Ahmadiyya Community in Pakistan Explained: पाकिस्तान के कराची में गुरुवार (2 फरवरी) को अहमदिया (Ahmadiyya) समुदाय की एक मस्जिद में तोड़फोड़ की गई. पाकिस्तानी अखबार डॉन के मुताबिक, अज्ञात हमलावरों ने मस्जिद पर हमला किया. कथित तोड़फोड़ के वीडियो भी सोशल मीडिया पर साझा किए गए. इनमें कुछ लोग सदर इलाके स्थित मस्जिद को हथौड़े की मदद से तोड़ते हुए दिखे. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, इसी महीने की शुरुआत में भी ऐसा ही हमला कराची के जमशेद रोड स्थित अहमदी जमात खाता की मीनारों पर किया गया था. आखिर कौन हैं अहमदिया और पाकिस्तान में उन्हें बार-बार निशाना क्यों बनाया जाता है, आइए जानते हैं. 


कौन हैं अहमदिया?


भारत के पंजाब के लुधियाना के एक गांव कादियान में 1889 में अहमदी आंदोलन की शुरुआत हुई थी. इसके संस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद थे. डॉयचे वेले की रिपोर्ट के मुताबिक, मिर्जा गुलाम अहमद खुद को पैगंबर मोहम्मद का अनुयायी और अल्लाह की ओर से चुना गया मसीहा मानते थे. 


बीबीसी ने ऑक्सफोर्ड इस्लामिक स्टडीज ऑनलाइन के हवाले से एक रिपोर्ट में लिखा कि गुलाम अहमद की विचारधारा इस विश्वास पर आधारित थी कि मुस्लिम धर्म और समाज को पतन से बचाने के लिए पवित्र रूप से सुधारों की जरूरत है.


अहमदिया मुस्लिम समुदाय की एक वेबसाइट पर जानकारी दी गई है कि उनके समाज के अनुयायियों का मानना है कि सम्प्रदाय के संस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद को ईश्वर ने धार्मिक युद्धों को खत्म करने, खूनखराबे की निंदा करने और नैतिकता-न्याय के साथ शांति बहाल करने के लिए भेजा था.


पाकिस्तान में क्यों निशाने पर अहमदिया?


बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अहमदिया समुदाय मानता है कि सम्प्रदाय के संस्थापक गुलाम अहमद को पैगंबर मोहम्मद की ओर से निर्धारित किए गए कानूनों के प्रचार-प्रसार के लिए भेजा गया था. हालांकि, शिया और सुन्नी के सभी अहम समुदाय अहमदिया मुस्लिमों के इस दावे को खारिज करते हैं. कट्टरपंथी के साथ-साथ लिबरल मुसलमान भी इसमें शामिल हैं, जिनमें से कई अहमदिया मुस्लिमों को धर्म विरोधी मानते हैं.


पाकिस्तान में संविधान के हिसाब से अहमदिया मुसलमान नहीं, बल्कि एक अल्पसंख्यक गैर-मुस्लिम धार्मिक समुदाय माने जाते हैं. अहमदिया विचारधारा को नहीं मानने वाले कट्टरपंथी लोग दशकों से पाकिस्तान में इस समाज के धार्मिक स्थलों और लोगों को निशाना बनाते आए हैं. इनमें अहमदी मस्जिदों और कब्रों पर हमले शामिल हैं.


न खुद को मुस्लिम कहने और न ही मस्जिद में जाने का हक


मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मई 1974 में जमात-ए-इस्लामी संगठन के छात्रों के गुट ने दंगे किए थे, जिनमें 27 अहमदिया को मार दिया गया था और मस्जिदों, घरों और दुकानों तोड़ा गया था. दंगों के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदिया को गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक के रूप में घोषित कर दिया था. इससे समुदाय के लोगों के लिए मस्जिद में जाना वर्जित हो गया था. इसके बाद सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के शासन में एक अध्यादेश पारित किया गया था, जिसके बाद अहमदिया को खुद को मुसलमान कहने से रोक दिया गया था. इसी के साथ उन्हें अपने समाज के रीति-रिवाजों को जाहिर करने और उनका अभ्यास करने पर सजा दी गई थी.


अहमदिया के लिए सजा का प्रावधान


पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 298-सी के अनुसार अगर कादियानी समूह या लाहौरी समूह का कोई भी व्यक्ति जो खुद को अहमदी या किसी अन्य नाम से पुकारता है और मुस्लिमों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है तो उसे तीन साल के कारावास की सजा हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है. 


अलग से बनाई गई मतदाता सूची


2002 में पाकिस्तान में एक अलग मतदाता सूची बनाई गई थी, जिसमें अहमदिया को गैर-मुस्लिम के रूप में दिखाया गया था. यह वोटर लिस्ट अब भी अस्तित्व में है.


नहीं थम रहे अहमदिया पर हमले!


एक रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में 2017 के बाद से कम से कम 13 अहमदिया की हत्या कर दी गई और 40 को घायल किया गया. एनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल नवंबर में, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में एक अहमदी कब्रिस्तान में चार मकबरों को तोड़ दिया गया था और उन पर अहमदी विरोधी नारे लिख दिए गए थे. 


पाकिस्तान में पहला नोबेल एक अहमदी ने जीता था


पाकिस्तान में अहमदिया की आबादी लगभग पांच लाख की बताई जाती है जो ईशनिंदा के आरोपों को लेकर भी निशाने पर रहती है. 2021 की अल जजीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में अहमदी समुदाय के लोगों के खिलाफ ईशनिंदा के कम से कम 30 मामले और धर्म से संबंधित 71 अन्य कानूनी मामले दर्ज किए गए थे. बता दें कि पाकिस्तान में पहला नोबेल पुरस्कार जिस वैज्ञानिक अब्दुस सलाम ने 1979 में भौतिकी में जीता था वो अहमदिया समुदाय से ही थे. कहा जाता है कि मुल्क ने लगातार उनकी विरासत को नजरअंदाज किया. 


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