फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने 9 नवंबर को दक्षिण फ्रांस के टूलॉन शहर में साल 2014 से अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में चल रहे ऑपरेशन बरखाने को खत्म करने की घोषणा की है. इसके साथ ही मैक्रों ने फ्रांस की नई राष्ट्रीय रणनीति का परिचय देते हुए कहा कि अफ्रीका में फ्रांस की रणनीति को बदलने की जरूरत है और अब बदलाव करने का समय आ गया है. 


घोषणा के दौरान राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि अफ्रीकी सहयोगी देशों के साथ सलाह-मशविरे के आधार पर फ्रांस अगले 6 महीनों में नई रणनीति बनाएगा. तहालांकि उन्होंने कहा कि एक बड़े अंतरराष्ट्रीय मिशन के हिस्से के रूप में फ्रांसीसी सेनाएं इस क्षेत्र में बनी रहेंगी. वे मेजबान देशों के साथ तय की जाने वाली नई व्यवस्था के तहत वहां होंगे. उन्होंने कहा कि भविष्य में तैयार की गई रणनीति के अनुसार वह साहेल में फ्रांस के सैनिक की गतिशीलता को कम करेंगे. अगली रणनीति अफ्रीकी सेनाओं के साथ घनिष्ठ सहयोग पर आधारित होगा. 


क्या है ऑपरेशन बरखाने


आतंकवाद रोधी मिशनों के लिए फ्रांसीसी सेना अफ्रीका के कई देशों में पिछले एक दशक से सक्रिय है. इन देशों में फ्रांसीसी सेना की एक बड़ी टुकड़ी तैनात रहती है और यह अफ्रीकी देशों में आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन बरखाने के जरिए कार्रवाई करती है. ऑपरेशन बरखाने की शुरुआत 1 अगस्त 2014 को की गई थी. यह एक विद्रोही विरोधी अभियान है जिसका नेतृत्व अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में इस्लामी समूहों के खिलाफ फ्रांसीसी सेना द्वारा किया जाता है. इस टुकड़ी में फ्रांसीसी सेना के 5000 कमांडो शामिल हैं, जिसका स्थायी रूप से मुख्यालय चाड की राजधानी एन'जामेना में है. 


इस ऑपरेशन का नेतृत्व पांच देशों के सहयोग से किया जाता है, जिनमें से सभी पूर्व फ्रांसीसी उपनिवेश हैं जो साहेल: बुर्किना फासो , चाड , माली , मॉरिटानिया और नाइजर में फैले हुए हैं.  इन देशों को सामूहिक रूप से " जी5 साहेल " कहा जाता है. 


क्या फ्रांस ने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया


साहेल में फ्रांस के इस ऑपरेशन को शुरू करने के पीछे दो उद्देश्य थे. पहला, माली को आतंकवाद से मुक्त करना और दूसरा, पश्चिम अफ्रीका में काउंटर टेररिज्म ऑपरेशन के माध्यम से आतंकवादी संगठनों को बेअसर करना. दरअसल साल 2012 में अल क़ायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे बहुराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन अपने सहयोगी संगठनों के माध्यम से पूरे साहेल क्षेत्र में अपनी गतिविधियां बढ़ा रहे थे और माली की सैन्य सरकार उसे रोकने में कामयाब नहीं हो पा रही थी.


आख़िर में माली की सैन्य सरकार के कहने पर फ्रांस की ओलांद सरकार ने साल 2013 में वहां अपनी सेना भेजी. फ्रांसीसी सेना ने शुरू में ऑपरेशन सर्वल के हिस्से के रूप में 2013 की शुरुआत में माली में हस्तक्षेप किया , जिसने सफलतापूर्वक देश के उत्तरी आधे हिस्से को इस्लामी समूहों से वापस पा लिया. उस वक्त ऑपरेशन बरखाने का उद्देश्य उस सफलता का अनुसरण करना है और इसने साहेल क्षेत्र के एक विशाल क्षेत्र में फ्रांसीसी सेना के अभियानों का विस्तार किया है. 


इस ऑपरेशन का उद्देश्य देशों की सरकारों को अपने क्षेत्र पर नियंत्रण बनाए रखने में मदद करना और इस क्षेत्र को इस्लामी आतंकवादी समूहों के लिए एक सुरक्षित आश्रय बनने से रोकना है जो फ्रांस और यूरोप पर हमला करने की योजना बना रहे हैं. 


उस वक्त फ्रांस ने साहेल क्षेत्र में ऑपरेशन बरखाने के ज़रिए जिहादियों का खात्मा करने के लिए अपने लगभग पांच हज़ार सैनिक तैनात किए थे. इस ऑपरेशन के तहत 2014 में कई खूंखार आतंकवादियों को खदेड़ दिया गया. इस ऑपरेशन के तहत ही साल 2020 में, अलकायदा के प्रमुख नेता अब्देल मालेक ड्रूकडेल और बाह अग मौसा को मार गिराया गया. फ्रांसीसी सेना ने साल 2021 में अफ्रीकी देश नाइजर में खूंखार आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के एक टॉप कमांडर को मार गिराया है. यह कमांडर स्थानीय स्तर पर सैकड़ों लोगों की हत्याओं और नरसंहार में शामिल था. 


विफलताओं की एक श्रृंखला देखी गई


हालांकि, ऑपरेशन बरखाने में विफलताओं की एक श्रृंखला देखी गई. इस ऑपरेशन की शुरुआत माली, नाइजर, बुर्किना फासो, मॉरिटानिया और चाड में आतंकवाद का मुकाबला करने के उद्देश्य से की गई थी. लेकिन पिछले एक दशक में इन क्षेत्रों में इस्लामिक स्टेट सहित आतंकवादी संगठनों के नए समूहों की वृद्धि देखी गई है. 


सशस्त्र संघर्ष स्थान और घटना डेटा प्रोजेक्ट (एसीएलईडी) के अनुसार, हिंसा ने माली, बुर्किना फासो और नाइजर में 2022 की पहली छमाही में 5,450 लोगों की जान ले ली थी, जो पिछले साल की तुलना में काफी ज्यादा है. द अफ्रीका सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक स्टडीज के अनुसार इन क्षेत्रों में साल 2020 की इस्लामी हिंसा में 1.180 लोगों की मौत हुई थी जो  2021 में बढ़कर 2.005 घटनाएं दर्ज की गई. 


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