायरस वैरिएंट या क्लैड्स (Clades) के नए नामों पर सहमति दी थी. अभी तक इसके दो खास नाम भौगोलिक क्षेत्रों के नाम पर दिए गए हैं. इन क्षेत्रों में कांगो बेसिन (Congo Basin) और पश्चिम अफ्रीका (West Africa) आते हैं, हालांकि विशेषज्ञ इसके बजाय मंकीपॉक्स वायरस के नए नाम के लिए रोमन अंकों के इस्तेमाल पर राजी हुए हैं. इन्हें क्लैड I (Clade I ) और क्लैड II (Clade II) नाम दिया गया है. क्लैड II का एक सबवैरिएंट (Subvariant), जिसे अब क्लैड II बी ( Clade IIb) के नाम से जाना जाता है. मंकीपॉक्स के वैश्विक प्रकोप (Global Outbreak) के पीछे यही सबवैरिएंट जवाबदेह है.
मई से दुनिया में मंकीपॉक्स का प्रकोप
मई में मंकीपॉक्स बीमारी तेजी से दुनिया में फैलने लगी थी. इस बीमारी के मरीजों में बुखार, मांसपेशियों में दर्द और त्वचा पर बड़े फोड़े से बनने वाले घावों के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई. खासकर ये समलैंगिक पुरुषों में अधिक फैल रही थी. इसकी एक बड़ी वजह इनके बीच के यौन संबंधों को माना गया. दुनिया भर में साल की शुरुआत में ही मंकीपॉक्स के 31,000 से अधिक मामलों की पुष्टि हुई. डब्ल्यूएचओ (WHO) के मुताबिक इस बीमारी से अब तक12 लोगों की मौत हो गई है. यही वजह रही कि डब्ल्यूएचओ ने इस प्रकोप को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल (Global Health Emergency) घोषित कर दिया. हालांकि मंकीपॉक्स का वायरस जानवरों से मनुष्यों में आ सकता है, लेकिन डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञ जोर देकर कहते हैं कि हाल ही में इस बीमारी का वैश्विक प्रसार इंसान के इंसान से नजदीकी संपर्क की वजह से हुआ है.
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