Sunflower Farming: इससे ज्यादा फायदेमंद कुछ भी नहीं, यहां जानें सूरजमुखी की खेती का सबसे आसान तरीका
भारत में सूरजमुखी की खेती- भारत में सबसे पहले सूरजममुखी की फसल साल 1969 में लगाई, जिसके बाद उत्तराखंड के पंतनगर में इसके अच्छे परिणाम देखे गये. अब हर साल 15 लाख हेक्टेयर पर सूरजमुकी की खेती की जाती है, जिससे करीब 90 लाख टन पैदावार मिलती है. बता दें कि सूरजमुखी की औसत पैदावार 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, आंधप्रदेश, तमिलनाडू, हरियाणा और पंजाब के किसान इसकी खेती बड़े पैमाने पर करते हैं.
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View In Appखेत की तैयारी- सूरजमुखी की खेती के लिये मिट्टी की जांच करवाने की सलाह दी जाती है, ताकि मिट्टी की जरूरतों के मुताबिक खाद-उर्वरक और बीजों का इस्तेमाल किया जा सके. इसकी खेती के लिये जल निकासी वाली भारी मिट्टी सबसे अच्छी रहती. ध्यान रखें कि अम्लीय और क्षारीय जमीन में सूरजमुखी की खेती नहीं करनी चाहिये. इसकी बुवाई से पहले बीजों का उपचार और खेतों को गहरी जुताई लगाकर जैविक विधि से तैयार करने की सलाह दी जाती है.
सूरजमुखी की उन्नत किस्में- सूरजमुखी की फसल से अधिक और अच्छी क्वालिटी की पैदावार के लिये उन्नत किस्मों से बुवाई करना बेहद जरूरी है. इसकी कंपोजिट और हाइब्रिड किस्में दोनों ही 90 से 100 दिनों के अंदर तैयार हो जाती है, जिनसे 40 से 50 फीसदी तेल का उत्पादन ले सकते हैं. इसकी बुवाई के लिये बीएसएस-1, केबीएसएस-1, ज्वालामुखी, एमएसएफएच-19, सूर्या किस्मों का चयन कर सकते हैं.
सूरजमुखी की बुवाई- बता दें कि सूरजमुखी एक सदाबहार फसल है, जिसकी बुवाई रबी सीजन की शुरुआत में की जा सकती है. छिड़काव विधि के मुकाबले कतार विधि से ही सूरजमुखी के बीजों की बुवाई करनी चाहिये, ताकि प्रबंधन कार्यों में आसानी रहे. इसके लिये लाइनों के बीच 4-5 सेमी और बीजों के बीच 25-30 सेमी का फासला रखना बेहतर रहेगा.
सूरजमुखी में खाद एव उर्वरक- किसी भी फसल से बेहतर पैदावार के लिये खाद-उर्वरकों का इस्तेमाल तो होता ही है. इसी तरह सूरजमुखी की फसल से ही अधिक तेल वाले बीजों का क्वालिटी प्रोडक्शन लेने के लिये 6 से 8 टन सड़ी हुई गोबर की खाद, वर्मीकंपोस्ट, 130 से 160 किग्रा यूरिया, 375 किग्रा एसएसपी और 66 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार इस्तेमाल कर सकते हैं.
सूरजमुखी में सिंचाई- सूरजमुखी की फसल के बाहतर विकास के लिये 3 से 4 सिंचाईयां की जाती है, क्योंकि नमी के बीच इसके पौधे बेहचर ढंग से पनपते हैं. इसकी फसल में पहली सिंचाई हुवाई के 30 से 35 दिन बाद, फिर 20 से 25 दिन के अंतराल पर दूसरी सिंचाई, फसल से फूल आने पर और बीज निकलते समय भी हल्की सिंचाई का काम किया जाता है.
सूरजमुखी में कीट नियंत्रण अकसर सूरजमुखी की फसल में एफिड्स, जैसिड्स, हरी सुंडी व हेड बोरर जैसे कीट और रतुआ, डाउनी मिल्ड्यू, हेड राट, राइजोपस हेड राट जैसे रोगों की संभावना बढ़ जाती है. इसके अलावा पक्षी भी बीज बनते समय सूरजमुखी के बीजों को निकल ले जाते हैं. ऐसे में विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार छिड़काव और बचाव के उपाय करने चाहिये, ताकि फसल को नुकसान से बचाया जा सके.
सूरजमुखी की कटाई सूरजमुखी के फऊलों का पिछला हिस्सा नींबू जैसा पीला होने पर ही इसकी कटाई का काम किया जाता है. कई किसान फूल की पंखुडिया झड़ने पर सूरजमुखी की कटाई का करते हैं. इसके बाद फूलों को काटकर 3 से 4 दिन तक धूप में सुखाया जाता है और बाद में फूलों को पीट-पीटकर बीजों को अलग कर लेते हैं. उन्नत किस्मों से जैविक या आधुनिक खेती करके सूरजमुखी से 18 से 20 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं.
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