Hawan: हवन में स्वाहा क्यों बोलते हैं
अग्नि के जरिए ईश्वर की उपासना करने की विधि हवन या यज्ञ कहलाती है. हवन के जरिए हमारी पूजा को पूर्ण रूप से स्वीकार करते हैं. हवन करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है. वातावरण को शुद्ध करने में ये अहम भूमिका निभाता है.
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View In Appहवन के दौरान मंत्रों का उच्चारण करने के बाद अंत में स्वाहा बोलकर ही अग्नि में आहुति दी जाती है. दरअसल स्वाहा का अर्थ है - सही रीति से पहुंचाना. हवन-यज्ञ के समय जब हविष्य (हवन सामग्री) अग्नि में डालते हैं तो स्वाहा इसलिए बोला जाता है ताकि देवा उसे ग्रहण करें.
अगर हवन में स्वाहा न बोला जाए तो देवतागण हवन सामग्री, भोजन ग्रहण नहीं करते हैं. यज्ञीय प्रयोजन तभी पूरा होता है जबकि आह्वान किए गए देवता को उनका पसंदीदा भोग पहुंचा दिया जाए. हवन करते समय स्वाहा बोलने को लेकर ग्रंथों में कई कथाओं का जिक्र भी है.
स्वाहा प्रकृति की ही एक कला थी, भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को ये वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हविष्य को ग्रहण कर पाएंगे, इसलिए हवन के दौरान स्वाहा जरूर बोला जाता है.
अग्निदेव का विवाह राजा दक्ष की पुत्री स्वाहा से हुआ था, इसीलिए जब भी अग्नि में कोई सामग्री डाली जाती है तो स्वाहा बोलकर उनकी पत्नी स्मरण करते हैं, क्योंकि इसके बिना अग्नि देव सामग्री स्वीकारते नहीं हैं. हविष्य या कोई भी अन्न पर सबसे पहला अधिकार अग्नि का ही होता है.
हवन का धार्मिक के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है. हवन करने से कई प्रकार की बीमारियों से बचा जा सकता है, क्योंकि इसमें हानिकारक जीवाणु नष्ट करने की क्षमता होती है. इसके धुएं से हवा में मौजूद वायरस का नाश होता है.
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