Xi Jinping's Third Term: बीते 10 सालों से चीन की सत्ता संभाल रहे शी जिनपिंग अब अगले पांच सालों के लिए वैश्विक पटल पर चीन का नेतृत्व करते रहेंगे. वह तीसरी बार चीन के राष्ट्रपति चुन लिए गये हैं. चीन की राजनीति में ऐसा कई दशकों बाद हो रहा है जब कोई नेता लगातार तीसरी बार देश के राष्ट्रपति के रुप में देश के शासन की बागडोर अपने हाथों से संचालित करेगा. 


शी जिनपिंग के इस दौर में राष्ट्रपति बनने की यह घटना कई सामाजिक-राजनीतिक और सामरिक रुप से खुद चीन के लिए भी ऐतिहासिक है. 1976 में मॉर्डन चीन के जनक माओ त्से तुंग यानी माओ की मौत के बाद ऐसा पहली बार होने जा रहा है जब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) ने अपना इकबाल शी जिनपिंग को सौंप दिया है. 


जिनपिंग से पहले माओ ही ऐसे नेता रहे जिन्होंने 1949 से लेकर 1976 तक देश की सत्ता संभाली थी. उनको मॉर्डन चीन का जनक माना जाता है, जिनके नेतृत्व में चीन की क्रांति सफल हुई थी. वह एक राजनीतिक विचारक थे और उन्होंने ही चीन की एकमात्र ताकतवर राजनीतिक पार्टी सीसीपी की स्थापना की थी. 


वर्तमान में सीसीपी के अधीन ही चीन की सत्ता और स्वायत्ता परिक्रमा करती है. 1976 में माओ की मौत के बाद गुटबाजी का शिकार और टूटने के कगार में पहुंची हुई चीन की सीसीपी अपने एक अधिवेशन में इस नतीजे पर पहुंची कि देश में किसी को भी 10 साल से भी अधिक समय के लिए राष्ट्रपति नहीं बनने देना है, लेकिन जिनपिंग ने किताबें उलट दीं, नियम बदल दिए. 


2012 में सीसीपी की बैठक के बाद जब शी, हु जिंताओ को रिप्लेस करके चीन के नेता बने थे तब किसी ने भी ये नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ होगा. हु जिंताओ 2002 से लेकर 2012 तक चीन के राष्ट्रपति रहे थे. ये वही जिंताओ हैं जिन्हें बीते साल अक्टूबर में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) की सालाना बैठक में सुरक्षाकर्मियों के कंधे पर बाहर जाना पड़ा था. ये वही जिंताओ थे जिन्होंने कभी अपनी उंगलियों पर चीन और साऊथ एशिया की राजनीति, ताकत और व्यवस्था को नचाया था. 


एनपीसी की इस 14वीं बैठक में शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल का रास्ता साफ हो गया था. हालांकि यह उनके तीसरे कार्यकाल का दूसरा कदम था, शी ने अपने तीसरे कार्यकाल को सुनिश्चित करने का पहला कदम तो अपने दूसरे कार्यकाल में तभी उठा लिया था, जब 2018 में एनसीपी की बैठक में पार्टी अध्यक्ष के कार्यकाल की सीमा को हटा दिया गया था. जिसके मायने थे, शी आजीवन पार्टी के सर्वोच्च पद पर रह सकते हैं.  


क्या चाहते हैं जिनपिंग? 
संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था चीन के राष्ट्रपति ने बीते साल अपने एक मिलिट्री संबोधन में बीते कई सालों से दोहराए जा रहे नारे को और आक्रामक तरीके से दोहराया, 'चीन को दुनिया का सबसे सर्वश्रेष्ठ देश बनाना'. इसके साथ ही बीते कुछ सालों में चीन ने जिनपिंग के नेतृत्व में अपने सैन्य बजट को लगभग दोगुना बढ़ा दिया. 


दुनिया के माथे पर जिनपिंग के नेतृत्व में शिकन आनी तब शुरू हुई जब उन्होंने अपने सैन्य अभियानों, अपनी डिप्लोमेसी, और अपने पड़ोसी देशों की जमीनों पर अपना क्लेम करना शुरू दिया. यहां तक की द्विपक्षीय बातचीत में भी चीन लहजा बदल गया. 


'जो आग से खेलेगा जल जाएगा'
जिनपिंग वैश्विक मंचों पर खुले तौर पर आक्रामक दिखाई दे जाते हैं. इस घटना के बहुत दिन नहीं बीते जब अमेरिकी राष्ट्रपति से बातचीत के दौरान, ताईवान का मुद्दा आने पर जिनपिंग ने दो टूक कह दिया कि जो आग से खेलेगा जल जाएगा, और ताइवान पर अपना हक जता दिया.


ऐसा पहली बार नहीं था जब उन्होंने विदेशी धरती पर अपना हक जताया हो. चीन का ऐसा ही विवाद समुंदर में जापान से भी चल रहा है, तो वहीं तिब्बत पर उसने बीते कई सालों से कब्जा किया हुआ है. वह भारत के अभिन्न अंग अरुणाचल प्रदेश, नेपाल और लद्दाख के कुछ हिस्सो में भी अपना हक जताता आया है. 


शी जिनपिंग के तीसरी बार सत्ता में लौटने पर SOAS चाइना इंस्टीट्यूट के निदेशक स्टीव त्सांग ने एएफपी से कहा,  अब वह दिन दूर नहीं जब हम वैश्विक मंच पर चीन को और आक्रामक देखेंगे. यह पूछने पर कि क्या चीन में माओवाद लौट आया है? तो उनका जवाब था, नहीं लेकिन यह वह शासन जरूर है जिसमें माओवादी सहज महसूस करेंगे.


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