उभरते हुए कोरोना वायरस के वैरिएन्ट्स दुनिया भर में जारी टीकाकरण अभियान के बीच नए खतरे पैदा कर रहे हैं. कुछ वायरस के नए स्ट्रेन ज्यादा संक्रामक माने गए हैं और स्वीकृत वैक्सीन से मिलनेवाली इम्यूनिटी के लिए प्रतिरोधी हैं. मिसाल के तौर पर, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोविड-19 वैक्सीन कोरोना वायरस के दक्षिण अफ्रीकी वैरिएन्ट B.1.351 के खिलाफ परीक्षण में कम प्रभावी पाई गई है.
कोरोना वायरस के वैरिएन्ट्स ने वैज्ञानिकों की बढ़ाई चिंता
परीक्षण के शुरुआती नतीजों के आधार पर, जॉनसन एंड जॉनसन और नोवावैक्स ने भी कहा है कि दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन और ब्राजील के वैरिएन्ट आंशिक तौर पर उनकी वैक्सीन से उपलब्ध सुरक्षा को नजरअंदाज कर सकते हैं. इस तरह के वैक्सीन प्रतिरोध ने वैज्ञानिकों को वैक्सीन रणनीति पर दोबारा सोचने के लिए मजबूर कर दिया है, और कंपनियां नए वैरिएन्ट विशिष्ट वैक्सीन को विकसित करने के प्रयास में जुट गई हैं.
क्या कोविड-19 वैक्सीन का तीसरा डोज करेगा मदद?
एक बूस्टर डोज का विकल्प भी उभरते हुए वैरिएन्ट्स से लोगों की हिफाजत करने के लिए सोचा जा रहा है. ब्रिटिश सरकार एक रिसर्च पर आर्थिक मदद दे रही है. उसका मकसद वर्तमान और भविष्य में कोविड-19 के वैरिएन्ट्स के खिलाफ वैक्सीन रिस्पॉन्स को सुधारने के लिए वैक्सीन के तीसरे डोज के असर का आंकलन करना है.
माना जाता है कि दुनिया में इस तरह का ये पहला रिसर्च है. आईएएनएस के मुताबिक, बुधवार को बजट से इसका खुलासा हुआ. फंडिंग 28 मिलियन पाउंड्स (39.07 मिलियन डॉलर) निवेश का हिस्सा है जिसे ब्रिटिश सरकार कर रही है. इसके जरिए वैक्सीन टेस्टिंग, मानव परीक्षण और योग्यता में सुधार के लिए देश की क्षमता को बढ़ाना है. सरकार 22 मिलियन पाउंड्स विभिन्न कोविड-19 वैक्सीन के मेल के असर को जांचने के लिए रिसर्च पर खर्च करेगी.
इसके अलावा, सरकार ने अतिरिक्त 1.65 बिलियन पाउंड्स नकदी के प्रवाह का इंग्लैंड में सफल कोविड-19 टीकाकरण अभियान को सुनिश्चित करने के लिए वादा किया है. ब्रिटेन में पड़े पैमाने पर कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण अभियान की शुरुआत 8 दिसंबर 2020 को हुई थी. लोगों को सुरक्षित करने के लिए अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर और जर्मनी की दवा कंपनी बायोएनटेक की संयुक्त रूप से विकसित वैक्सीन को शामिल किया गया. ब्रिटेन ने किफायती और आसानी से परिवहनीय योग्य एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की कोविड-19 वैक्सीन को 4 जनवरी 2021 को उतारा था. फरवरी के अंत तक, 20 मिलियन से ज्यादा लोगों ने वैक्सीन का पहला डोज हासिल कर लिया है.
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