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समलैंगिक, ट्रांसजेंडर के रक्तदान पर प्रतिबंध... समझिए दुनिया भर के देशों के कानून इसे ले कर क्या कहते हैं

पिछले दिनों देश की सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक समुदाय के ब्लड डोनेशन पर रोक को लेकर चुनौती दी गई थी, और इसे हटाने की मांग की गई. सरकार ने इस मांग को गलत करार दिया था.

समलैंगिक, ट्रान्सजेंडर कम्यूनिटी ने अपने रक्तदान पर लगे प्रतिबंध को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. न्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके गे, ट्रान्सजेंडर समुदाय का खून दूसरे लोगों में डोनेट करने के बाहिष्कार को जायज ठहराया है. केन्द्र का कहना था कि इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि ऐसे लोगों में एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी का खतरा ज्यादा होता है. 

समलैंगिक लोगों के बल्ड डोनेशन पर साल 1980 के दशक में ही प्रतिबंध लगा दिया गया था. ये वो दौर था जब आज के मुकाबले में एचआईवी/एड्स जैसी बीमारियों का पता लगाने के लिए ज्यादा टूल्स नहीं थे. बता दें कि ये प्रतिबंध सभी सेक्सुअली एक्टिव समलैंगिक पुरुषों ,बाइसेक्सुअल पुरुषों, और ट्रान्सजेंडर महिलाओं पर लागू होता है.  

आइए इसे समझने की कोशिश करते हैं कि भारत में समलैंगिक समुदाय के बल्ड डोनेशन को लेकर कानून क्या है , क्या दुनिया के बाकी देशों में भी इसी तरह का कानून है . क्या दुनिया के सभी देशों में समलैंगिक मर्द या औरत को ब्लड डोनेशन पर रोक लगाई गई हैं. 

भारत में बल्ड डोनेशन के लिए क्लॉज 12 के मुताबिक रक्त दाता के लिए दिशानिर्देश बताए गए हैं. इसके मुताबिक किसी भी ब्लड डोनर को फैलने वाली बीमारियों से मुक्त होना जरूरी है . इस क्लॉज में ट्रांसजेंडर, समलैंगिक स्त्री और पुरुष , महिला सेक्स वर्कर का जिक्र किया गया है. इस कानून के मुताबिक वैसे लोगों को ब्लड डोनर की लिस्ट से बाहर रखा गया है जिनमें एचआईवी एड्स का खतरा ज्यादा होता है.  

इसी क्लॉज में समलैंगिक और ट्रांसजेंडरों का जिक्र भी किया गया है. नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल (NBTC) और राष्ट्रीय एड्स  कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन की तरफ से 2017 में एक दिशा-निर्देश जारी किया गया था. इसके मुताबिक ब्लड डोनेशन की सेवाएं ' पूरी तरह से सुरक्षित ' होना जरूरी है. 

ट्रान्सजेंडर कम्यूनिटी के सदस्य थांगजम सिंह ने इसी क्लॉज को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.  उनका कहना था कि ये धारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करती है. थांगजम सिंह ने यह कहते हुए अदालत का रूख किया था कि किसी के लिंग और सेक्सुअल इंटरेस्ट को मद्देनजर रखते हुए ब्लड डोनेशन ना करने देना पूरी तरह से मनमाना है. 

दुनिया भर के देशों में समलैंगिक समुदाय के लोगों के ब्लड डोनेशन को लेकर क्या कानून है

अमेरिका

1970 और 80 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में एड्स ने भंयकर तबाही मचाई थी. इसी समय समलैंगिक और ट्रांसजेंडर पुरुषों के ब्लड डोनेशन पर रोक लगा दी गई थी. 2015 में फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन यानी एफडीए ने ये बताया कि देश ( अमेरिका) का कोई भी पुरुष ब्लड डोनेशन कर सकता है अगर उसने पिछले 12 महीने से किसी पुरुष के साथ सेक्सुअल रिलेशन नहीं बनाए हों. 

बता दें कि एफडीए अमेरिकी स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग के अंदर काम करने वाली एक एजेंसी है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की सेफ्टी के लिए काम करती है. अप्रैल 2020 में महामारी के दौरान रक्त की कमी होने की वजह से एफडीए ने इस अवधि को घटा दिया. और तीन महीने कर दिया.  हाल ही में, अमेरिका की संघीय निकाय ने एक दिशानिर्देश का प्रस्ताव दिया है. जो समलैंगिक और ट्रांसजेंडर समुदाय पर लगाए गए इस  प्रतिबंधों को कम करेगा.

इसके अलावा, 27 जनवरी, 2023 को, एफडीए ने घोषणा की कि व्यक्ति चाहे वे किसी भी समुदाय के हों. अगर उन्होंने हाल ही में यौन संबध बनाए हैं तो वो तीन महीने तक ब्लड डोनेशन नहीं कर सकते हैं. एफडीए ने अपनी गाइडलाइन में ये भी कहा था कि पुरुष जो दूसरे पुरुष के साथ संबध बनाते हैं, महिलाएं जो दूसरी महिलाओं के साथ संबध बनाती हैं, के लिए ब्लड डोनेशन के नियम समय-समय पर बदले जाएंगे.

एफडीए ने कहा था कि ये बदलाव  वैज्ञानिक आंकड़ों  को ध्यान में रखकर लिया जाएगा. वहीं द गार्जियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक ये बताया गया था कि समलैंगिक समुदाय के लोगों पर लगे इस प्रतिबंध को हटाने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन ये पर्सन टू पर्सन डिपेंड करता है. यानी कोई भी फैसला उनके सेक्सुअल हैबिट को नजर में रखकर लिया जाएगा.


युनाइटेड किंगडम

यूनाइटेड किंगडम ने एलजीबीटी के लोगों के ब्लड डोनेशन के लिए  FAIR (For the Assessment of Individualised Risk)) अपनाया है. इसके तहत "सभी ब्लड डोनरों," के लिंग और मल्टिपल पार्टनर के साथ उनके रिश्ते की परवाह किए बगैर उनसे ये पूछा जाता है कि उनके सेक्सुअल रिलेशन एक या एक से ज्यादा साथी के साथ हैं. और अगर उन्होंने 3 महीने के अंदर एनल सेक्स किया है तो वैसे डोनर से ब्लड नहीं लिया जाएगा.

कनाडा

हेल्थ कनाडा नाम से कनाडा में एक कंपनी है जो देश में ब्लड डोनेशन की सेवाओं पर काम करती है. इसके नियम के मुताबिक 1980 तक समलैंगिक समुदाय को ब्लड डोनर की कैटेगरी से बाहर रखा गया था. इस नियम के मुताबिक समलैंगिक समुदाय के लोग सेक्सुअल रिलेशन बनाने के 30 साल तक ब्लड डोनेशन नहीं कर सकते थे. ये अवधि काफी लंबी थी. जिसका विरोध भी होता रहा है. 

प्रतिबंध की वजह क्या थी

इस नियम को लेकर कई सालों से एक्टिविस्टों का ये कहना था कि ये नीति भेदभावपूर्ण है. ये विज्ञान पर आधारित भी नहीं है.  इसके जवाब में एक शोध का हवाला भी दिया था जिसके मुताबिक खून के सभी सैंपलों को जांचने के बाद खून की आपूर्ति से एचआईवी संक्रमण होने की संभावना बहुत कम है. इसे आंकड़ों में दो करोड़ से भी ज्यादा सैंपलों में से एक के संक्रमित होने की संभावना है.

इस शोध में यह भी बताया गया था कि हाल के सालों में कोई भी एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति ने रक्तदान नहीं किया है.  बता दें कि गे पुरुषों पर यह प्रतिबंध 1992 में तब लाया गया था जब हजारों लोगों को ब्लड डोनेट करने के बाद  उन्हें एचआईवी संक्रमण हो गया था. 

हेल्थ कनाडा की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक 2011 के बाद से ऐसे लोगों के लिए ये पिरियड 10 साल से ज्यादा और 5 साल से कम के समयअंतराल पर काम करने लगा. 2019 में ये समयअंतराल घटाकर एक साल से तीन महीने कर दिया गया. 

2021 में हेल्थ कनाडा ने "हाई रिस्क वाले ब्लड डोनर " पर अपना ध्यान केन्द्रित किया. और 2022 में सेक्सुअल रिलेशन की स्क्रीनिंग को मानदंड बनाते हुए ब्लड डोनेशन के नियम बना दिए. 

इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में समलैंगिक पुरुषों के ब्लड डोनेशन को लेकर एक तरह के नियम 

2017 में  इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में भी यौनकर्मियों और समलैंगिक पुरुषों के लिए रक्त दान के नियमों में छूट दी गई थी. दोनों ही देशों में पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुष  12 महीने के बजाय 3 महीने के बाद ब्लड डोनेट कर सकते हैं. वहीं दोनों ही देशों में यौनकर्मी तीन महीने के अंतराल पर ब्लड डोनेशन कर सकते हैं. 

जानकार इस सिलसिले में कहते हैं कि इस कदम से ज्यादा लोग ब्लड डोनेट कर सकेंगे. यूके की द एडवाइजरी कमिटी ऑन द सेफ्टी ऑफ  ब्लड , टीशू एंड ऑर्गन्स के मुताबिक नए नियमों से कोई नुकसान नहीं है. 

तीन महीने के गैप का फायदा क्या है , समझिए 

दान किए जाने वाले सभी ब्लड हेपेटाइटिस बी और सी, और एचआईवी, साथ ही कुछ दूसरे वायरस की जांच से गुजरते हैं.  वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि तीन महीने के सेक्सुअल गैप से वायरस या संक्रमण खून में प्रभावशाली नहीं होता है. 

प्रोफेसर जेम्स न्यूबर्गर ने बीबीसी को बताया था कि , "वायरस की उपस्थिति को समझने के लिए तकनीकों में बहुत सुधार हुआ है, इसलिए अब हम संक्रमण में बहुत पहले चरण में ही शरीर से वायरस को निकालने में सक्षम हो गए हैं.  ऐसे में हमारे लिए यह बताना बहुत ही आसान हो गया है कि रक्त दाता को वायरस का इंफेक्शन है भी या नहीं.

टेरेंस हिगिंस ट्रस्ट में ब्लड डोनेशन पॉलिसी के हेड एलेक्स फिलिप्स ने  बीबीसी को बताया कि अलग-अलग देशों में ब्लड डोनेशन के नियम को लेकर जो सुधार हुए हैं वो "कलंकित धारणाओं पर विज्ञान की जीत"  को साबित करते हैं.  उन्होंने कहा: " तमाम सबूत ये गवाही देते हैं कि तीन महीने का सेक्सुअल गैप एकदम सही टाइम है जब समलैंगिक पुरुष अपना ब्लड डोनेशन कर सकता है. नेशनल एड्स ट्रस्ट की मुख्य कार्यकारी अधिकारी डेबोरा गोल्ड ने  बीबीसी को बताया था कि नए नियम समलैंगिक और बाइसेक्सुअल पुरुषों के लिए एक "एक बड़ी जीत" मानी जा सकती है.  

दूसरे देशों में क्या है नियम

नीदरलैंड, इज़राइल, अर्जेंटीना, फ्रांस, ग्रीस और जर्मनी जैसे देशों में पहले से ही इन समुदायों के लोगों पर ब्लड डोनेशन पर रोक लगी है या रोक लगाने की योजना बनाई जा रही है . ऑस्ट्रेलिया में, रक्त दान के समय समलैंगिक और उभयलिंगी पुरुषों को ब्लड डोनेशन की इजाजत है लेकिन वो ब्लड डोनेशन तभी कर सकते हैं जब उन्होंने ब्लड डोनेशन करने के 3 महीने से के बाद सेक्सुअल रिलेशन नहीं बनाया हो. 

चेक गणराज्य और स्विट्ज़रलैंड जैसे दूसरे देशों ने समलैंगिक समुदायों के ब्लड डोनेशन को लेकर पूरी तरह से पांबदी है. बेल्गा समाचार एजेंसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बेल्जियम में डेनमार्क, एस्टोनिया और फिनलैंड में समलैंगिक सुमदायों को  सेक्सुअल रिलेशन बनाने के एक साल  बाद ही ब्लड डोनेशन करने की इजाजत दी गई हैं. इन देशों की ही तरह स्पेन, इटली, इस्राएल और ब्रिटेन में भी रक्तदान पर इस तरह के प्रतिबंधों में छूट दी गई है.  

 

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