Shankaracharya: कैसे बनते हैं शंकराचार्य और किस तरह शुरू हुई हिंदू धर्म में ये परंपरा
भारत के संत समाजों में सबसे ऊपर शंकराचार्य आते हैं. शंकारचार्य देश के चार मठों पर आसीन होते हैं. कठिन प्रक्रिया और प्रकांड विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ के बाद ही शंकराचार्य की गद्दी पर कोई धर्माचार्य बैठ सकता है.
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View In Appशंकराचार्य बनने के लिए संन्यासी होना अनिवार्य है, संन्यासी बनने के लिए गृहस्थ जीवन का त्याग, मुंडन, अपना पिंडदान और रुद्राक्ष धारण करना बेहद जरूरी माना जाता है.
शंकराचार्य बनने के लिए व्यक्ति को त्यागी, संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत ब्राह्मण, ब्रह्मचारी, जितेंद्रिय यानी जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया हो और पुराणों का ज्ञान होना बेहद जरूरी है.
शंकराचार्यों के प्रमुखों, आचार्य महामंडलेश्वरों, प्रतिष्ठित संतों की सभा की सहमति और काशी विद्वत परिषद की मुहर के बाद शंकराचार्य की पदवी मिलती है.
शंकराचार्य बनने की शुरुआत हिंदुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में एक आदि शंकराचार्य से हुई थी. आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए.
भारत में चार मठ - पूर्व ओडिशा में गोवर्द्धन मठ (पुरी), पश्चिम गुजरात में शारदा मठ (द्वारिका), उत्तर उत्तराखंड में ज्योतिर्मठ (बद्रिकाश्रम) एवं दक्षिण रामेश्वर में श्रृंगेरी मठ.
मठ का अर्थ ऐसे संस्थानों से है जहां इसके गुरु अपने शिष्यों को शिक्षा, उपदेश आदि देने का काम करते हैं इसके अलावा सामाजिक सेवा, साहित्य आदि से संबंधित काम भी यहां होते हैं.
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