ब्रितानी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने नाटकीय तरीके से अपनी कैबिनेट में फेरबदल की है. नई कैबिनेट में सुनक ने पूर्व पीएम डेविड कैमरन की एंट्री कराई है. ब्रिटेन की नई कैबिनेट में पूर्व पीएम डेविड कैमरन को विदेश मंत्री बनाया गया है. इससे पहले जेम्स क्लेवरली विदेश मंत्री थे. जबकि भारतीय मूल की गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन को बर्खास्त कर दिया और उनका पद जेम्स क्लेवरली को दे दिया गया.
विदेश मंत्री बनाए जाने के बाद डेविड कैमरन ने ऋषि सुनक की तारीफ की और कहा कि देश के कठिन समय में वह प्रधानमंत्री के साथ हैं. उन्होंने कहा, "मैं पिछले 7 सालों से राजनीति में नहीं हूं. मुझे उम्मीद है कि 11 साल तक कंजर्वेटिव नेता और 6 साल तक प्रधानमंत्री बने रहने का मेरा अनुभव देश को चुनौतियों से निकालने में मदद करेगा."
कैमरन को वापस राजनीति में लाने के पीछे की वजह
सीएनएन के एक लेख के मुताबिक, ब्रिटेन की सरकार में डेविड कैमरन को वापस लाने के पीछे आने वाला आम चुनाव सबसे बड़ी वजह है. ज्यादातर लोग मानते हैं कि सुएला ब्रेवरमैन को सुनक एक अड़चन के तौर पर देखते थे. कहा गया कि वह काफी समय से विवादस्पद मुद्दों पर बोल रही थी. हालांकि उन्हें बर्खास्त करने के लिए सुनक की स्थिति काफी कमजोर थी इसलिए उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को आगे कर ये फैसला लिया.
हालांकि सुएला ब्रेवरमैन को बर्खास्त करने के बाद ब्रिटेन की संसद में सुनक के खिलाफ एक अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी चल रही है.
सुएला ब्रेवरमैन को बर्खास्त करने फैसले के साथ सुनक अपने आलोचकों को एक संदेश दे रहे हैं कि वह चुनाव के लिए तैयार हो रहे हैं और नरमपंथियों के साथ अपना नसीब आजमा रहे हैं. सरकार में फेरबदल करने का फैसला कई जानकारों को समझदारी भरा कदम लग रहा है क्योंकि चुनाव के लेकर जो आंकड़ों सामने आए हैं वो कंजर्वेटिव पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है. कई लोगों को लगता है कि ऋषि सुनक को सबसे पहले अपनी पार्टी से ही मुकाबला करना होगा, क्योंकि पार्टी के सांसद, सदस्य कई गुटों में बंटे हुए हैं.
कैमरन को सरकार में लाने से सुनक को कैसे होगा फायदा
कुछ कंजर्वेटिव नेताओं का मानना है कि कैमरन को सरकार में शामिल करने का फैसला सही फैसला है. इस फैसले से पार्टी गंभीर और परिपक्व दिखती है. हालांकि कई लोगों का मानना है कि कैमरन की नियुक्ति से सुनक को चुनाव में कोई खास फायदा नहीं होगा, बल्कि वह चाहते हैं कि चुनाव से पहले उनकी सरकार 'सुरक्षित' और स्थिर हाथों में रहे.
विदेश मंत्री बनने के बाद क्या फैसले ले सकते हैं कैमरन?
ब्रिटेन के सामने रूस-यूक्रेन जंग, हमास-इजरायल जंग, और सीरिया के हालातों को लेकर कई नीतियां बनाने की जरूरत है. डेविड कैमरन के सामने इन मुद्दों को सही तरीके से संभालने की चुनौती होगी. दुनिया भर के कई ऐसे नेता हैं जो पहले कैमरन के समकक्ष थे लेकिन अब वे राजनीति से दूर हैं, जैसे एंजेला मर्केल, बराक ओबामा, निकोलस सरकोजी. हालांकि कई पुराने नेता हैं जो आज भी सत्ता में हैं और उन नेताओं से कैमरन के तालमेल भी अच्छे हैं. जैसे डोनाल्ड टस्क, मार्क रुटे, व्लादिमीर पुतिन, बेंजामिन नेतन्याहू, जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला, अब्देल फतह अल -सिसी, शी जिनपिंग, सिरिल रामफोसा और नरेंद्र मोदी.
ब्रितानी अखबार द गार्जियन के मुताबिक, डेविड कैमरन के आगे चुनौती होगी कि वह हमास के हारने के बाद गाजा पर इजरायल के रुख और ब्रिटेन की नीतियों में कैसे संतुलन बनाएंगे.
किन मुद्दों पर सुनक और कैमरन की अलग है राय
विदेश मंत्री बनाए जाने के बाद डेविड कैमरन ने एक्स पर एक पोस्ट लिखा है. उन्होंने लिखा, मैंने ऋषि सुनक की ओर से लिए गए कई व्यक्तिगत फैसलों से असहमत रहा हूं, लेकिन फिर भी सुनक सबसे मजबूत और काबिल प्रधानमंत्री हैं. डेविड कैमरन के विदेश मंत्री बनाए जाने के बाद दोनों नेताओं के उन बयानों और फैसलों को पर सवाल उठ रहे हैं जिस पर सुनक और कैमरन की राय बंटी हुई है.
इस बीच पांच हफ्ते पहले सुनक की ओर से दिए गए कांफ्रेस स्पीच को याद किया जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि पिछले तीस सालों की सरकार विफल रही है. जबकि 13 साल से खुद उनकी ही पार्टी सत्ता में है. इसके अलावा उसी भाषण में हाई-स्पीड रेल योजना को खारिज कर दिया था, इस योजना की शुरूआत डेविड कैमरन की सरकार में की गई थी.
प्रधानमंत्री के रूप में कैमरन ने चीन के साथ ब्रिटेन के संबंधों के "स्वर्ण युग" की शुरुआत की. कैमरन ब्रिटेन में चीनी निवेश की वकालत करते थे. उन्होंने 2015 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ब्रिटेन दौरे पर उनका भव्य स्वागत किया था, दोनों ने तब एक स्थानीय पब में बियर और मछली भी खाई थी. लेकिन मौजूदा सरकार में चीन की लगातार आलोचना की जाती है, दोनों देशों के बीच संबंध भी अभूतपूर्व स्तर पर खराब हुए हैं.
कैमरन का सियासी सफर
डेविड कैमरन साल 2010 से 2016 तक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे हैं. साल 2016 में उन्होंने यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के बाहर निकलने पर हुए जनमत संग्रह के बाद इस्तीफा दे दिया था. तब उन्होंने चेतावनी दी थी ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलने के गंभीर आर्थिक और राजनीतिक परिणाम होंगे. स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कंजर्वेटिव पार्टी के लिए काम करना शुरू किया था.1992 में कैमरन को नोर्मन लमोन्ट के चांसलर का सलाहकार नियुक्त किया गया. इसके बाद उन्हें गृह मंत्री के सलाहकार के तौर पर काम करने जिम्मा दिया गया. फिर 2001 में संसद के सदस्य के रूप में चुनकर आए. साल 2005 में कंजर्वेटिव पार्टी की लीडरशिप कैमरन को दी गई. इसके बाद 2010 के आम चुनाव में वह प्रधानमंत्री चुने गए.
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