सबसे बड़े मजदूर संगठन के मुताबिक, जिम्बाब्वे में हजारों कर्मचारियों को टीकाकरण नहीं कराने पर नौकरी से हाथ धोने की धमकी दी गई है. जिम्बाब्वे कांग्रेस ऑफ ट्रेड यूनियन्स 35 मजदूर संगठनों का समूह है जो 189,000 लोगों का प्रतिनिधित्व करता है. उसने नियोक्ताओं पर कर्मचारियों के अधिकार में दखलअंदाजी का आरोप लगाया है.
जिम्बाब्वे कांग्रेस ऑफ ट्रेड यूनियन्स का ये भी कहना है कि टीकाकरण को अनिवार्य करनेवाला कोई कानून नहीं है. उसने कर्मचारियों को वैक्सीन लगवाने के मुद्दे पर सरकार और छह दूसरी कंपनियों को अदालत में घसीट लिया है.
मजदूर संगठन ने कोविड वैक्सीन के मुद्दे पर कोर्ट का किया रुख
उसकी दलील है कि कंपनियां मुद्दे को जबरन थोपकर 'कानून अपने हाथ में ले रही हैं'. छह कंपनियों के साथ-साथ अटॉर्नी जनरल और श्रम मंत्री को संबोधित याचिका में संगठन ने जबरन वैक्सीन लगवाने को खत्म करने की मांग की है और कहा है कि हर शख्स टीकाकरण के प्रभावों और नतीजों पर पूरी तरह से विचार करने के बाद व्यक्तिगत फैसला ले सकता है.
मजदूर संगठन का ये भी तर्क है कि 'किसी को मजबूर नहीं किया जा सकता' कोरोना की वैक्सीन लगवाने के लिए. दावे के मुताबिक, नियोक्ताओं ने कर्मचारियों को टीकारकरण नहीं कराने तक ड्यूटी पर आने से रुकने का आदेश दिया है. टेलीकॉम ग्रुप टेलवन ने भी कर्मचारियों के कोविड-19 भत्ते में कटौती करने की धमकी दी है.
कंपनियों की तरफ से टीकाकरण के फैसले पर जताई आपत्ति
21 जुलाई 2021 को टेलवन ने कर्मचारियों के नाम नोटिस जारी कर आदेश दिया है कि बिना टीकाकरण के कर्मचारी तत्काल छुट्टी पर चले जाएं. अटॉर्नी जनरल प्रिंस मचाया ने मजदूर संगठन की अदालत में चुनौती को गलत बताया है और कहा है कि न तो उनकी और न ही श्रम मंत्री का उसमें हवाला दिया जाना चाहिए था. ये कैबिनेट की जिम्मेदारी है न कि इस अदालत की कि मंत्री को कानून बनाने के लिए बाध्य किया जाए. कोविड-19 के आर्थिक प्रभाव से उबरते हुए कंपनियां कर्मचारियों को कोविड-19 की वैक्सीन लगवाने के लिए प्रेरित कर रही हैं.
Social Mindfulness के मामले में जापानी सबसे सजग, जानें क्या है भारत का हाल
कुछ नियोक्ता हर पखवाड़े कोविड टेस्ट पर जोर दे रहे हैं, और अब कार्यस्थल में कर्मचारियों के दाखिले से पहले वैक्सीन सर्टिफिकेट की मांग हो रही है. मजदूर संगठन को डर है कि हजारों कर्मचारी अपनी नौकरी से हाथ धो सकते हैं अगर सरकार ने मामले में दखल नहीं दिया. संगठन के महासचिव ने कहा, "नियोक्ताओं के बीच ये चलन आम हो गया है और इसलिए हमने अदालत जाने का फैसला किया. कई कंपनियां कर्मचारियों को जानवरों की तरह टीकाकरण के लिए केंद्रों पर ले जा रही हैं."