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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
किसानों के लिए शाप है ये घास, एक बार उग गई तो बर्बाद हो जाएगी पूरी खेती
आज हम बात कर रहे हैं गाजर घास की. ये एक उष्णकटिबंधीय अमेरीकी मूल का शाकीय पौधा है जो आज देश के समस्त क्षेत्रों में मानव, पशु, पर्यावरण और जैव विविधितता के लिए एक गंभीर समस्या बन गया है.
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View In Appभारत में ये पौधे अमेरिका और मेक्सिको से आयातित गेहूं की विभिन्न प्रजातियों के साथ आया था. सबसे पहले भारत में इस पौधे को 1956 में पुणे, महाराष्ट्र के सूखे खेतों में देखा गया था. इसके बाद से ये पौधा तेजी से देश में फैल गया.
भारत में इस गाजर घास को अलग अलग नामों से भी जाना जाता है. इसमें चांदनी घास, पंधारी फुले, चटक चांदनी, मोथा जैसे नाम ज्यादा लोकप्रिय हैं. हालांकि, इस पौधे का वैज्ञानिक नाम, पार्थिनियम हिस्टेरिफोरस है और यह पौधा पुष्पीय पौधों के एस्टेरेसी कुल का सदस्य है.
सबसे बड़ी बात कि ये पौधा एक बार अगर उग जाता है तो एक साल तक खेत में बना रहता है. इस पौधे की ऊंचाई 0.5-1 मीटर तक होती है. वहीं 6 से 8 महीने का होते ही ये पौधा फूलने लगता है.
इस पौध के साथ सबसे बड़ी समस्या ये है कि ये पौधा एख बार में 15000 से 25,000 सूक्ष्म बीज पैदा करते है जिनका प्रशारण हवा की वजह से दूर-दूर तक हो जाता है. खरपतवार विज्ञान अनुसंधान निदेशालय जबलपुर द्वारा किये गए आंकलन के मुताबिक, भारत में गाजर घास लगभग 350 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अब तक फैल चुका है.
खतरनाक बात ये है कि ये घास सिर्फ हमारी फसलों को ही बर्बाद नहीं कर रहा है. बल्कि, जो गाय भैसें या अन्य जीव गलती से इसे खा ले रहे हैं, उनमें ये कई तरह की बीमारियां उत्पन्न कर दे रहा है.
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