बगावत रूस में हुई, लेकिन पसीना 'चालबाज' चीन का क्यों छूट रहा है?
एक मजबूत रूस का होना चीन के हित में है तो प्रिगोजिन के विद्रोह का भी चीन पर भारी असर पड़ेगा. इस खबर में जानते हैं कि आखिर वागनर ग्रुप के बगावती तेवर ने रूस के साथ साथ चीन को कैसे हिलाकर रख दिया.
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पिछले 16 महीनों से रूस यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध अब उस मोड़ पर पहुंच चुका है जहां से रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सत्ता को सीधे चुनौती मिलने लगी है. दरअसल बीते शुक्रवार यानी 23 जून को यूक्रेन में मौजूद रूस की प्राइवेट आर्मी वागनर ग्रुप के मुखिया येवगेनी प्रिगोजिन ने अचानक ही विद्रोह का ऐलान करते हुए मॉस्को की ओर मार्च करना शुरू कर दिया था.
हालांकि ये बगावत जितनी जल्दी भड़की उतनी जल्दी खत्म भी हो गई. बगावत के ठीक 24 घंटे के अंदर ही वागनर ग्रुप ने यू-टर्न लेते हुए अपने लड़ाकों के वापसी की घोषणा कर दी.
अब भले ही इस प्राइवेट मिलिट्री ग्रुप ने विद्रोह को समाप्त कर दिया हो लेकिन इन 24 घंटों ने दुनिया को चौंका कर रख दिया है. विशेषज्ञों की मानें तो वागनर ग्रुप के इस एक्शन ने राष्ट्रपति पुतिन की स्थिति को कमज़ोर कर दिया है.
कुछ दिनों पहले तक रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अपने देशों में सबसे ताकतवर नेता के रूप में देखा जा रहा था. लेकिन अब इस बगावत के बाद वैश्विक स्तर पर पुतिन के सबसे ताकतवर नेता होने की बातों पर सवाल उठ गया है.
रूस में बगावत से चीन क्यों परेशान
चीन और रूस, दो प्रमुख वैश्विक शक्तियां हैं और पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के रिश्तें काफी बेहतर हुए हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान जब कई देशों ने रूस का साथ छोड़ दिया था और उसके इस कदम की आलोचना की थी उस वक्त भी चीन रूस का समर्थन करता रहा था. दोनों देशों के रिश्ते काफी पुराने हैं और वैश्विक मंच पर अमेरिका के लिए ये दोस्ती बड़ी चुनौती भी है. लेकिन रूस में हुई बगावत से चीन में भी खलबली मच गई है. इस घटना का असर इतना गहरा है कि अमेरिका को हर मामले में आंख दिखाने वाले चीन अब चौकन्ना हो गया है.
1. कम्युनिस्ट लीडरशिप पर पड़ेगा असर: रूस और चीन दोनों ही कम्युनिस्ट देश हैं. चीन, रूस के मॉडल को आदर्श मानता है. ऐसे में पुतिन के खिलाफ हुए वागनर ग्रुप की बगावत ने चीन की कम्युनिस्ट लीडरशिप को भी डरा कर रख दिया है. चीन को डर है कि इस बगावत के चलते लोगों का भरोसा ताकतवर मानी जाने वाली कम्युनिस्ट लीडरशिप से कम हो सकता है और उनके अंदर लोकतंत्र की चाहत बढ़ सकती है.
2. वैश्विक मंच पर कमजोर होगा चीन और रूस: चीन वैश्विक मंच पर कई बार अमेरिका के खिलाफ खड़ा हुआ है और आगे भी होता रहेगा. इसका एक कारण ये भी है कि चीन और रूस के रिश्ते गहरे हैं और दोनों ही देश ताकतवर देशों में शामिल है. ऐसे में अगर रूस कमजोर पड़ता है तो चीन की भी ताकत कम होगी.
3. रूस में तख्तापलट का सीधा चीन पर पड़ेगा असर: अगर वागनर ग्रुप एक बार फिर विद्रोह का ऐलान करता है और तख्तापलट जैसी स्थिति बनती है तो पुतिन को अपनी गद्दी गंवानी पड़ सकती है और जरूरी नहीं है कि रूस का नया नेता भी व्लदिमीर पुतिन की तरह ही चीन को लेकर उदार हो.
4. बॉर्डर साझा करना भी चिंता का कारण: चीन इसलिए भी रूस में चल रहे घटनाक्रम से चिंतित है क्योंकि रूस के साथ चीन की 4,200 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है. रूस में सत्ता परिवर्तन की स्थिति में नई सरकार सीमाओं को लेकर कैसा रवैया अपनाती है, ये सवाल भी चीन के सामने खड़ा है. खबर तो ये भी है कि चीन अपनी सेना में भी बगवात की स्थिति से निपटने के लिए तैयारी कर रहा है.
5- अमेरिका के टकराव मोल लेना आसान नहीं: ट्रेड वार से लेकर कई मुद्दों पर चीन जिस तरह से अमेरिका को चुनौती दे रहा है उसके पीछे रूस का होना है. रूस खुले तौर पर चीन का हर मामले में समर्थन करता रहा है. अमेरिका के लिए दो कम्युनिस्ट विचारधारा वाले देशों की ये दोस्ती नासूर बन गई थी. लेकिन अगर रूस घरेलू मामलों में उलझता है तो उसकी ताकत कम होगी ऐसे में चीन का वो कितनी देर तक समर्थन कर पाएगा ये भी चीन के सामने बड़ा सवाल है. इस हालात में चीन को अपने घमंड को कम करके अमेरिका के साथ दोस्ताना संबंध कायम करना मजबूरी हो जाएगी.
बगावत पर चीन ने क्या कहा
विद्रोह के वापस लेने के ऐलान के 24 घंटे बाद ही चीन ने राष्ट्रपति पुतिन के समर्थन की घोषणा कर दी थी. दरअसल बीते रविवार यानी 25 जून को चीनी विदेश और उप विदेश मंत्री ने बीजिंग में दौरे पर पहुंचे रूसी उप विदेश मंत्री एंड्रे रुड्येंको से मुलाक़ात की थी. इस मुलाकात के बाद चीन ने वागनर ग्रुप के विद्रोह को रूस का आंतरिक मामला बताया है.
हालांकि चीन की अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि पुतिन इस विद्रोह को अकेले नहीं रोक पाए. विद्रोह के समाप्त होने का ऐलान बेलारूस के प्रेसिडेंट एलेग्जेंडर लुकाशेंको के दखल देने के बाद किया गया.
जिसका मतलब है कि बागी हुए सैनिकों का विद्रोह बेलारूस के दखल के बाद शांत हुआ. पुतिन इस मामले में कुछ नहीं कर पाए.
शंघाई स्थित अंतरराष्ट्रीय रिलेशन एक्सपर्ट शेन डिंगली ने अल जजीरा के एक रिपोर्ट में कहा, “मुझे लगता है कि इस बगावत के बाद चीन समेत कई देशों में पुतिन को लेकर यह धारणा बनी होगी कि पुतिन का अपने देश पर उतना ठोस नियंत्रण नहीं है, जितना लोग सोचते थे. चीन भी वैश्विक स्तर पर किसी भी तरह के फैसले से पहले अब सतर्क हो जाएगा.
इस बगावत से क्या चीन को चिंतित होना चाहिए?
बीबीसी की एक रिपोर्ट में इस सवाल का जवाब देते हुए जेएनयू के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं, 'जब एक मज़बूत रूस का होना चीन के हित में है तो इस विद्रोह से भी चीन को चिंतित होना चाहिए. दरअसल चीन रूस के साथ अपने संबंधों को गहरा इसलिए ही कर रहा था ताकि रूस के मिलकर वह अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित कर सके और बदलाव ला सके."
स्वर्ण सिंह आगे कहते हैं, 'पुतिन के करीबी माने जाने वाले येवगेनी प्रिगोझिन का बगावत कर देने पर पुतिन को कितना धक्का लगा है ये बातें सामने नहीं आ रही हैं और घटना के बारे में कुछ नहीं कहना, उनके लिए चुनौती को और भी गंभीर बनाता है."
पुतिन ने आपराधिक आरोप वापस ले लिया था
दरअसल येवगेनी प्रिगोझिन के वागनर ग्रुप के विद्रोह के ऐलान के कुछ देर बाद रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने अपनी जनता को संबोधित करते हुए कहा था कि इस तरह से बगावत करना एक आपराधिक काम है, एक गंभीर अपराध है, ये देशद्रोह, ब्लैकमेल और आतंकवाद है. लेकिन इन बयान के कुछ ही घंटे बाद एक समझौते किया गया औऱ इस ग्रुप के प्रमुख प्रिगोजिन के ख़िलाफ सभी आपराधिक आरोप वापस ले लिया गया.
क्या पुतिन की छवि पर कोई असर पड़ा है?
पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राजेश मिश्र ने एबीपी से बात करते हुए इस सवाल के जवाब में कहा इस विद्रोह के बाद राष्ट्रपति पुतिन की एक मज़बूत नेता की छवि पर असर तो जरूर पड़ा है लेकिन रूस एक राष्ट्र के रूप अभी भी उतना मजबूत देश है जितना पहले था. इस देश की ताकत का ही असर है कि इस बगावत को 24 घंटे के भीतर हल कर लिया गया.
"इसका मतलब ये है कि यह सिर्फ़ एक अप्रिय घटना थी. इस घटना का पुतिन की प्रतिष्ठा पर कुछ प्रभाव पड़ा है लेकिन रूस पर बहुत सीमित प्रभाव पड़ा है."
इस विद्रोह का सकारात्मक नतीजा भी हो सकता है क्या?
प्रोफेसर राजेश मिश्र कहते हैं, 'हां बगावत का सकारात्मक प्रभाव ये पड़ सकता है कि अब चीन आगे बढ़कर रूस पर यूक्रेन के साथ शांति वार्ता शुरू करने का ज़ोर डाल सकता है.
कभी माने जाते थे करीबी, अब रिश्ते बिगड़े
कहा जाता है कि वागनर ग्रुप के प्रमुख प्रिगोजिन के रिश्ते रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से काफी अच्छे हैं. प्रिगोजिन प्राइवेट आर्मी के प्रमुख भी पुतिन की सत्ता में आने के बाद ही बने. उससे पहले वह सिर्फ एक व्यापारी हुआ करते थे.
रूस- यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध में यूक्रेन के पूर्व में बखमूत पर कब्जा करने के लिए वागनर ग्रुप के सैकड़ों लड़ाकों की जान गई थी. बखमूत पर जीत हासिल करने का संघर्ष कई महीनों तक चला लेकिन उनका ये उद्देश्य पूरा नहीं हो सका.
जिसके बाद वागनर ग्रुप के मुखिया प्रिगोजिन ने सैन्य नेतृत्व पर आरोप लगाया कि उन्होंने हथियारों की सप्लाई में कम कर दिया था. प्रिगोजिन ने सोशल मीडिया पर भी कई वीडियो भी साझा किए थे जिनमें उन्होंने रूसी सेना की नाकामियों के बारे में बात की थी. हालांकि तब तक उन्होंने कभी भी सीधे राष्ट्रपति पुतिन पर निशाना नहीं साधा था.
हालांकि कई जगह पर उन्होंने "हैप्पी ग्रैंडफादर" का ज़िक्र किया, जिसे पुतिन से जोड़ा जा सकता है. बीते महीने प्रोगजिन ने अपने एक वीडियो में सवाल उठाते हुए कहा था कि अगर आपको ये पता चले कि ये हैप्पी ग्रैंडफादर पूरी तरह से बेवकूफ हैं तो, रूस इस युद्ध को किस तरह से जीत सकेगा.
23 जून प्रोगजिन ने एक और वीडियो साझा किया जिसमें वह रूसी जनता से कह रहे थे कि इस युद्ध की पूरी कहानी ही झूठी है. "बदमाशों के एक छोटे से समूह" ने इस बहाने खुद की तरक्की का रास्ता बनाने की कोशिश की है और उन्होंने ऐसा कर जनता और राष्ट्रपति को धोखा दिया है.
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