2:18 फॉर्मूले से डरकर चीन के राष्ट्रपति ने दिल्ली में होने जा रहे जी20 सम्मेलन में आने से किया मना?
रूस के राष्ट्रपति के बाद अब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी जी 20 सम्मेलन में आने से इनकार कर दिया है. जिनपिंग ने कहा है कि प्रधानमंत्री ली क्यांग जी 20 में चीन का प्रतिनिधित्व करेंगे.
दिल्ली में 9 सितंबर से शुरू होने जा रहे दो दिवसीय जी 20 सम्मेलन में सुरक्षा को लेकर भारत सरकार ने चौकचबंद इंतजाम तो कर लिए हैं, लेकिन चीन और रूस के रवैये ने सिरदर्द बढ़ा दिया है. दोनों देशों के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और व्लदिमीर पुतिन ने आने भारत आने से इनकार कर दिया है. ऐसे में मेजबान भारत के सामने बड़ी चुनौती ये खड़ी हो गई कि इस ग्रुप में शामिल देशों का साझा बयान कैसे जारी किया जाए जो कि एक अहम दस्तावेज होता है.
दरअसल रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने काफी दिनों पहले ही ये साफ कर दिया है कि वह जी 20 में हिस्सा लेने भारत नहीं आ रहे हैं. उनकी जगह रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव बैठक में हिस्सा लेंगे. अब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी जी 20 सम्मेलन में आने से मना कर दिया है. जिनपिंग ने कहा है कि प्रधानमंत्री ली क्यांग जी20 में चीन का प्रतिनिधित्व करेंगे.
क्यों सम्मेलन में शामिल नहीं हो रहे चीन के राष्ट्रपति
इस सवाल के जवाब में अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हर्ष वी पंत ने एबीपी से बातचीत में बताया कि चीनसे रिश्ते इतने खराब हैं और भरोसे की इतनी कमी है कि भारत मुश्किल से ही चीन पर विश्वास कर पाता है.
कुछ दिनों पहले ही भारत और चीन के मिलिट्री कमांडर्स की मीटिंग हुई थी, इसमें भी बॉर्डर के मसले का कोई हल नहीं निकल पाया. पिछली बार जब पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक दूसरे से मिले थे उस वक्त कहा गया था कि दोनों देश तनाव घटाने की प्रक्रिया में तेजी लाएंगे. इसमें अगर चीन सकारात्मक रुख दिखाएगा तो ये अच्छी बात है, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं.
वहीं जेएनयू के चाइनीज स्टडी के प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली ने एबीपी से बातचीत में कहा कि पिछले महीने जोहान्सबर्ग में सुरक्षा प्रमुखों की बैठक में कहा गया था कि शायद शी जिनपिंग जी20 सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. हालांकि, अब खबर आई कि शी दिल्ली नहीं आ रहे हैं. इसका एक कारण ये भी है कि अगर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दिल्ली नहीं आ रहे हैं तो चीन पूरी तरह अलग-थल पड़ जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि जी20 के पुराने सम्मेलनों को देखें तो पाएंगे की इस दौरान पिछले साल 2:18 यानी एक तरफ रूस-चीन और दूसरी तरफ उनके खिलाफ 18 देशों ने एक रिजॉल्यूशन पास किया था. इसके अलावा चीन इकलौता ऐसा देश है जिसने यूक्रेन युद्ध में रूस का समर्थन किया था. अब चीन को लग रहा है कि इस सम्मेलन में 18 देश उसकी आलोचना करेंगे. मतलब, चीन के सामने 2:18 का एक फॉर्मूला जिसके डर से वह जी-20 में हिस्सा लेने से कतरा रहा है.
इस मुद्दे पर भारत का पलड़ा भारी होने का डर
श्रीकांत कोंडापल्ली कहते हैं कि चीन को शायद लग सकता है कि भारत की तरफ से जो ग्लोबल साउथ का मुद्दा उठाया जा रहा है, इसमें चीन का प्रभाव नहीं होगा, शायद इसलिए वो सोच रहा होगा कि ग्लोबल साउथ देशों में भारत का पलड़ा चीन से ज्यादा भारी पड़ जाएगा.
इसके अलावा भारत का कहना है कि जी20 की बैठक में अफ्रीकी संघ को भी सदस्य बनाया जाए जिसमें 55 देश हैं. अगर अफ्रीकी संघ को सदस्यता मिलती है तो चीन को वहां भी प्रभाव कम होने का डर है. चीन कहीं भी भारत का प्रभाव बढ़ते देखना नहीं चाहता है.
चीन और अमेरिका का ट्रेड वार
इसके अलावा चीन और अमेरिका में ट्रेड वार भी चल रहा है. अमेरिका, भारत को अपने महत्वपूर्ण और विश्वसनीय सामरिक साझेदारी वाले देश की लिस्ट में रखता है. इसलिए ऐसा मानना है कि सम्मेलन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग अनुपस्थित रहकर एक तीर से कई शिकार की योजना पर काम कर रहे हैं.
कौन कौन अहम नेता हो रहे हैं शामिल
जी20 सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा का शामिल होना तय है.
भारत के लिए G-20 में सबसे बड़ी चुनौती?
दरअसल दो दिवसीय सम्मेलन के बाद सभी देश एक साझा बयान जारी करते हैं. इस बयान में अमेरिका और यूरोपीय देश जी 20 के साझा बयान में रूस-यूक्रेन युद्ध की चर्चा और इसके लिए रूस को जिम्मेदार ठहराने वाला बयान शामिल करना चाहते थे. अब दोनों नेताओं के न रहने पर इस बयान को ब्लॉक करने की बातें होने लगी हैं.
इसके अलावा जानकारों के अनुसार कई बार सम्मेलन में किसी फैसले को लेकर आम सहमति बनाने के लिए सभी शीर्ष नेताओं से बात करनी होती है और सभी नेताओं के वहां मौजूद रहने के कारण अक्सर कोई न कोई रास्ता निकल ही जाता है. लेकिन, इस सम्मेलन में रूस और चीन के राष्ट्रपति के जगह उनके जूनियर भाग ले रहे हैं, ऐसी स्थिति में अब बातचीत से किसी फैसले के अंत तक पहुंच पाना लगभग असंभव सा हो गया है. बता दें कि साझा बयान जारी करने की जिम्मेदारी भारत पर ही क्यों कि इस बार सम्मेलन उसी की अध्यक्षता में हो रहा है.
भारत ने प्लान 'बी' पर शुरू किया काम
अब जब शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति पुतिन जी-20 समिट में शामिल नहीं हो रहे हैं तो ज्वाइंट स्टेटमेंट तो पास नहीं हो सकता लेकिन भारत ने भी अभी तक हार नहीं मानी है. भारत इस मोर्चे पर अंतिम समय तक काम करता रहेगा. सूत्रों की मानें तो डिप्लोमैट्स ने प्लान बी पर काम करना भी शुरू कर दिया है.
पुतिन और शी के शामिल नहीं होने से समिट पर असर
इस समिट को बनाए जाने का उद्देश्य ही अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़े सभी प्रमुख मुद्दों का आपसी सहमति से समाधान निकालना है. जी-20 अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग की सबसे बड़ी वैश्विक संस्था का नाम है. इस समूह के सदस्य दुनिया की 20 सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियों वाली ताकत हैं.
दुनिया में जी 20 देशों की आर्थिक हैसियत ऐसे समझ लीजिए कि अगर इस समूह के बीस सदस्यों को हटा दिया जाए तो धरती कंगाल हो सकती है. दरअसल जी 20 में शामिल देश दुनिया की अर्थव्यवस्था यानी जीडीपी में करीब 85 फीसदी का योगदान देते हैं.
वहीं कुल वैश्विक व्यापार में जी 20 देशों का योगदान 75 फीसदी से ज्यादा है. दुनिया की लगभग दो-तिहाई आबादी भी इन्हीं 20 आर्थिक क्षेत्रों में निवास करती है.
इस ग्रुप में कौन-कौन देश शामिल है
जी20 के सदस्य देशों में चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा,इटली, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण कोरिया, जापान, मैक्सिको, रूस और यूरोपीय संघ शामिल हैं. इन सदस्यों के अलावा एक आमंत्रित सदस्या भी होता है.
इस सम्मेलन में सभी सदस्य व आमंत्रित देशों के शीर्ष नेता शामिल होते हैं. ये सभी एक मंच पर आते हैं और तत्कालीन वैश्विक आर्थिक मुद्दों का हल निकालते हैं. शिखर सम्मेलन से पहले इन सभी 20 सदस्य देशों के वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नरों का भी सम्मेलन आयोजित किया जाता है.
कैसे हुई जी-20 की शुरुआत
दुनिया को आर्थिक संकटों से बचाने के लिए ही जी 20 समूह को बनाया गया था. दरअसल साल 1990 का दशक पूरी दुनिया के लिए आर्थिक लिहाज से चुनौतीपूर्ण रहा था. उस वक्त मैक्सिको के पेसो क्राइसिस से संकट शुरू हुआ और लगातार फैलता चला गया.
धीरे धीरे एक के बाद एक उभरती अर्थव्यवस्थाएं संकट की चपेट में आती चली गईं. जिसके बाद साल 1997 में भी एशिया को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था, उसके अगले साल यानी 1998 में रूस में भी ऐसा ही संकट आया. इन्हीं संकटों को ध्यान में रखते हुए जी 20 की शुरुआत की गई.
शी जिनपिंग के भारत नहीं आने को विदेशी मीडिया कैसे देख रहा है?
ब्रिटेन की स्काई न्यूज़ ने जी-20 सम्मेलन में शी जिनपिंग और पुतिन के नहीं आने पर लिखा है कि दिल्ली में जब विश्व की कई शक्तियां मिलेंगी, तब रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर गहरे मतभेद देखने को मिल सकते हैं. जिसके कारण खाद्य सुरक्षा, क़र्ज़ संकट, जलवायु परिवर्तन जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा पटरी से उतर सकती है.
रिपोर्ट के अनुसार किसी भी साझा बयान में पश्चिमी देशों और उसके सहयोगियों का वर्चस्व रहेगा. यही कारण है कि चीन ने दूरी बना ली है.
द न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार शी जिनपिंग के साल 2012 में सत्ता संभालने के बाद से ही हर बार जी-20 सम्मेलनों में शामिल होते रहे हैं. ऐसे में इस सम्मेलन में दिल्ली न जाने के फैसले को चीन के लिए सही ठहराना आसान नहीं है.
यही कारण है कि जब विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता से शी के शामिल नहीं होने का कारण पूछा गया तो उन्होंने इस पर कोई टिप्पणी नहीं दी. रिपोर्ट के अनुसार, अगर शी जिनपिंग भारत आते तो उनकी मुलाकात अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से भी हो सकती थी. मगर चीन का फ़ैसला इस ओर इशारा करता है कि जिनपिंग अपनी शर्तों पर अमेरिका से तनाव कम करना चाहते हैं.