Xi Jinping Putin Friendship: चीन की कूटनीति से शायद कोई ही पार पा सका हो. यही है, जो उसे किसी भी परिस्थिति में अपना हाथ ऊपर रखने का मौका देती है. चीन (China) यही कूटनीतिक गेम अब रूस के साथ भी खेल रहा है. भले ही वह कह चुका हो कि रूस (Russia) और चीन की दोस्ती की कोई हद नहीं है. जमीनी तौर पर गौर किया जाए तो रूस को लेकर चीन की कथनी और करनी में काफी फर्क है.


वह रूस से अपने दोस्ती का वादा तो निभा रहा है, लेकिन इसके लिए वह कतई अपने निजी हितों को दरकिनार नहीं कर रहा है. अगर यूक्रेन का संघर्ष बढ़ता है तो उस स्थिति में कम ही उम्मीद है कि ड्रैगन रूस की लाइफ लाइन बनेगा. चीन के राष्ट्रपति शी जिंनपिंग (Xi Jinping) 'तौबा तेरे ये इशारे' वाले रवैये में आखिर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) के 'तेरी उम्मीद तेरा इंतजार करते हैं' कि मुहिम क्या रंग लाएगी बस अब वैश्विक पटल पर यही देखना बाकी है. 


क्या गुल खिलाएगी पुतिन और शी की मुलाकात


रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग के यूक्रेन संघर्ष (Ukraine Conflict) के बाद पहली बार मिल रहे हैं. क्रेमलिन के मुताबिक, दोनों वैश्विक नेता यूक्रेन युद्ध के साथ-साथ अन्य वैश्विक और स्थानीय मुद्दों पर बात करेंगे. दरअसल 15 सितंबर से शुरू हो रहे शंघाई सहयोग संगठन-एससीओ (Shanghai Cooperation Organisation-SCO) शिखर सम्मेलन में चीन और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी पर पूरी दुनिया का ध्यान होगा. चीन को ये बात साफ तौर पर पता है कि शी की रूस के साथ यह बैठक पुतिन की नीतियों का एक अनौपचारिक समर्थन करने जैसा है.


हालांकि शी इस बात को लेकर भी सचेत और सतर्क हैं कि हर कोई उन पर रूस के इस विवादास्पद नेता के साथ बातचीत करते हुए नजर गड़ाए रखेगा. फरवरी में यूक्रेन पर हमला करने से कुछ वक्त पहले व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग ने दोस्ती की कोई सीमा नहीं (No Limits Friendship) का एलान किया था. इसमें दो राय नहीं कि राष्ट्रपति पुतिन के लिए चीन के संग नजदीकी रिश्ते उनके 'एक नए बहुध्रुवी विश्व' की नजर में अहम हिस्सा है. इसमें चीन और रूस जैसे देश दुनियाभर में पश्चिमी असर पर हमेशा भारी पड़ेंगे.


इसके बाद भी जंग के मैदान में खासी बेइज्जती और नुकसान झेल चुके रूस के राष्ट्रपति पुतिन को अपने चीनी समकक्ष के साथ इस बैठक में अधिक मदद की उम्मीद नहीं पालनी चाहिए. भले ही रूसी राष्ट्रपति इस बैठक में ये कह रहे हैं कि रूस-चीन व्यापार 2022 में 200 डॉलर बिलियन के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचेगा. रूस एक चीन सिद्धांत का दृढ़ता से पालन करता है, ताइवान पर अमेरिकी उकसावे की निंदा करता है. तो भी रूस को चीन से सैन्य मदद की आस नहीं करनी चाहिए.


जब कहा था दोस्ती में कोई हद नहीं होगी


शी और पुतिन गुरुवार को उज्बेकिस्तान (Uzbekistan) में मुलाकात कर रहे हैं. पुतिन के लिए ये मुलाकात महज दिखावा भर नहीं है, लेकिन शी जिनपिंग इस मुलाकात को एहतियात के तौर पर भी ले रहे हैं. ताइवान की सरकार समर्थित सेंट्रल न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक जिनपिंग के लिए पुतिन संग ये मुलाकात बेइज्जती की वजह भी बन सकती है. ये ऐसे वक्त में हो रही है, जब यूक्रेन ने रूस के सैनिकों यहां के पूर्वी हिस्से के बड़े इलाकों से भगा डाला है.


इससे पहले शी और पुतिन इस साल फरवरी में मिले थे. तब यूक्रेन के तनाव के बीच रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने बीजिंग (Beijing) में शीतकालीन ओलंपिक खेलों के उद्घाटन से पहले चीनी राष्ट्रपति शी से आमने- सामने मुलाकात की थी. इस दौरान पुतिन ने चीन के साथ अपने  देश के गहरे रिश्तों को सराहा था. इसके बाद दोनों नेताओं का 5,000 से अधिक शब्दों का एक लंबा संयुक्त बयान आया था.


इसमें उन्होंने अमेरिका (America) के नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था को चुनौती देने और एक बहुध्रुवीय दुनिया पर जोर देने के लिए "सहयोग में कोई 'निषिद्ध' क्षेत्र नहीं होने" की कसम खाई थी. इस बयान से साफ था कि दोनों देश एक- दूसरे की मदद में कोई हद तय नहीं करेंगे, कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे. 


जब रूस के यूक्रेन हमले से चीन हुआ सतर्क 


इस बैठक के कुछ सप्ताह बाद रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया था. चीन रूस के इस अचानक की गई हमले की कार्रवाई के लिए तैयार नहीं था. इस हमले के बाद चीन सतर्क दिखाई दिया. इस वजह से शुरुआत में बीजिंग में अधिकारी इस परेशानी में पड़ गए कि वो रूस का समर्थन करते हैं तो उन्हें यूक्रेन की संप्रभुता का साफ तौर उल्लंघन करने में समर्थन देने के लिए दोष दिया जाएगा और उसे दुनिया की टेढ़ी नजरों का सामना करना पड़ेगा. इसके साथ ही चीन के रूस को समर्थन देने से ताइवान (Taiwan) के मामले में दुनिया के देशों को यहां विदेशी हस्तक्षेप को सही ठहराने का बहाना मिल सकता था. दरअसल चीन ताइवान पर अपने इलाके के तौर पर दावा पेश करता है.


आखिरकार रूस के लिए चीन का कूटनीतिक समर्थन महीनों में मजबूत हुआ. इस साल अगस्त में जब अमेरिकी हाउस स्पीकर नैंसी पेलोसी (Nancy Pelosi) ताइवान गई तो ये समर्थन और मजबूत हुआ. नतीजन बीते सप्ताह ही चीन के शीर्ष सांसद और देश के राजनीतिक पदानुक्रम में तीसरे नंबर के नेता ली झांशु (Li Zhanshu) ने मास्को (Moscow) का दौरा किया. ली ने रूसी सांसदों से कहा,"बीजिंग के नेता रूस के अपने प्रमुख हितों की रक्षा के उद्देश्य से किए गए सभी उपायों की जरूरत को पूरी तरह से समझते हैं." एक तरह से उन्होंने अप्रत्यक्ष तौर पर रूस के हमले का समर्थन किया. 


ड्रैगन को सताने लगा प्रतिबंधों का डर


जब व्यापार में तेजी दर्ज की गई थी, उसके बावजूद अमेरिका और उसके सहयोगियों ने रूस पर व्यापक प्रतिबंध लगाए हैं. उस वक्त रूस की मदद करने की वजह से बीजिंग को ये डर सताने लगा था कि कहीं वो भी इन प्रतिबंधों का निशाना न बन जाए. यही वजह रही कि उसने रूस को सैन्य आपूर्ति या वित्तीय सहायता भेजना बंद कर दिया है. कुछ वित्तीय निवेशकों के बीच हालिया आशंकाओं के बावजूद भी बीजिंग की स्थिति रूस को लेकर बदलने की संभावना कम ही दिखाई दे रही है. फिर भले ही हाल के सप्ताह में भारी रूसी नुकसान के बाद पुतिन गुरुवार को शी से यूक्रेन में सैन्य सहायता करने के लिए कहें. 


चीन के रूस को सैन्य मदद को लेकर दुनिया के विशेषज्ञों की राय और विश्लेषण भी इस तरफ इशारा कर रहा है कि चीन के रूस को इस तरह की मदद देने की कम ही उम्मीद है. वाशिंगटन (Washington) में एक सुरक्षा थिंक टैंक सीएनए (CNA) की एक वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक एलिजाबेथ विशनिक (Elizabeth Wishnick) ने कहा, "चीनी अधिकारी 'किसी भी हद के बगैर' साझेदारी के बारे में बात करते हैं, लेकिन रूस और चीन हमेशा कई मुद्दों पर असहमत होने पर सहमत हुए हैं." उन्होंने आगे कहा, "मुझे नहीं लगता कि प्रतिबंधों और मजबूत अंतरराष्ट्रीय विरोध के कारण रूस को चीनी सैन्य सहायता दिए जाने की संभावना है." शोध वैज्ञानिक विशनिक ने ये भी कहा, "यह उन चीनी दावों का भी खंडन करेगा कि यूक्रेन के लिए पश्चिमी सैन्य समर्थन युद्ध को बरकरार रख रहा है."


चीन पहले देखेगा अपना निजी हित


हाल के दिनों में पुतिन ने युद्ध शुरू होने के बाद से अपने कुछ सबसे बड़े नुकसान झेले हैं. यूक्रेन ने कहा कि उसने एक जवाबी हमले में 6,000 वर्ग किलोमीटर (2,300 वर्ग मील) से अधिक जमीन को वापस ले लिया. इससे रूस- यूक्रेन के संघर्ष दूसरी तरफ मोड़ दिया है. हालांकि रूस अभी भी यूक्रेन के लगभग पांचवें हिस्से को नियंत्रित करता है, लेकिन आशंकाएं बढ़ रही हैं कि पुतिन जीत हासिल करने के लिए जंग के मैदान में और आगे बढ़ सकते हैं. जबकि शी रूस को अमेरिका का विरोध करने के लिए एक अहम कूटनीतिक सहयोगी के तौर पर देखते हैं.


शी की नजर खास तौर पर रूस के सैन्य गठबंधनों और उसके वैश्विक वित्तीय प्रणाली के नियंत्रण पर है. इस तरह से देखा जाए तो चीन के रूस का साथ देने के लिए कुछ घरेलू फायदे वाली वजहें तो हैं. उधर दूसरी तरफ शी अगले महीने एक पार्टी कांग्रेस में सत्ता में तीसरा कार्यकाल हासिल करने के लिए तैयार हैं. इस दौरान चीन में शी के लिए भी हालात कोई खासे पक्ष में नहीं हैं. उनका देश आर्थिक मंदी और संपत्ति संकट से भी जूझ रहा है. दूसरी तरफ चीन के रूस को सेना या हथियार भेजना संप्रभुता का उल्लंघन होगा. चीन को ये डर है कि इससे दुनिया में उसका खुद का रुतबा कम हो जाएगा. अमेरिका के मुताबिक क्रेमलिन (Kremlin) को ड्रोन और गोला-बारूद के लिए ईरान और उत्तर कोरिया की ओर रुख करना पड़ा है.


वित्तीय प्रतिबंधों की वजह से अगर किसी भी चीनी जिंदगी को नुकसान होता या देश में कोई भी आर्थिक कठिनाई आती है तो ये कम्युनिस्ट पार्टी ( Communist Party) के राजनीतिक तौर उसकी वापसी को जोखिम में डालती है. गौरतलब है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी देश की जनता के जीवन स्तर में सुधार लाने उसे बेहतर करने की कसम खाई है. आलम ये था कि यहां के लोगों से मौत से बचाने के लिए अहम शहरों में पूरी तरह से लॉक डॉउन लगाया गया था. ये साफ है कि देश की बेहतरी के लिए इतनी सख्ती बरतने वाला चीन केवल रूस के लिए तो अपने निजी हितों को दरकिनार नहीं करेगा.


चीन कैसे साधेगा रूस और दुनिया के बीच संतुलन


ब्रसेल्स के नीति अनुसंधान संगठन क्राइसिस ग्रुप के वरिष्ठ विश्लेषक अमांडा ह्सियाओ (Amanda Hsiao) कहती हैं कि हालांकि इसके बाद भी चीन के पास अपनी रूस- यूक्रेन संकट के बीच अपनी स्थिति को नुकसान पहुंचाए बगैर रूस को अधिक समर्थन दिखाने के कई तरीके हैं. वह कहती हैं कि इनमें से एक तरीका उज्बेकिस्तान (Uzbekistan) में एससीओ की बैठक का इस्तेमाल करना शामिल है ताकि दुनिया को यह दिखाया जा सके कि पुतिन अलग-थलग नहीं हैं. इसके साथ ही चीन रूस के साथ अधिक सैन्य अभ्यासों में शिरकत कर सकता है. एक बात और गौर करने वाली है युद्ध की वजह से रूस पर अमेरिका और यूरोप के प्रतिबंधों (European Sanctions) के बाद भी चीन और रूस के आर्थिक रिश्ते फले-फूले हैं. ऊर्जा और अन्य वस्तुओं में चीन को रूस का निर्यात वर्ष के पहले पांच महीनों में लगभग 50 फीसदी बढ़कर 40.8 बिलियन डॉलर हो गया है. 


रूस के यूक्रेन (Ukraine) पर हमले के बाद  कारों, टीवी और स्मार्टफोन की पश्चिमी विदेशी फर्मों के रूस से किनारा करने के बाद चीन ही रूस की मदद को आगे आया. इससे रूस के इन चीजों के निर्यात में सुधार आया. रूस में एकीकृत सर्किट और अन्य सेमीकंडक्टर घटकों और उन्हें बनाने वाली मशीनों का निर्यात इस साल के पहले सात महीनों में बढ़कर 155 मिलियन डॉलर हो गया, ये 2021 में इसी वक्त की तुलना में लगभग 27 फीसदी अधिक है. अभी तक चीन ने मॉस्को (Moscow) को राजनीतिक और नैतिक समर्थन देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. ह्सियाओ कहती हैं कि हालांकि चीन अपने आर्थिक हितों को ध्यान में रखते हुए रूस को सैन्य मदद देने से परहेज करता रहा है. इस तरह से उसने रूस पर लगाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की सीमा रेखा को पार न करके अपने आर्थिक के साथ कूटनीतिक हितों का संतुलन साधा हुआ है. इसमें कोई दो राय नहीं कि इस मामले में बीजिंग ऐसा ही रवैया आगे भी अपनाएगा.


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