नई दिल्ली: एशिया के दो देशों आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच कल से युद्ध शुरू हो गया. अब तक 23 लोगों के मारे जाने और 100 से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबर है. टैंक, हेलिकॉप्टर, मिसाइल इस्तेमाल हो रहे हैं. खतरनाक ये है कि इस युद्ध में अजरबैजान के पक्ष में तुर्की खुल कर आ गया है. वहीं अमेरिका ने अर्मेनिया और अजरबैजान से सयंम बरतने को कहा है, अमेरिका ने तुरंत युद्ध बंद करने को कहा है.


आर्मेनिया ने आशंका जताई है कि अगर इसे रोका नहीं गया तो ये दो देशों का युद्ध नहीं रह जाएगा यानी विश्वयुद्ध में तब्दील हो जाएगा. आर्मेनिया ने ऐसे कई वीडियो जारी किए हैं जिसमें उसने अजरबैजान के टैंकों का विध्वंस किया है. आर्मेनिया ने मार्शल लॉ लागू कर दिया है. दोनों ही देशों ने हमले में सामान्य नागरिकों के मारे जाने की पुष्टि की है.


अजरबैजान का क्या कहना है ?


इस युद्ध में और भी देश शामिल हो सकते हैं. भारत का लगातार विरोध करने वाले तुर्की ने ये खतरा और भी बढ़ा दिया है. तुर्की के हस्तक्षेप दुनिया की नजर रूस पर है कि वो क्या कदम लेगा.  अजरबैजान के राष्ट्रपति ने आपातकालीन बैठक ली और जनता को संबोधित भी किया. उन्होंने कहा, ''ईश्वर शहीदों पर दया करे. उनका खून व्यर्थ नहीं जाएगा. अजरबैजान की सेना दुश्मन के ठिकानों पर हमला कर रही है. जिससे दुश्मन के कई उपकरण तबाह हुए हैं.''


आर्मेनिया का सीधा आरोप है- तुर्की युद्ध को भड़का रहा है


वहीं आर्मेनिया का सीधा आरोप है कि तुर्की युद्ध को भड़का रहा है और ये सिर्फ आर्मेनिया और अजरबैजान का युद्ध नहीं रह जाएगा. आर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिनियन ने कहा, ''दक्षिण काकेशस में बड़े युद्ध के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं. यह हमारे क्षेत्र की सीमाओं से परे जा सकता है. इससे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और स्थिरता को खतरा पैदा हो सकता है. मैं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपील करता हूं कि वह तुर्की की ओर से किसी भी संभावित हस्तक्षेप को रोके.''


रूस ने दोनों देशों से बात कर मामला सुलझाने की कोशिश की


आर्मनिया का आरोप है कि इस युद्ध में तुर्की के हथियार इस्तेमाल हो रहे हैं. रविवार सुबह से ही दोनों तरफ से भारी गोलाबारी की जा रही है. संयुक्त राष्ट्र और रूस ने युद्ध को रोकने की अपील की है. रूस ने तो दोनों पक्षो से बात भी की है. ये डर इसलिए इलाके के राजनैतिक और जातीय समीकरण ऐसे हैं कि युद्ध भड़का तो इस इलाके तक सीमित नहीं रहेगा.


आखिर क्यों एक दूसरे पर गोले बरसा रहे हैं दोनों देश


दोनों देशों के बीच एक इलाके पर कब्जे को लेकर लड़ाई छिड़ गई है. दोनों देशों के बीच नागरनो-काराबख इलाके को लेकर विवाद चल रहा है, दोनों देश इस पर अपना अधिकार जताते हैं. हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत इस 4400 वर्ग किलोमीटर को अज़रबेजान का घोषित किया जा चुका है, लेकिन यहां आर्मेनियाई मूल के लोगों की जनसंख्या ज्यादा है.


इसके कारण दोनों देशों के बीच 1991 से ही संघर्ष चल रहा है. वर्ष 1994 में रूस की मध्यस्थता से दोनों देशों के बीच संघर्ष-विराम हो चुका था, लेकिन तभी से दोनों देशों के बीच छिटपुट लड़ाई चलती आ रही है. दोनों देशों के बीच तभी से 'लाइन ऑफ कंटेक्ट' है. लेकिन इस साल जुलाई के महीने से हालात खराब हो गए हैं. इस इलाके को 'अर्तसख' के नाम से भी जाना जाता है.


अजरबैजान का इतिहास जानिए


अजरबैजान 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद अलग हुआ.  अजरबैजान करीब एक करोड़ आबादी वाला मस्लिम बहुल देश है. 97 फीसदी आबादी मुस्लिम है जिसमें 85 फीसदी शिया है.  ईरान के पड़ोसी अजरबैजान का तुर्की खुलकर समर्थन कर रहा है.


आर्मेनिया का इतिहास जानिए


आर्मेनिया भी 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद अलग हुआ. ईसाई बहुल आर्मेनिया की आबादी  करीब 29 लाख है.  दो तरफ से अजरबैजान ने और एक तरफ से तुर्की ने घेरा हुआ है. आर्मेनिया रूस के नजदीक है, ऐसे में रूस खुलकर सामने आ सकता है.


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