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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

पहलवान Vs कुश्ती संघ: जानिए बीजेपी के लिए बृज भूषण सिंह को हटाना क्यों आसान नहीं?

बृज भूषण शरण सिंह की छवि छात्र राजनीति से ही फायर ब्रांड की रही है. विवादों से भी उनका पुराना नाता रहा है, लेकिन चुनावी मैदान में इसका कोई ज्यादा असर नहीं हुआ है. सिंह 1999 से लगातार सांसद हैं.

1990 में यूपी में राम मंदिर आंदोलन को बीजेपी धार दे रही थी, उसी वक्त अयोध्या-गोंडा में एक नाम खूब सुर्खियां बटोर रहा था. ये नाम था- छात्र नेता और स्थानीय ठेकेदार बृज भूषण शरण सिंह का. 

1991 के चुनाव में बीजेपी ने 34 साल के बृज भूषण को गोंडा लोकसभा से टिकट देने का फैसला किया. उस वक्त बृज भूषण पर 34 आपराधिक केस दर्ज था, जिस पर खूब बवाल हुआ और बीजेपी ने इसका बचाव किया.

बृज भूषण राम मंदिर के सहारे संसद पहुंचने में कामयाब रहे. इसके बाद उनका सियासी ग्राफ तो बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा, लेकिन गोंडा, कैसरगंज, श्रावस्ती, बहराइच में बृज भूषण ने मजबूत दबदबा बना लिया.

सांसद रहते ही 2011 में बृज भूषण शरण सिंह भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष भी बने. सिंह 2019 में तीसरी बार संघ के अध्यक्ष चुने गए, लेकिन जनवरी 2023 से ही यह पद उनके लिए विवादों का कारण बन गया है.

सिंह पर महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है. पहलवानों का कहना है कि सिंह को बचाने में पूरा खेल मंत्रालय जुटा है. चूंकि सिंह राजनीति से आते हैं, इसलिए इस पर राजनीति भी शुरू हो गई और कांग्रेस ने बीजेपी पर निशाना साधा है.

बृज भूषण समेत बड़े नेताओं ने चुप्पी साधी
पहलवानों के धरने और विरोध के बीच खेल मंत्री समेत बीजेपी के बड़े नेताओं ने चुप्पी साध ली है. बृज भूषण सिंह भी पिछले तीन दिनों से कोई बयान मीडिया को नहीं दिया है. पिछली बार उन्होंने पहलवानों के धरने को साजिश बताया था. 

बृज भूषण सिंह मामले में कांग्रेस और विपक्षी पार्टियां बीजेपी और सरकार को घेर रही है. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि बड़े अफसोस की बात है कि देश का नाम रोशन करने वाले अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को धरने पर बैठना पड़ रहा है, उन्हें न्याय मिलना चाहिए. 

पहलवानों के विरोध और राजनीतिक दबाव के बावजूद बृज भूषण शरण पर किसी भी तरह की कार्रवाई न होने से बीजेपी पर सवाल उठ रहे हैं. बीजेपी ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगने पर मोदी सरकार के मंत्री एमजे अकबर को पद से हटा दिया था.

ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर किन वजहों से बीजेपी और खेल मंत्रालय बृजभूषण के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है.

1. बृज भूषण का मामला खेल संघ से जुड़ा- बृज भूषण का मामला खेल संघ से जुड़ा हुआ है. कुश्ती संघ एक स्वायत्त गैर-सरकारी निकाय है. इनका अपना संविधान होता है और खेल मंत्रालय दखल नहीं दे सकती है. 

हालांकि, खेल मंत्रालय के कहने पर भारतीय खेल संघ ने एक कमेटी बनाई थी, जिसकी रिपोर्ट भी आ गई है. बीजेपी रिपोर्ट और कार्रवाई के इंतजार में ही है. यानी सीधे शब्दों में कहे तो बृज भूषण मामले में बीजेपी वेट एंड वाच की स्थिति में है. 

चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में भी चला गया है, इसलिए फैसला आने से पहले पार्टी कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती है, जिससे की बात में किरकिरी का सामना करना पड़े.

2. लोकसभा की 5 सीटों पर सीधा दखल- बृज भूषण सिंह वर्तमान में यूपी के कैसरगंज से लोकसभा के सांसद हैं. दबंग छवि के बृज भूषण लगातार 5 बार से सांसद हैं. 1991 में उन्होंने लोकसभा का पहला चुनाव जीता था. 

इसके बाद 1999, 2004, 2009, 2014 और 2019 के चुनाव में उन्होंने लगातार जीत दर्ज की. 1996 के चुनाव में बृज भूषण की पत्नी केतकी सिंह ने जीत दर्ज की थी. टाडा के तहत केस दर्ज होने के बाद उन्हें टिकट नहीं मिला था.

यूपी की 5 लोकसभा सीटों पर सिंह की सीधी पकड़ है. इनमें गोंडा, बहराइच, डुमरियागंज, कैसरगंज और श्रावस्ती सीट शामिल हैं. सिंह गोंडा, कैसरगंज और बलरामपुर (अब श्रावस्ती) से सांसद रह चुके हैं.

बीजेपी के टिकट पर 5 चुनाव जीतने वाले सिंह 2009 में पार्टी छोड़ सपा के टिकट से भी कैसरगंज सीट पर जीत हासिल कर चुके हैं. यानी दल-बदल का भी असर उनकी जीत पर नहीं हुआ.

यह भी एक बड़ी वजह उन पर कार्रवाई नहीं होने का माना जा रहा है. लोकसभा चुनाव में अब एक साल से भी कम का वक्त बचा है. जिन 5 सीटों पर बृज भूषण की पकड़ मानी जाती है, उनमें से 4 सीटें अभी बीजेपी के पास है, जबकि श्रावस्ती में बीएसपी ने जीत दर्ज की थी.


पहलवान Vs कुश्ती संघ: जानिए बीजेपी के लिए बृज भूषण सिंह को हटाना क्यों आसान नहीं?

अब कहानी बृज भूषण शरण सिंह की...

कैमरे पर कबूली हत्या की बात, लेकिन केस में बरी
साल 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान बृज भूषण शरण सिंह का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ. वीडियो में सिंह पत्रकार से बोले- मैंने अपने जीवन में सिर्फ एक हत्या की है. वो भी उस व्यक्ति की, जिसने रविंद्र को गोली मारी थी. 

यह केस 1983 का है और छात्र राजनीति से निकलकर सिंह और उनके साथी अयोध्या और गोंडा के आसपास ठेका का काम लेते थे.  सिंह के दो दोस्त रविंद्र सिंह, अवधेश सिंह तीनों हमेशा एक साथ ही रहते थे. 

सिंह के मुताबिक हम तीनों ठेके के काम से एक पंचायत में गए, जहां मेरी बातचीत किंकर से हो रही थी. बातचीत के दौरान ही हर्रैया के रंजीत नामक व्यक्ति ने हवाई फायरिंग कर दी. फायरिंग की वजह से रविंद्र को गोली लग गई और वो जमीन पर गिर पड़ा.

मैंने तुरंत अपनी राइफल निकाली और उस व्यक्ति को मार दिया. इस केस में बृज भूषण कोर्ट से बरी हो चुके हैं. 

टिकट मिलने पर बवाल मचा, 1 लाख वोट से जीते
1988 में बीजेपी में शामिल होने के बाद बृज भूषण ने अयोध्या, गोंडा और आसपास के इलाकों में खूब माहौल बनाया. इसी दौरान देश और उत्तर प्रदेश की राजनीति में राम मंदिर का मुद्दा गूंजने लगा. 

बीजेपी ने 1991 के चुनाव में बृजभूषण को गोंडा सीट से टिकट दे दिया. उस वक्त बृज भूषण पर 34 आपराधिक मुकदमें दर्ज थे. टिकट देने पर जब खूब सवाल उठे तो पार्टी के नेताओं ने रॉबिन हुड ऑफ गोंडा बता दिया.

सिंह अपना पहला चुनाव ही 1.13 लाख वोट से जीत गए.  इतना ही नहीं, गोंडा से जीतने के बाद बृज भूषण को लाल कृष्ण आडवाणी के रथ यात्रा की कमान दे दी गई. 

दाऊद से नाम जुड़ा, बीजेपी ने सस्पेंड कर दिया
1996 में हवाला कांड में लालकृष्ण आडवाणी के नाम आने से परेशान बीजेपी के लिए बृज भूषण भी मुश्किल बन गए. बृज भूषण के खिलाफ टाडा कोर्ट से वारंट निकला. उन पर आरोप लगा कि दाऊद इब्राहिम से संपर्क है और उसके लोगों को अपने यहां शरण देते हैं.

बीजेपी ने तुरंत बृज भूषण को पार्टी से निकालने का फरमान जारी कर दिया. हालांकि, उनकी पत्नी को अगले चुनाव में टिकट दिया गया. 1996 में जब 13 दिन के लिए अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो जेल में बंद बृज भूषण को एक खत लिखा.

वाजपेयी ने खत में बृज भूषण को सावरकर से प्रेरणा लेने की सलाह दी. बाद के दिनों में बृज भूषण इस मामले में कोर्ट से बरी हो गए और बीजेपी की राजनीति में सक्रिय हो गए. 

क्रॉस वोटिंग कर बचा ली मनमोहन की सरकार
2008 में परमाणु डील मामले में लेफ्ट और बीजेपी ने मिलकर मनमोहन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था. उस वक्त यूपीए के पास घोषित तौर पर सिर्फ 226 सांसदों का समर्थन प्राप्त था. 

इसी बीच सपा ने मनमोहन सरकार को समर्थन देने का ऐलान कर दिया. मुलायम सिंह के करीबी अमर सिंह ने समर्थन जुटाने का जिम्मा अपने कंधों पर लिया, जिसके बाद बीजेपी के 8 सांसद बागी हो गए.

बृज भूषण शरण सिंह भी इन 8 सांसदों में शामिल थे. क्रॉस वोटिंग की वजह से यूपीए की सरकार बच गई. बीजेपी ने कार्रवाई करते हुए बृज भूषण को पार्टी से निकाल दिया. पार्टी का कहना था कि ये सभी सांसद वोट फॉर कैश स्कैम में शामिल थे.

बीजेपी से निकाले जाने के बाद बृज भूषण शरण सिंह ने सपा का दामन थाम लिया. हालांकि, 5 साल बाद ही उनका सपा से मोहभंग हो गया और फिर बीजेपी में वापस चले गए. 

सपा ने सिंबल दे दिया फिर भी बीजेपी में आ गए
2008 में बीजेपी से मोहभंग के बाद बृज भूषण समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. पार्टी ने कैसरगंज सीट से उन्हें टिकट दिया. सिंह जीत भी गए. 2012 में सपा की राज्य में सरकार भी बन गई. 

इसी बीच सपा 2014 की तैयारी में जुट गई और जीताऊ सीट पर सिंबल बांटना शुरू कर दिया. सपा ने कैसरगंज के लिए बृज भूषण शरण के नाम का ऐलान कर दिया. सपा से टिकट मिलने के कुछ दिनों बाद ही सिंह बीजेपी में शामिल हो गए.

सिंह को उस वक्त बीजेपी में वापस लाने में तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने बड़ी भूमिका निभाई थी. 

पूरे विवाद पर 2 अहम बयान...

पूरे मामले में खेल प्राधिकरण ने क्या कहा है?
भारतीय खेल संघ के उप महानिदेशक शिव शर्मा सोमवार को धरना दे रहे पहलवानों से मिलने पहुंचे. उन्होंने कहा कि कमेटी ने अपनी रिपोर्ट खेल मंत्रालय को सौंप दी है और हमने कुश्ती संघ का चुनाव रोक दिया है. शिव शर्मा ने बताया कि फिलहाल कुश्ती संघ की निगरानी और कार्य के लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा.

हालांकि, शर्मा ने यौन उत्पीड़न की जांच के लिए बनी कमेटी की रिपोर्ट में क्या है, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी. पहलवानों का कहना था कि बृज भूषण के खिलाफ शिकायत दर्ज हो और उसे गिरफ्तार किया जाए. यह एक्शन जब तक नहीं होगा, तब तक हम धरने पर से उठेंगे नहीं. 

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से मांगी रिपोर्ट
बृज भूषण शरण सिंह पर एफआईआर दर्ज करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई गई थी. कोर्ट ने सुनवाई कर कहा है कि दिल्ली सरकार पूरे मामले में रिपोर्ट उपलब्ध कराएं. मामला गंभीर है, इसलिए पुलिस को भी नोटिस भेजा जा रहा है. 

कोर्ट ने कहा कि शिकायत करने वाली महिला पहलवानों की पहचान गुप्त रखा जाए. यौन उत्पीड़न से जुड़ा हुआ रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में सौंपा जाए. अगली सुनवाई शुक्रवार (28 अप्रैल) को होगी.

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