नई दिल्ली: साल 2018 अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उथल-पुथल भरा रहा. राजनीतिक क्षेत्र से लेकर आर्थिक और सामाजिक स्तर पर सालभर कई तरह के उतार-चढ़ाव हुए. ब्रिटेन में ब्रेक्सिट को लेकर थेरेसा मे को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा तो पेट्रोल, डीजल पर टैक्स बढ़ने को लेकर फ्रांस में प्रदर्शन हुए. एक ओर उत्तर और दक्षिण कोरिया के रिश्ते सुधरे तो ट्रंप की जिद ने कई तरह के गतिरोध पैदा किए. पाकिस्तान में सत्ता की बागडोर इमरान खान ने संभाली तो जमाल खशोगी की हत्या ने सऊदी अरब सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया.


मालदीव में आपातकाल
साल की शुरुआत में ही मालदीव में आपातकाल का ऐलान हुआ. फरवरी में तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने देश में 15 दिनों के आपातकाल का ऐलान किया. राजनीतिक कैदियों को रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को यामीन ने मानने से इनकार कर दिया, जिसके बाद बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए, जिसकी वजह से देश में आपाताल का ऐलान किया गया. कई देशों के विरोध के बाद 22 मार्च 2018 को आपातकाल खत्म होने का ऐलान हुआ. बाद में चुनाव हुआ, जिसमें यामीन की जगह इब्राहिम मोहम्मद सोलिह देश के नए राष्ट्रपति बने.


पाकिस्तान में बदली सरकार
पड़ोसी देश पाकिस्तान में 25 जुलाई को संसदीय चुनाव में इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी ने जीत हासिल की और वो देश के नए प्रधानमंत्री बने. भारत-पाकिस्तान संबंधों में नरमी लाने के लिहाज से इमरान ने करतारपुर गलियारा खोलने का ऐलान किया. करतारपुर गलियारा खोलने की वजह से दोनों देशों के रिश्तों में सुधार की उम्मीद जगी है. ये साल नवाज शरीफ के लिए मुश्किल भरा रहा. उन्हें भ्रष्टाचार के मामलों का सामना करना पड़ा. एक मामले में उन्हें 10 साल की सजा सुनाई गई. साथ ही उन्हें चुनाव लड़ने के अयोग्य भी करार दिया गया.


मे पर अविश्वास का संकट
ब्रिटेन में ब्रेक्सिट को लेकर प्रधानमंत्री थेरेसा मे की मुश्किलें बढ़ीं. ससंद में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, हालांकि वो विश्वास मत जीत गईं. लेकिन उनकी ही पार्टी के एक तिहाई से अधिक सांसदों का उनके खिलाफ खड़े होना एक चुनौती रहा.


शांत हुआ नॉर्थ कोरिया
दशकों से एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन रहे दक्षिण और उत्तर कोरिया के रिश्तों में नरमी देखी गई. किम जोंग उन ने उत्तर कोरिया का दौरा किया तो दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन भी प्योंगयांग आए. इस साल किम जोंग और ट्रंप की जुबानी जंग ने भी खूब सुर्खियां बटोरीं. एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी थमा और दोनों नेताओं ने सिंगापुर में मुलाकात की. उत्तर कोरिया कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम को बंद करने पर भी राजी हुआ.


दुनिया का सिरदर्द बने रहे ट्रंप
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप पूरे साल दुनिया के लिए सिरदर्द बने रहे. ओबामा काल में हुए ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका को अलग करने से लेकर ईरान पर एकतरफा कड़े प्रतिबंध लगाने, सीरिया से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने, रूस सहित कई देशों पर प्रतिबंध लगाने, दशकों पुरानी परंपरा को तोड़कर इस्रायल के जेरूसलम में अमेरिकी दूतावास खोलने, जेरूसलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने जैसे तमाम फैसलों से गतिरोध बढ़ाया.


'यलो वेस्ट' के प्रदर्शन से हिला फ्रांस
फ्रांस में पेट्रोल, डीजल पर टैक्स बढ़ाने से लेकर कई अन्य मुद्दों पर देश में हिंसक प्रदर्शन हुए. 'यलो वेस्ट' नाम के प्रदर्शन को देशभर से व्यापक समर्थन मिला. इसी का नतीजा रहा कि राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों को न्यूनतम वेतन बढ़ोतरी और टैक्स में छूट सहित कई ऐलानों की घोषणा करनी पड़ी.


खशोगी की हत्या से हिली दुनिया
तुर्की में सऊदी अरब के वाणिज्य दूतावास में पत्रकार जमाल खशोगी की सुनियोजित हत्या से सऊदी अरब सरकार कटघरे में खड़ी नजर आई. इस हत्या ने दुनिया भर को हिलाकर रख दिया. इस हत्या में सऊदी के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान का हाथ होने का दावा किया गया. पहले तो उन्हें अमेरिका के ट्रंप प्रशासन का समर्थन मिलता नज़र आया लेकिन इस हत्या की वजह से अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्ते अब खटाई में पड़ते नज़र आ रहे हैं.


श्रीलंका में मची राजनीतिक उथल-पुथल
श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना ने नाटकीय ढंग से प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को उनके पद से बर्खास्त किया और महिंदा राजपक्षे को देश का नया प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. विक्रमसिंघे ने राजपक्षे को प्रधानमंत्री मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और 13 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सिरिसेना की ओर से संसद भंग करने के फैसले को अवैध बताया. 16 दिसंबर को रानिल विक्रमसिंघे की देश के प्रधानमंत्री पद पर वापसी हुई.


हंगरी में नए श्रम कानून का भारी विरोध
हंगरी में नए श्रमिक कानून को लेकर हंगामा रहा. हंगरी की सड़कों पर उतरे लोग प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बान से विवादित श्रम कानून को रद्द करने की मांग कर रहे थे. इस कानून के तहत कंपनियां अपने कर्मचारियों से साल में 400 घंटे तक ओवरटाइम काम करने को कह सकती हैं. यह कानून 13 दिसंबर को संसद में पास हुआ था, जिसके बाद देशभर में व्यापक प्रदर्शन हुए. अपने आठ साल की सत्ता में विक्टर ओर्बान ने पहली बार इतने बड़े जनविरोध का सामना किया.


अल्बानिया में महंगी शिक्षा का विरोध
अल्बानिया में महंगी होती शिक्षा को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए. छात्र और आम लोग युनिवर्सिटी की ट्यूशन फीस सस्ती करने की मांग कर रहे हैं. प्रदर्शनों की शुरुआत राजधानी तिराना से हुई और देखते ही देखते दूसरे शहरों में भी सरकार विरोधी नारे गूंजने लगे. देश में प्रधानमंत्री इदी रमा की नीतियों के खिलाफ पहले से ही असंतोष था. गरीबी और महंगे पेट्रोल ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया.


सर्बिया में सरकार के ख़िलाफ़ बजी सिटी
सर्बिया की राजधानी बेलग्राड में हजारों लोगों ने सीटी और हॉर्न बजाकर सरकार के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की. देश में प्रदर्शन की शुरुआत सर्बियन लेफ्ट पार्टी के प्रमुख बोर्को स्टेफानोविच पर हुए हमले के बाद हुई. इस साल नवंबर के अंत में काली कमीज पहने एक शख्स ने स्टेफानोविच पर लोहे की रॉड से हमला किया था, जिसमें वह बुरी तरह से घायल हो गए थे. राष्ट्रपति एलेक्जेंडर ने इस हमले की निंदा की थी, लेकिन इस हमले की शक की सूई सरकार पर रही, जिसके बाद देशभर में प्रदर्शन हुए.


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