क्या है पांडा डिप्लोमेसी, जिसके तहत अमेरिका और जापान जैसे देश चीन को अदा कर रहे हैं कर्ज
अमेरिका से लेकर जापान और मलेशिया जैसे देश चीन से नन्हें भालू कर्ज दे कर ले रहे हैं. कोई भी देश नन्हें भालूओं यानी पांडा पर अपना मालिकाना हक नहीं जता सकते इसके पीछे चीन की पांडा डिप्लोमेसी है.
इस हफ्ते जापान से चार पांडा को वापस उनके देश चीन भेज दिया गया. इन चारों पांडा में से जियांग का जन्म 2017 में टोक्यो के यूनो चिड़ियाघर में हुआ था, जबकि तीन पांडा पश्चिमी वाकायामा के एक पार्क के हैं.
पांडा 1950 के दशक से चीन की विदेश नीति का हिस्सा रहे हैं. चीन 'पांडा कूटनीति' कार्यक्रम के तहत कई देशों को पांडा देता रहा है. चीन ने 1957 में यूएसएसआर को अपना पहला पांडा पिंग पिंग गिफ्ट के तौर पर दिया था. इसी तरह उत्तर कोरिया (1965), अमेरिका (1972), जापान (1972, 1980, 1982), फ्रांस (1973), ब्रिटेन, जर्मनी (1974) और मैक्सिको (1975) को भी चीन से पांडा मिले.
अब जापान ने चीन के तोहफे को वापस उसी के मुल्क भेज दिया गया है. ऐसा पहली बार नहीं है जब पांडा को वापस उसके मुल्क भेजा गया है. कुछ पांडा को खास तरह के चिड़ियाघर में रखने के बाद कई सालों बाद चीन वापस भेज दिया जाता है. आईये इसके पीछे की वजह समझते हैं.
चीन के बाहर के चिड़ियाघरों में रह रहे पांडा चीन के कूटनीति ऋण समझौतों के अधीन हैं. जिन चिड़ियाघरों में ऋण समझौते में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है , उन चिड़ियाघर से पांडा को वापस चीन भेजा जा रहा है.
दूसरे देशों को पांडा देकर पैसे वसूलता है चीन
पांडा कूटनीति ( Panda diplomacy ) के तहत ही चीन दूसरे देशों को पांडा भेजता है. चीन ने 1941 से 1984 तक दूसरे देशों को पांडा गिफ्ट किए. 1984 में नीति में बदलाव किया गया, जिसके तहत चीन से दूसरे देशों में आने वाला पांडा पर टैक्स लगाना शुरू कर दिया.
क्या ये नन्हे भालुओं पर चीन का ही हक है?
1984 में चीन ने दूसरे देशों को गिफ्ट के तौर पर पांडा देना बंद कर दिया. चीन इसके पीछे की वजह अपने देश से पांडा के लुप्त होने की वजह करार देता है. अभी चीन के जंगलों में लगभग 1,860 विशाल पांडा बचे हैं . 600 पांडा चीन के चिड़ियाघरों में कैद है. चीन जिन देशों को पांडा देता है उन्हें हर साल चीन को 1 पांडा के बदले 1 मिलियन की राशि देनी पड़ती है. ये पैसे पांडा संरक्षण परियोजनाओं की तरफ से दिए जाते हैं.
अगर चीन के बाहर दूसरे देश के चिड़ियाघरों में कोई पांडा पैदा होता है तो नए पांडा के लिए इन देशों को 400,000 राशि का भुगतान चीन को करना पड़ता है. पांडा कूटनीति के तहत कोई भी देश चीन से पांडा की खरीदारी नहीं कर सकता. इस तरह पांडा और उसके बच्चे जो दूसरे देशों में पैदा हो रहे हैं वो अभी भी चीन की संपत्ति बने हुए हैं.
तो इस वजह से भारत में नहीं मिलते ये नन्हें और प्यारे भालू
जापान ने चीन से साल 1972 में पहला पांडा लिया था. 2013 के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में कहा गया था पांडा को गिफ्ट के तौर पर दूसरे देशों को देना व्यापार सौदों के तहत सही साबित होता है. लेकिन अब चीन ने जापान के साथ अपने रिश्ते पर नाखुशी का इजहार करते हुए अपने पांडा को वापस बुला लिया है. पांडा रखने पर बड़ा कर्ज चीन को देना इसके अलावा रख- रखाव में एकस्ट्रा खर्च होना भी देशों के लिए एक बड़ा टास्क है, यही वजह है कि भारत जैसे विकासशील देशों में पांडा नहीं है.
कई देश नन्हें भालूओं के बदले चीन को चुका रहे हैं बड़ी रकम
वहीं एशिया के बाहर के देश जैसे फ्रांस, स्पेन, अमेरिका, जैसे देश अपने चिड़ियाघरों में विशाल पांडा रखते हैं. इनमें से ज्यादातर चिड़ियाघरों में पांडा के बच्चे हैं जिन्हें रखने के लिए ये देश चीन को हर साल 400,000 देते हैं.
इन देशों में सिर्फ बेबी पांडा ही क्यों ?
पांडा कूटनीति के तहत जैसे ही बेबी पांडा बड़े होने लगते हैं उन्हें चीन वापस भेजना एग्रिमेंट का हिस्सा है. इसके अलावा कई देशों में यह एक वित्तीय स्थिति भी मानी जाती है जहां के चिड़ियाघर फिर से ऋण शुल्क देने में असमर्थ होते हैं.
तो क्या अमेरिका के पास भी नहीं है पांडा
अमेरिका के चिड़ियाघरों में पांडा देखने को मिलते हैं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि ये अमेरिका की प्रॉपर्टी का हिस्सा है. अमेरिका के जू में दिखने वाले सभी पांडा दूसरे देशों की ही तरह चीन की प्रॉपर्टी हैं.
चीन समय-समय पर कुछ देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए राजनयिक तोहफे के तौर पर पांडा गिफ्ट करता रहा है. लेकिन चीन का ये आईडिया काम नहीं कर पाया जब चीन पर पूंजीवादी रणनीति काबिज होने लगी. अब पांडा डिप्लोमेसी के तहत ही चीन सभी देशों को पांडा दे रहा है.
कुल मिलाकर कहें तो ये कहना होगा कि पांडा डिप्लोमेसी के तहत ही कोई भी देश भारी रकम अदा करने के बाद भी इन भालूओं पर मालिकाना हक नहीं जता सकता, और चीन ही इन नन्हें भालूओं का मालिक बना हुआ है दूसरे देश चीन को सिर्फ कर्ज अदा कर रहे हैं.
अमेरिका के स्मिथसोनियन नेशनल चिड़ियाघर ( Smithsonian National Zoo) चिड़ियाघर अटलांटा (Zoo Atlanta) सैन डिएगो चिड़ियाघर (San Diego Zoo) में पाए जाने वाले सभी पांडाओं पर मालिकाना हक चीन का ही है. दूसरे देशों की तरह अमेरिका चीनी सरकार को शुल्क देता है.
2019 में पांडा 'बेई बेई ' अमेरिका से चीन भेजा गया था
वाशिंगटन के राष्ट्रीय चिड़ियाघर में पांडा 'बेई बेई ' साल 2019 में चार साल का हो गया. चार साल के पांडा जवान माने जाते हैं और वो प्रजनन कर सकते हैं इसलिए पांडा बेई बेई को चीन वापस भेज दिया गया. इस तरह चीन काफी लंबे समय से पांडा को राजनीतिक औजार के रूप में इस्तेमाल करता रहा है.
शुरूआत में चीन ने अमेरिका से भालुओं के बदले नहीं लिए थे टैक्स
चीनी सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका की तरफ से मिलने वाली मदद के लिए 1941 में न्यूयॉर्क के ब्रोंक्स चिड़ियाघर में दो पांडा भेजे थे.
जब राष्ट्रपति निक्सन और उनकी पत्नी ने 1972 में चीन का दौरा किया, तो पैट निक्सन ने चीनी प्रधान मंत्री से कहा कि उन्हें पांडा से बहुत प्यार है. जब पैट निक्सन चीन से अपने मुल्क अमेरिका लौटने लगे तो चीन की तरफ से उन्हें दो पांडा गिफ्ट के तौर पर मिले. जिनका नाम हिंग-हिंग और लिंग-लिंग था. ये दोनों ही पांडा के बदले अमेरिका चीन को किसी तरह का कोई ऋण अदा नहीं कर रहा था. ये दोनों जोड़े 1990 में मर गए.
मलेशिया भी चीन को लौटा चुका है पांडा
2019 में मलेशियाई सरकार ने अपने दो वयस्क पांडा को चीन वापस भेजा था. तत्कालीन प्रधान मंत्री नजीब रजाक ने 2014 में चीन के साथ पांडा डिप्लोमेसी पर हस्ताक्षर किए थे. जिसके तहत मलेशिया ने 2024 तक भालुओं को किराए पर लेने के लिए चीन को हर साल 1 मिलियन का भुगतान करने पर सहमति जताई थी.
अलग-अलग देशों से चीन ने पांडा डिप्लोमेसी की शुरुआत कैसे की
सांतवी शताब्दी के दौर में चीन की महारानी वू ने जापान में दो पांडा भेजे थे. माओ त्से तुंग ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया. माओ त्से तुंग चीन में 1966 में हुई सांस्कृतिक घोषणा के अभिकल्पकार थे और चीनी साम्यवादी पार्टी के सह-संस्थापक थे. चीन में लंबे खिचे गृह युद्ध के दौरान उन्होंने सैन्य रणनीति मे अपनी महारत को दुनिया के सामने साबित किया.
शीत युद्ध के दौरान रूस और उत्तर कोरिया को पांडा दिए गए थे, और अमेरिका को 1972 में राष्ट्रपति निक्सन की चीन यात्रा के बाद एक जोड़ी पांडा भेजवाया गया. इस तरह चीन अमेरिका जैसी विदेशी ताकत और कई देशों को अपना राष्ट्रीय पशु देकर राजनीतिक संबंधों में सुधार करने में कामयाब हुआ. लेकिन जैसे-जैसे चीन तेजी से पूंजीवादी होता गया, चीन ने पांडा को भी एक आर्थिक उपकरण बना लिया.
पूंजीवादी रणनीति के बाद चीन ने गिफ्ट के बजाए अपने पांडा को ऋण के बदले देना शुरू किया. 1980 के दशक में चीन को छोटे भालुओं के बदले बड़े देशों से प्रति माह 50,000 ऋण मिलने लगा, और पांडा की कोई भी संतान अभी तक चीन की संपत्ति बनी हुई है. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के कैथलीन बकिंघम और पॉल जेप्सन के मुताबिक पांडा के लिए दिया जाने वाला ऋण स्कॉटलैंड, कनाडा और फ्रांस जैसे देशों और चीन के बीच गहरे और ज्यादा भरोसेमंद रिश्ते बनाने में मददगार साबित हो रहे हैं.