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तुर्किए में क्यों हो रहा बवाल, क्या विद्रोह से जल्द होगा तख्तापलट, पांच प्वाइंट्स में समझिए क्यों मुसीबत में एर्दोगान

तुर्किए में महंगाई और बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. मुद्रास्फीति ने आम नागरिक की जिंदगी मुश्किल बना दी है.

तुर्किए में हाल ही में काफी हलचल देखने को मिली है. राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगान की सरकार के खिलाफ विरोध बढ़ता जा रहा है. इस बीच 23 मार्च 2025 को इस्तांबुल के मेयर एक्रेम इमामोग्लू को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. उनकी इस गिरफ्तारी के बाद विरोध तेज हो गया है. लोग सड़कों पर उतर आए हैं और सवाल उठ रहे हैं कि क्या तख्तापलट जैसी स्थिति बन सकती है? इस रिपोर्ट में हम विस्तार से समझते हैं कि आखिर तुर्किए में क्या हो रहा है विद्रोह और क्यों एर्दोगान की सरकार संकट में घिरी हुई है

सबसे पहले जानते हैं कि आखिर इमामोग्लू हैं कौन?

एक्रेम इमामोग्लू को साल 2019 में इस्तांबुल का मेयर चुना गया था और उन्होंने पिछले साल भी इस पद के लिए चुनाव लड़ा था और उन्हें जीत भी मिली थी. इस्तांबुल तुर्की का सबसे बड़ा शहर है और यहां लगभग 1.6 करोड़ की आबादी है. इस्तांबुल को तुर्की का का व्यापार केंद्र भी कहा जाता है. यहां का चुनाव जीतकर 53 साल के इमामोग्लू तुर्की की राजनीति में राष्ट्रपति एर्दोगन के नंबर एक प्रतिद्वंद्वी बन गए हैं.

तुर्किए में बवाल क्यों, पांच प्वाइंट में समझें

1. आर्थिक संकट ने तकरार को बढ़ाया है: तुर्किए में महंगाई और बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. मुद्रास्फीति ने आम नागरिक की जिंदगी मुश्किल बना दी है. तुर्की लिरा की कीमत लगातार गिर रही है और इससे लोगों की रोजमर्रा की ज़िंदगी पर बुरा असर पड़ा है. एर्दोगान की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठ रहे हैं और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन बढ़ते जा रहे हैं.

2. सरकार का गुस्से को कुचलने का तरीका: राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगान ने अपनी सरकार के खिलाफ होने वाले विरोधों को बहुत सख्ती से कुचलने की कोशिश की है. कई नेताओं, पत्रकारों और विरोधियों को जेल में डाला गया है. ऐसे में जब लोगों को लगा कि उनकी आवाज दबाई जा रही है, तो उनके बीच गुस्सा और विरोध बढ़ने लगा. इसने जनता में असंतोष पैदा किया है और विद्रोह की संभावना को भी बढ़ाया है.

3. विदेशी नीति में असफलताएं: तुर्किए की विदेश नीति भी सही नहीं रही है. राष्ट्रपति एर्दोगान की सरकार ने सीरिया, लीबिया और रूस के साथ रिश्ते बनाए, लेकिन इन मामलों में तुर्किए को ज्यादा लाभ नहीं हुआ. इसके बजाय, कई देशों के साथ तुर्किए के रिश्ते खराब हुए हैं. इन असफलताओं ने देश में असंतोष को बढ़ावा दिया है और लोग सरकार की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाने लगे हैं.

4. एर्दोगान की एकल सत्ता का बढ़ता खतरा: इस देश में पिछले कुछ सालों में राष्ट्रपति एर्दोगान ने अपनी शक्ति को काफी ज्यादा बढ़ा लिया है. साल 2017 में संविधान में संशोधन कर राष्ट्रपति के अधिकारों को और मजबूत किया गया. अब, एर्दोगान के पास चुनाव जीतने के बाद अपार शक्ति है, लेकिन यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर कर रहा है. ऐसे में विरोधियों का मानना है कि तख्तापलट या जन विद्रोह केवल एक बदलाव का जरिया हो सकता है.

5. समाज में गहरी खाई: तुर्किए में समाज में गहरी खाई बन चुकी है. एक तरफ एर्दोगान समर्थक हैं, जो उन्हें तुर्की के लिए एक सशक्त नेता मानते हैं, जबकि दूसरी ओर ऐसे लोग हैं जो एर्दोगान के नेतृत्व को तानाशाही मानते हैं. इस गहरी राजनीतिक खाई के कारण देश में गंभीर असहमति और विभाजन पैदा हुआ है, जिससे विद्रोह की स्थितियां और भी सशक्त हो सकती हैं.

क्या तख्तापलट हो सकता है?  

हालांकि, तख्तापलट की संभावना अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है, लेकिन तुर्किए में सेना की भूमिका पहले जैसी नहीं रही. इसके बावजूद, अगर विरोध और असंतोष बढ़ता रहा तो कोई भी बड़ा बदलाव हो सकता है. एर्दोगान को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा और जनता की समस्याओं का समाधान निकालना होगा, वरना देश में एक और राजनीतिक उथल-पुथल का सामना करना पड़ सकता है.

तुर्किए में हालात काफी गंभीर हो चुके हैं और एर्दोगान की सरकार के लिए यह वक्त किसी बड़े संकट से कम नहीं है. आर्थिक परेशानी, विदेशी नीति की असफलताएं, सरकार का विरोधियों पर दबाव और समाज में बढ़ती खाई, ये सभी कारण तुर्की में विद्रोह की संभावना को मजबूत कर रहे हैं. अगर एर्दोगान इस संकट से उबरने में असफल रहते हैं, तो आने वाले समय में तख्तापलट जैसे हालात भी बन सकते हैं.

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