इराक के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक शख्सियतों की जब गिनती होती है तो इन दिनों सबसे पहले एक नाम जो जेहन में आता है वो हैं मुक्तदा अल-सदर..वो शख्स जिनकी पकड़ इराक पर हर दिन बढ़ती चली गई. आज मुक्तदा अल-सदर की ताकत इतनी है कि जब इस शिया धर्मगुरु ने राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा की तो देश में हिंसा भड़क उठी. इराकी शिया धर्मगुरु मुक्तदा अल-सदर के दर्जनों समर्थकों ने सोमवार को सरकारी भवनों और बगदाद के ग्रीन जोन के अंदर रिपब्लिकन पैलेस पर धावा बोल दिया. इनके समर्थकों ने वहां जमकर हंगामा काटा. ऐसे में जो लोग मुक्तदा अल-सदर के नाम के वाकिफ़ नहीं है वो यह जानने की कोशिश में हैं कि आखिर ये कौन हैं और शियाओं के बीच इनकी इतनी लोकप्रियता क्यों है?
इससे पहले कि इस सवाल का जवाब दें यहां जान लेना जरूरी है कि जब बात इस्लाम की आती है तो ये मुख्य तौर पर दो हिस्सों बंटा हुआ है. ये दो हिस्से हैं सुन्नी और शिया. इस्लाम को मानने वाले इन दोनों ही फ़िरक़ों या पंथों में कई तरह के मतभेद हैं.
पूरी दुनिया की भौगोलिकता पर नजर डालें तो शिया मुसलमानों का दो सबसे बड़ा धार्मिक केंद्र हैं- इराक़ और ईरान.. इन्हीं दो देशों में शियाओं के दो प्रमुख धार्मिक केंद्र, ईरान का कुम और इराक का नजफ है.
धार्मिक केंद्रों पर धर्म गुरुओं का अपना वर्चस्व भी रहता है. ईरान के हेड आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई हैं तो वहीं इराक़ के नजफ के मुक़्तदा अल सदर हैं. नजफ में इमाम अली मस्जिद विशेष रूप से शिया मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र स्थल है. इसमें हज़रत अली का मकबरा है.
कौन हैं मुक्तदा अल-सदर?
मुक्तदा अल सदर को मरजा कहा जाता है. मरजा का मतलब होता है- वो मुजतहिद-ए-आज़म (नए रास्ते बताने वाला सबसे बड़ा विद्वान) जिसे दूसरे सभी विद्वान - एक महान विद्वान के रूप में स्वीकार करते हैं और उनका अनुसरण करते हैं.
मुक्तदा अल-सदर (Muqtada Al Sadr) इराक के शक्तिशाली शिया धर्मगुरु हैं. उनका जन्म साल 1924 में हुआ था. उनका प्रभाव पूरे इराक़ पर है. शिया धर्मगुरु मुक्तदा अल-सदर पिछले दो दशकों से इराक के एक शक्तिशाली राजनेता हैं. अल-सदर अपने पिता और अपने ससुर के विचारों से बहुत प्रभावित हैं. सदर के पिता, मोहम्मद सादिक और ससुर मोहम्मद बाकिर, दोनों अत्यधिक प्रभावशाली धर्मगुरु थे. इराक में कई शिया उन्हें गरीबों की आवाज उठाने वाला नेता मानते हैं.
सदर दरअसल, साल 2003 में सद्दाम हुसैन के पतन के बाद चर्चा में आए थे. सद्दाम हुसैन इराक़ के एक सुन्नी तानाशाह था जबकि इराक़ एक शिया बहुल देश है. मुक्तदा अल-सदर के पिता ने सद्दाम की सुन्नी तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाई थी. उनका परिवार कभी इराक़ छोड़कर नहीं भागा और यही कारण है कि लोग उनकी इज्जत करते हैं.
मुक्तदा अल-सदर के नेतृत्व में इराक में सदर आंदोलन चला जिसे पूरे इराक और विशेष तौर पर उसके शिया मुस्लिमों का व्यापक समर्थन हासिल है. इसका लक्ष्य इराक में धार्मिक कानूनों और रीति रिवाजों को बढ़ावा देना है. अल-सदरिस्ट आंदोलन में हिस्सा लेने वाले लोगों को मुक्तदा अल-सदर ने इराक के विभिन्न मंत्रालयों में वरिष्ठ पदों पर नियुक्त किया गया है.
सद्दाम हुसैन की मौत के बाद इराक में हुए चुनावों में साल 2014 में सबसे कम मतदान वाला चुनाव हुआ जिसमें केवल 41 प्रतिशत ही मत पड़े हैं. फिर भी नतीजों के बाद से मुक्तदा अल-सदर का कद काफी बढ़ा हुआ माना जाने लगा. ईरान विरोधी एजेंडे के साथ वे इराक के राजनीतिक परिदृश्य में एक शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे हैं. वे ईरान की ओर से इराक में दखलंदाजी के सख्त खिलाफ रहे हैं.
इराक की सरकार में गतिरोध
इराक की सरकार में गतिरोध तब से आया है जब धर्मगुरु मुक्तदा अल-सदर की पार्टी ने अक्टूबर के संसदीय चुनावों में सबसे अधिक सीटें जीती थीं लेकिन वह बहुमत तक नहीं पहुंच पाए थे. सदर के गठबंधन ने इराक के अक्टूबर 2021 के चुनाव में 329 में से 73 सीटें जीतीं, जो पिछली बार से 19 सीटें अधिक थी. कुछ पर्यवेक्षकों ने कहा कि सदर ने इराक को राजनीतिक बदलाव के लिए सबसे अच्छा मौका दिया. सदर के समर्थकों को उम्मीद थी कि गठबंधन जल्दी से सरकार बनाएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ. हालांकि मुक्तदा अल-सदर की पॉपुलेरिटी लगातार बढ़ती गई.
इराक़ के अयातुल्ला खुमैनी बनना चाहते हैं मुक्तदा अल-सदर ?
मुक्तदा अल-सदर पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वो अपनी छवी इराक़ में ठीक उसी तरह की बनाना चाहते हैं जैसे अयातुल्ला खुमैनी ईरान में बना चुके हैं. वो शियाओं के सबसे बड़े धर्मगुरु बनना चाहते हैं. मुक्तदा अल-सदर ने ईरान का कई मौकों पर विरोध किया है.
बता दें कि तेहरान के शिया राजनीतिक समूहों का बगदाद के साथ घनिष्ठ लेकिन जटिल संबंध हैं. ईरान और इराक ने 1980-88 तक युद्ध लड़ा. इराक में अमेरिका के नेतृत्व वाले आक्रमण के बाद 2003 में सद्दाम हुसैन की सरकार गिरी तब इराक में ईरान का प्रभाव बढ़ गया.
2014 में, ईरान ने इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में मदद करने के लिए सुलेमानी और सैन्य सलाहकारों को इराक भेजा और सुलेमानी ने इराक में एक पावरब्रोकर के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि मुक्तदा अल-सदर ईरान के खिलाफ ही रहे. जब मई 2018 के चुनावों के बाद इराकी संसद में सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे तो उन्होंने ईरान समर्थक खेमे के साथ गठबंधन करने से इनकार कर दिया था.
अल-सदर ने हाल ही में पीएमएफ के कट्टर तत्वों के खिलाफ एक ट्विटर अभियान भी शुरू किया और यहां तक कि इराकी सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा कि इराक एक "दुष्ट" राज्य बन रहा है. लगातार ऐसे बयान और ईरान का विरोध मुक्तदा अल-सदर पर ये आरोप लगाता रहा है कि वो इराक़ के अयातुल्ला खुमैनी बनना चाहते हैं..
कौन हैं अयातुल्लाह रूहुल्लाह ख़ुमैनी ?
अयातुल्लाह रूहुल्लाह ख़ुमैनी शिया बहुल ईरान में राजनीतक और धार्मिक तौर पर बहुत बड़े नाम हैं. उन्हें ईरान में इस्लामी गणराज्य की स्थापना के लिए जाना जाता है. उनका असली नाम रुहोल्ला ख़ुमैनी है. वो मध्य ईरान के कोह्मेन में पैदा हुए थे. उन्होंने 1979 में ईरान को दुनिया का पहला इस्लामी गणतंत्र बनाया था. इसी के बाद शिया मुस्लमान उनको एक रहनुमा के तौर पर देखने लगे थे.