Monsoon 2022: कमजोर मानसून में भी बंपर मुनाफा देंगी ये 5 फसलें, यहां जानें इनके बारे में
राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कम बारिश वाले इलाकों में किसान मक्का की खेती कर सकते हैं. इसकी बढ़वार के लिये ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती, हल्की नमी से ही काम चल जाता है.
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View In Appमेंथा की खेती- कम समय में तैयार होने वाली नकदी फसलों में मेंथा की खेती करके अच्छा पैसा कमा सकते हैं. इसकी खेती खरीफ सीजन में ही की जाती है. कम या ज्यादा बारिश होने पर इसकी फसल पर कोई असर नहीं होता. इसलिये कम बारिश वाले इलाकों में मेंथा की खेती भी कर सकते हैं.
अरहर की खेती- अरहर की खेती के लिये जुलाई का महीना बेहतर मनाते हैं. दूसरी फसलों के मुकाबले अरहर की फसल कम पानी में पककर तैयार हो जाती है. बुवाई के 120 दिनों बाद अरहर की फसल को काट सकते है.
लोबिया की खेती- लोबिया भी खरीफ सीजन की प्रमुख दलहनी फसल है. मैदानी इलाकों में लोबिया की खेती करने पर 120 दिन में फसल पककर तैयार हो जाती है. कम बारिश या गर्मी पड़ने पर भी इसकी पैदावार एक समान होती है.
तिल की खेती- बारिश के मौसम में तिल की खेती करने पर अलग से सिंचाई की जरूरत नहीं होती. हालांकि कम पानी वाले इलाकों में भी इसका बेहतर उत्पादन लिया जा सकता है. बाजार में इसके तेल की काफी डिमांड होती है.
उड़द की खेती- उड़द की फसल कम पानी वाले इलाकों मे बंपर उत्पादन देती है. इसकी खेती के लिये ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती, बल्कि बारिश और गर्मी के मौसम में ये फसल 60-65 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.
ज्वार और बाजरा - ज्वार और बाजरा की गिनती पोषक अनाजों में की जाती है. कम पानी वाले इलाकों में ज्वार और बाजार की फसल 4 महीने में ही पक जाती है. इनकी खेती के लिये न ज्यादा बारिश की जरूरत होती है और न ही ज्यादा सिंचाई की, सिर्फ मिट्टी में नमी होने से ही अच्छी उपज मिल जाती है.
मूंग की खेती- मूंग को खरीफ सीजन की प्रमुख नकदी फसल भी कहते हैं, जिसे जून-जुलाई के बीच बोया जाता है. इसकी खेती के लिये ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, बल्कि उन्नत किस्मों से खेती करने पर ये 60-65 दिन में पककर तैयार हो जाती है.
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