(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Year Ender 2018: साल की शुरुआत से ही तार-तार हुए अमेरिका-पाकिस्तान के रिश्ते, साल के अंत में झुके ट्रंप
अफगानिस्तान चारों तरफ से ज़मीन से घिर हुआ है और पाकिस्तान वहां तक पहुंचने का एक बड़ा ज़रिया है. अब जब अमेरिका यहां से अपना बोरिया-बिस्तर समेटने की कोशिश कर रहा है तो उसे एक बार फिर पाकिस्तान की याद आई है. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि चीनी निवेश और अमेरिकी युद्ध के बीच में पिसे पाक का अमेरिका से रिश्तों के लिहाज़ से 2019 कैसा रहता है.
2018 में भारत के लिए दो सबसे अहम देशों के बीच का रिश्ता किसी परिकथा से कम नहीं रहा. ये दो देश अमेरिका और पाकिस्तान हैं. एक तरफ पहला जहां दुनिया की महाशक्ति है, वहीं दूसरा भारत का ऐसा पड़ोसी मुल्क है जिसके साथ बंटवारे के बाद से लगभग चार जंगें लड़ी जा चुकी हैं. लेकिन दोनों देशों के रिश्तों में इन जंगों या बाकी की किसी तरह की पहल से कोई सुधार नहीं आया.
1947 में हुए बंटवारे के बाद एक तरफ जहां तब की सबसे बड़ी ताकत ब्रिटेन का भारत की ओर झुकाव रहा है, वहीं चीन की झोली में गिरने से पहले तक अमेरिका पाकिस्तान के सबसे बड़े मित्र देशों में शामिल रहा है. इतिहास गवाह है कि भारत से जुड़े ज़्यादातर मामलों में अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ दिया है. लेकिन अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति का अंदाज़ ए बयां ही जुदा है और इसी जुदा अंदाज़ में उन्होंने 2018 की शुरुआत की.
नीचे नज़र आ रहा ट्वीट डोनाल्ड ट्रंप का इस साल का पहला ट्वीट था. इसमें उन्होंने लिखा था कि उनके देश अमेरिका ने पिछले 15 सालों में बेवकूफाना तरीके से पाकिस्तान को 33 बिलियन डॉलर की रकम सहायता राशि के तौर पर दी है. उन्होंने ये भी लिखा कि इसके बदले पाकिस्तान ने अमेरिका को झूठ और धोखे के सिवा कुछ भी नहीं दिया. ट्रंप ने पाकिस्तान पर आतंकवाद का खुला आरोप लगाते हुए लिखा कि पाक उन आतंकियों को सुरक्षित पनाह मुहैया कराता है जिनका अमेरिका बड़ी मुश्किल से शिकार करता है. अंत में ट्रंप ने कहा कि अब बस!
The United States has foolishly given Pakistan more than 33 billion dollars in aid over the last 15 years, and they have given us nothing but lies & deceit, thinking of our leaders as fools. They give safe haven to the terrorists we hunt in Afghanistan, with little help. No more!
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) January 1, 2018
ज़ाहिर सी बात है कि ट्रंप ने साल के पहले ट्वीट में पाकिस्तान को निशाना बनाकर ये साफ कर दिया कि अमेरिका की आगे की पाकिस्तान नीति कैसी रहने वाली है. दुनिया के सबसे ताकतवर देश के इस ट्वीट से पाकिस्तान बैकफुट पर चला गया. वहां की सरकार ने सफाई दी कि इन पैसों की पाकिस्तान ने बड़ी कीमत चुकाई है. हालांकि, पाकिस्तान की इन बातों की परवाह किए बगैर सितंबर महीने में अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 300 मिलियन डॉलर की रकम पर रोक लगा दी. इस दौरान भी ट्रंप प्रशासन और ख़ुद राष्ट्रपति ने भी पाकिस्तान पर एक बार फिर आतंकवााद को संरक्षण देने का आरोप लगाया. ट्रंप ने तो ये तक कहा कि ये वही पाकिस्तान है जिसने अपने यहां ओसामा बिन लादेन तक को छुपा रखा था.
ट्र्रंप ने इससे जुड़े ट्वटी में लिखा, "हमने ओसामा को पकड़ने में जितना वक्त लगाया हमें उससे बहुत पहले उसे पकड़ लेना चाहिए था." उन्होंने अमेरिकी राजनीति और अपनी किताब पर इधर उधर की बात करते हुए लिखा कि अमेरिका ने पाकिस्तान को ख़रबों डॉलर दिए और पाक ने उन्हें कभी नहीं बताया कि ओसामा वहां रह रहा था. ट्रंप ने अपने गुस्से की इंतहा ज़ाहिर करते हुए पाकिस्तान को मूर्ख तक कह डाला.
Of course we should have captured Osama Bin Laden long before we did. I pointed him out in my book just BEFORE the attack on the World Trade Center. President Clinton famously missed his shot. We paid Pakistan Billions of Dollars & they never told us he was living there. Fools!..
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) November 19, 2018
इसके जवाब में पाकिस्तान के नए पीएम इमरान ख़ान ने लिखा कि ट्रंप द्वारा की जाने वाली ऐसी बेइज्जती ने पाकिस्तान के उन ज़ख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है जो पाक को अमेरिका के आतंक के ख़िलाफ युद्ध की वजह से मिले हैं. इमरान के इस ट्वीट का सार ये था कि पाकिस्तान ने अमेरिका के लिए बहुत जंग लड़ ली, अब ये देश वही करेगा जो इसके लोगों के लिए ठीक हो.पाकिस्तान और आतंक का रिश्ता चोली दामन का है और ये बात अमेरिका को शुरू से ही पता है. ऐसे में पाकिस्तान को लेकर अमेरिका की नीति में मिला-जुला बदलाव सिर्फ आतंक की वजह से नहीं आया बल्कि इसकी कई वजहें रही हैं.
इसकी एक सबसे बड़ी वजह चीन है चीन विश्व भर में बेल्ट एंड रोड (बीआरआई) के तहत ख़रबों का निवेश कर रहा है. पाकिस्तान में चीन ने इसी निवेश को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपेक) का नाम दिया है. इसकी वजह से चीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा निवेशक बन गया है जिसके तहत वहां असंख्य परियोजनाओं पर काम किया जाना है. हालांकि, पाकिस्तान में इमरान की सरकार बनने के बाद से इस निवेश के खटाई में पड़ने की भी ख़बरें रही हैं. लेकिन ऐसी कोई पुख़्ता जानकारी सामने नहीं आई है. चीन का ये निवेश अमेरिका के लिए खीझ की एक बड़ी वजह रहा है.
एक देश के तौर पर जन्म लेने के बाद से पाकिस्तान लगातार अमेरिकी डॉलर वाली मदद पर निर्भर रहा है जिसके चलते इस देश को 2011 में लादने के मारे जाने के समय अपनी संप्रभुता तक को ताक पर रखना पड़ा. लेकिन अचानक से मिले इतने भारी चीनी निवेश ने अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों को खटाई में डालने का काम किया. वैसे भी चीन को पाकिस्तान का हर मौसम का दोस्त कहा जाता है और भारत के साथ बढ़ती अमेरिका की नज़दीकियों के बाद चीन उसके लिए इकलौता विकल्प है. हालांकि, इसकी कीमत अमेरिका की दुश्मनी है.
लगातार बढ़ी हैं भारत-अमेरिकी की नज़दीकियां भारत वो देश है जो किसी भी सूरत में अमेरिका के लिए पाकिस्तान से ज़्यादा फायदेमंद है. आबादी के हिसाब से दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार होने के अलावा भारत सबसे बड़ा रक्षा खरीददार है. एशिया में चीन को चुनौती देने की स्थिति में इकलौता देश भारत है. वहीं, अमेरिका को इस दोस्ती की कीमत आतंकवाद का ज़हर पीकर और सहायता राशि के नाम पर डॉलर लुटाकर नहीं चुकाने पड़ती. वाजपेयी के दौर में शुरू हुई भारती की लुक ईस्ट पॉलिसी का सबसे अहम हिस्सा अमेरिका रहा है. इससे दोनों देश हर बीतते साल के साथ करीब आए हैं. पाकिस्तान जैसे-जैसे चीन के करीब जा रहा है वैसे वैसे अमेरिका के पास उसके इन दो बड़े सिर दर्दों का मुकाबला करने के लिए भारत के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
दोनों देशों के रिश्तों में आती गहराई का आलम ऐसा रहा कि रूस पर लगे प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने अपने इस मित्र देश से एस 400 मिसाइल सिस्टम की ख़रीद की लेकिन इसके बाद भी अमेरिका भारत पर कोई पाबंदी नहीं लगा पाया. वहीं, ईरान से तेल ख़रीद के मामले में भी भारत को अमेरिका ने सहूलियत दी. इन तमाम उदाहरणों से साफ है कि अमेरिका तेज़ी से भारत के करीब आ रहा है. कूटनीति का एक नियम होता है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. इस लिहाज़ से आप भारत-अमेरिका की बढ़ती दोस्ती का पाक पर पड़ रहे असर का हिसाब बिठा सकते हैं.
इमरान ख़ान की अमेरिका को खरी-खरी 18 अगस्त को इमरान ख़ान पाकिस्तान के पीएम बने. उन्होंने ये पद संभालने के बाद से पाकिस्तान को फिर से बैलेंस करने की कोशिश की है. उन्होंने वॉशिंगटन पोस्ट को दिए गए एक इंटरव्यू में साफ कहा था कि उनका देश अब अमेरिका के 'भाड़े की बंदूक' के तौर पर काम नहीं करेगा. ख़ान के इस बयान के केंद्र में 1980 में सोवियत रूस के खिलाफ लड़ी गई जंग और अभी अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ जारी जंग में अमेरिका के पैसों के एवज में पाकिस्तान के शामिल होने की बात थी.
इमरान ने कहा कि ये न सिर्फ पाकिस्तानी लोगों की जान और संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है बल्कि उनके सम्मान को भी ठेस पहुंचाता है. इमरान ने सिर्फ अमेरिका के साथ ही ऐसा नहीं किया बल्कि वो चीन के दौर पर भी गए और सीपेक के तहत होने वाले निवेश पर फिर से बातचीत शुरू की. ये सब उन्होंने उस दौरा में किया जब पाकिस्तान एक बार फिर बेलआउट के लिए आईएमएफ की दहलीज पर खड़ा है और चीनी निवेश की वजह से अमेरिका आईएमएफ को पाकिस्तान को बेलआउट देने से मना कर रहा है. एक और बड़ी बात ये रही कि इमरान पाक की मदद के लिए सऊदी अरब से 6 बिलियन डॉलर की मदद लाने में भी कामयाब रहे और इन तमाम वजहों से साल के अंत तक अमेरिका बैकफुट पर नज़र आने लगा.
साल के अंत में ट्रंप ने मांगी इमरान से मदद
पूरे साल पाकिस्तान को बैकफुट पर धकेले रखने वाला अमेरिका साल के अंत तक ख़ुद बैकफुट पर आ गया. साल की शुरुआत ज़ोरदार ट्वीट से करने वाले ट्रंप ने साल के अंत में अफगानिस्तान में शांति बाहल करने के लिए इमरान को मदद की गुहार लगाती एक चिट्ठी लिखी है. दरअसल, ये चिट्ठी ट्रंप के उस फैसले के पहले लिखी गई थी जिसके तहत उन्होंने सीरिया से पूरी और अफगानिस्तान से आधी अमेरिकी फौज को वापस बुलाने का एलान किया है. अफगानिस्तान बेहद अशांत देश है और 2001 से आतंक के खिलाफ जंग के बावजूद अमेरिका यहां बैकफुट पर है और तालिबान ने ख़ुद को काफी मज़बूत कर लिया है.
वहीं, भारत के मित्र देश अफगानिस्तान में शांति बहाली को लेकर रूस तक का सोची में किया गया वो प्रयास असफल रहा जिसमें तालिबान को भी बातचीत में शामिल किया गया था. अमेरिका ने नए फैसले के तहत ये तय किया है कि अफगानिस्तान में जितने भी अमेरिकी सैनिक रुकेंगे वो सीधे लड़ाई में भाग नहीं लेंगे बल्कि अफगानी फौज को सलाह देने का काम करेंगे. अफगानिस्तान चारों तरफ से ज़मीन से घिर हुआ है और पाकिस्तान वहां तक पहुंचने का एक बड़ा ज़रिया है. अब जब अमेरिका यहां से अपना बोरिया-बिस्तर समेटने की कोशिश कर रहा है तो उसे एक बार फिर पाकिस्तान की याद आई है. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि चीनी निवेश और अमेरिकी युद्ध के बीच में पिसे पाक का अमेरिका से रिश्तों के लिहाज़ से 2019 कैसा रहता है.