Mahila Kisan Diwas: 'खेती काम नहीं, फर्ज है इनके लिए'....मिलिए खेत-खलिहान फतह करने वाली महिला किसानों से
आज ग्रामीण महिलायें सिर्फ चूल्हे-चौके तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अपने परिवार के पालन-पोषण के लिये अब खेत-खलिहानों से जुड़ती जा रही है. घरों की दहलीज को लांघकर और समाज की रूढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ते हुए आज महिला किसानें नवाचार और तकनीकों का भी इस्तेमाल कर रही है. खेती के साथ-साथ इन सफल महिला किसानों ने पशुपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन के साथ-साथ फूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में भी अपार सफलता हासिल की है. आज दूसरी महिलायें भी हमारी सफल महिला किसानों से प्रेरित होकर तरक्की की राहत पर चल पड़ी है. आजकल के कई युवा हमारी इन महिला किसानों से प्रेरणा ले रहे हैं. इनके योगदान को शब्दों में समेट पाना मुश्किल है.
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View In Appराजकुमारी देवी- आज राजकुमारी देवी को देशभर में किसान चाची के नाम से भी जानते हैं. बिहार से मुजफ्फरपुर जिले की रहने वाली किसान चाची ने खेती में नई तकनीक औक नवाचारों को प्रेरित किया है. देशभर के किसान आज इनसे टिकाऊ खेती की ट्रेनिंग लेने भी आते हैं. सरकार ने राजकुमारी देवी के कृषि में सफल योगदान को देखते हुये पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया है. राजकुमारी देवी का मानना है कि सरकार को महिला किसानों के हित में भी आगे बढ़कर काम करना चाहिये, क्योंकि महिलायें सक्षम होंगी तो खेत-खलिहान के साथ-साथ परिवारों में भी खुशहाली आयेगी.
नबनीता दास- असम ही नबनीता दास कई सालों से कृषि क्षेत्र में सक्रिय हैं, लेकिन साल 2018 में उनका नाम काफी चर्चा में आया. देश का प्रगतिशील किसान अवार्ड अपने नाम करवाने वाली नबनीता दास पेशे से एक नर्स थीं. मरीजों की सेवा के साथ-साथ खेती का कीड़ा भी उनके दिमाग में पनप रहा था. इसके बाद नबनीता ने नर्सिंग छोड़ने का फैसला किया और अपने फार्म पर खेती के साथ-साथ पशुपालन और मछली पालन करके एकीकृत कृषि प्रणाली को बढ़ावा दे रही हैं.
सना मसूद- कश्मीर की शूबसूरत वादियों की मेहनतकश महिला किसान सना मसूद आज कश्मीरी सेब, उसे स्टोरेज और इसके बिजनेस को आगे बढ़ा रही है. सना मसूद आज समाज के बंधनों को तोड़ते हुये दूसरी महिलाओं और किसानों को भी खेती से जुड़ने के लिये प्रेरित कर रही हैं. उन्होंने एक कंपनी 'फार्म टू यू' बी बनाई है, जिससे कश्मीर के ग्रामीण इलाकों में रोजगार का सृजन हो रहा है.
ललिता सुरेश मुकाती- ललिता एक इनोवेटिव फार्मर हैं, जिन्होंने खेती में नवाचारों और नई तकनीकों का प्रयोग किया. इनके कृषि क्षेत्र में सफल प्रयासों को देखते हुये सरकार ने भी इनोवेटिव फार्मर और हलधर जैविक कृषक राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया है. बता दें कि मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के छोटे से गांव बोरलाय की रहने वाली ललिता सुरेश मुकाती खेती की नई तकनीकों और विधियों को सीखने के लिये विदेशों का दौरा भी कर चुकी हैं.
सविता डकले- सविता डकले आज सिर्फ महिला किसानों के लिये ही नहीं, बल्कि हर घरेलू महिला के लिये मिसाल बन सामने आई है. किसान परिवार में शादी करने के बाद सवित ने खुद तो खेती किसानी सीखी है, साथ ही दूसरी महिलाओं को भी खेती के गुर सिखायें. सविता डकले ने जिम्मेदारियां संभालने के साथ-साथ अपनी बेटी से अंग्रेजी सीखी और 10 वीं की परिक्षा देकर खुद को भी शिक्षित बनाया.
गुलबरी गो- जंगलों के संरक्षण में आदिवासियों के योगदान से भला कौन अंजान होगा, लेकिन आदिवासी महिलायें भी अब पूरी दुनिया को जैविक खेती का महत्व समझा रही हैं. हम बात कर रहे हैं आदिवासी महिला किसान गुलबरी गो के बारे में. झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के सुदूर पहाड़ी क्षेत्र के जंगलों में रहने वाली गुलबरी गो अभी तक हजारों आदिवासी किसानों को जैविक खेती के लिये प्रेरित कर चुकी हैं. सफलता के बावजूद वो खुद अपने घर पर ही गोबर की जैविक खाद बनाती हैं और सब्जियों की जैविक खेती करने के बाद उन्हें बाजार में भी जाकर बेचती हैं.
सुधा पांडे- सुधा पांडे ने पशुपालन और डेयरी फार्मिंग के जरिये दुनियाभर में नाम कमाया है. उत्तर प्रदेश में सीतापुर जिले के कुंवरापुर गांव की रहने वाली सुधा पांडे 15 साल से डेयरी के क्षेत्र में सक्रिय हैं. वो खुद को दूध और डेयरी के जरिये अच्छा मुनाफा कमा रही है, साथ ही दूसरी महिलाओं को भी इस काम से जुड़ने के लिये प्रेरित करती है. दूध और डेयरी फार्मिंग के क्षेत्र में सुधा पांडे के अहम योगदान के चलते उत्तर प्रदेश सरकार ने चार बार गोकुल पुरस्कार से नवाजा है.
डेजी देवी- डेजी देवी आज महिलाओं को जैविक खेती करने के लिये प्रेरित कर रही है. बिहार में कटिहार जिले के मनसाही प्रखंड के चितौरिया गांव की डेज़ी देवी ने आज जैविक खेती के लिये महिलाओं के दो समूह भी बनाये हैं और इसी प्रकार महिलाओं को जैविक खेती सिखाकर आत्मनिर्भर बना रही हैं.
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