सदन या सदन से बाहर हंगामा कोई बड़ी बात नहीं, अक्सर सत्ता पक्ष और विपक्ष कई मुद्दों पर जमकर सदन के अंदर से लकेर बाहर तक बहस करते हैं. खासकर जब किसी बिल पर चर्चा हो रही हो तो ऐसा ही देखने को मिलता है. पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी ऐसा मंजर सामने आया जहां एक विधेयक में संशोधन को मंजूरी मिलने के बाद जमकर हंगामा हो रहा है. पाकिस्तान की नेशनल असेंबली (संसद) ने प्रधान न्यायाधीश के कार्यकाल को सीमित करने वाले संशोधित विधेयक को मंजूरी दे दी है. आइए जानते हैं क्या है ये और क्या बदलाव हुआ है.


336 सदस्यों वाली 'नेशनल असेंबली' में मिली मजूरी


डॉन न्यूज के मुताबिक पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली में कुल 336 सदस्य हैं जिनमें से मतदान के दौरान 225 ने विधेयक का समर्थन किया. सरकार को इस संशोधन विधेयक को पारित करने के लिए 224 वोट चाहिए थे, ऐसे में 225 लोगों के समर्थन से यह विधेयक दो तिहाई बहुमत से पास हो गया.


पाकिस्तान का अनुच्छेद 75 क्या कहता है


पाकिस्तान के संविधान का अनुच्छेद 75 कहता है कि दोनों सदनों में विधेयक पारित होने के बाद उसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. एक बार राष्ट्रपति उसपर हस्ताक्षर कर दें तो वो कानून बन जाएगा.


संशोधन के बाद क्या होगा बदलाव


इस संशोधन के बाद जो अभी मुख्य न्यायाधीश हैं उनके सेवानिवृत्त होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश के मुख्य न्यायाधीश के पद पर खुद से पदोन्नति पर रोक लग जाएगी. संशोधन में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का चयन अब एक संसदीय समिति द्वारा किया जाएगा और उनका कार्यकाल तीन साल का निश्चित होगा.


विपक्ष क्यों कर रहा विरोध
विपक्ष लगातार इसका विरोध कर रहा है. उसका कहना है कि शहबाज सरकार ऐसा इसलिए कर रही है क्योंकि उसका उद्देश्य न्यायमूर्ति मंसूर अली शाह की नियुक्ति को रोकना है. दरअसल न्यायमूर्ति मंसूर अली शाह वर्तमान न्यायाधीश काजी फैज ईसा के बाद चीफ जस्टिस बनने वाले थे. विपक्ष का कहना है कि इस तरह विधेयक में संशोधन न्यायपालिका में नियुक्ति का राजनीतिकरण कर देगा.


इमरान खान की पार्टी का क्या है रुख
इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के नेता इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं. पीटीआई नेता अली जफर ने आरोप लगाया कि उनकी पार्टी के सांसदों को विधेयक के पक्ष में वोट देने के लिए मजबूर किया गया. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के सीनेटर गैरमौजूद थे क्योंकि उन्हें डर था कि सरकार के पक्ष में वोट देने के लिए जबरन उनपर दबाव बनाया जाएगा.