ये फसलें कम बारिश में भी बंपर पैदावार देती हैं, किसानों को हो सकता है ज्यादा फायदा
भारत में ज्यादातर किसान अपनी फसलों की सिंचाई के लिये बारिश के पानी या नहरों पर निर्भर करते हैं, लेकिन कई इलाकों में किसानों को पानी की कमी और बारिश की बेरुखी के कारण फसलें सूख जाती है और किसान को भारी नुकासन भुगतना पड़ता है. ऐसे में किसान भाईयों को उन फसलों की खेती पर जोर देना चाहिये, जो कम पानी में भी अच्छा उत्पादन दे सके या जिनकी खेती करने के लिये अलग से सिंचाई व्यवस्था की जरूरत ना पड़े.
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View In Appअलसी की खेती- अलसी भी सर्दियों के मौसम की महत्वपूर्ण फसल है, जिसकी खेती उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर की जाती है. अलसी को तीसी भी कहते हैं, जिसकी खेती के लिये ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, बल्कि मिट्टी में नमी बनाने पर ही काम चल जाता है. ये फसल बुवाई के 150 दिन यानी 5 महीने में कटाई के लिये तैयार हो जाती है.
मक्का की खेती- खरीफ सीजन में मक्का की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. इसकी बुवाई मानसून की शुरुआत में ही कर ली जाती है, इसलिये बाद में इसकी सिंचाई के लिये अधिक खर्च नहीं करना पड़ता. देश के गर्म इलाकों में खेती करने वाले किसान मक्का की फसल के साथ सह-फसल खेती और मधुमक्खी पालन भी करते हैं.
अरहर की खेती- अरहर की गिनती भी खरीफ सीजन की प्रमुख दलहनी फसलों में की जाती है, जिसमें सिंचाई के लिये अधिक पानी की जरूरत नहीं होती, बल्कि बारिश का पानी पड़ने पर ही कटाई के लिये तैयार हो जाती है. ये लंबी अवधि की दलहनी फसल है, जो 6 महीने में तैयार हो जाती है.
उडद की खेती-उड़द की दाल खरीफ सीजन की प्रमुख दलहनी फसल है, जिसकी खेती करके गर्मी और बारिश में अच्छा उत्पादन ले सकते हैं. ये एक वर्षा आधारित फसल है, जिसकी सिंचाई के लिये अलग से पानी की जरूरत नहीं होती, बल्कि कम पानी वाले इलाकों में इससे अच्छा उत्पादन ले सकते हैं.
मूंग की खेती- मूंग भी गर्मियों के सीजन की एक नकदी फसल है, जिसकी बुवाई जून से जुलाई के बीच की जाती है. बेहद कम सिंचाई में भी मूंग की फसल का तेजी से विकास होता है. इसके अलावा, मध्य प्रदेश और राजस्थान के कम पानी वाले इलाकों में मूंग की फसल बढिया उत्पादन देती है.
बाजरा और ज्वार की खेती- ज्वार और बाजरा को पोषक अनाजों में शामिल किया गया है, जिनकी खेती राजस्थान और गुजरात के गर्म इलाकों में भी कर सकते हैं. ये फसलें सिर्फ बारिश के पानी की सिंचाई से ही 4 महीने में पक जाती है और कम पानी में भी किसानों को बेहतर उत्पादन देती हैं.
सरसों की खेती- सरसों को रबी सीजन की प्रमुख तिलहनी फसल कहते हैं. इसकी बुवाई सर्दियों में की जाती है, जो कम पानी में ही पककर कटाई के लिये तैयार हो जाती है. इसकी खेती के साथ भी मधुमक्खी पालन करके अच्छा पैसा कमा सकते है.
तिल की खेती- तिल को भी खरीफ सीजन की प्रमुख तिलहनी फसल कहते हैं, जिसकी खेती तेल के उद्देश्य से की जाती है. यह वर्षा आधारित फसल है, इसलिये खेतों में प्राकृतिक सिंचाई का काम अपने आप हो जाता है. इसके अलावा कम सिंचाई में भी इसके बीजों से पेराई करके भरपूर तेल निकाल सकते हैं.
चना की खेती- रबी सीजन की प्रमुख नकदी और दलहनी फसलों में चना का नाम शीर्ष पर आता है. सर्दियों में अक्टूबर-नबंवर तक चना की बुवाई करके मात्र 150 दिन में फसल पककर कटाई के लिये तैयार हो जाती है. इसकी खेती के लिये अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती. बल्कि कम पानी में उपजे चना और इससे बने बेसन या दाल जैसे उत्पादों में अलग ही स्वाद होता है.
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