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ओडिशा के गुरु पद्मसंभव जाप में 1200 से अधिक बौद्ध भिक्षु हुए एकत्रित

ओडिशा में पहले गुरु पद्मसंभव जाप कार्यक्रम में भारत सहित 17 देशों से 1200 से अधिक बौद्ध भिक्षु ने भाग लिया, जो गुरु पद्मसंभव की आध्यात्मिक धरोहर को सम्मानित करेंगे. यह कार्यक्रम 16 जनवरी तक रहेगा.

ओडिशा में पहले गुरु पद्मसंभव जाप कार्यक्रम में भारत सहित 17 देशों से 1200 से अधिक बौद्ध भिक्षु ने भाग लिया, जो गुरु पद्मसंभव की आध्यात्मिक धरोहर को सम्मानित करेंगे. यह कार्यक्रम 16 जनवरी तक रहेगा.

गुरु पद्मसंभव जाप

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गुरु पद्मसंभव को गुरु रिनपोछे के नाम से भी जाना जाता है. ये बौद्ध धर्म के अद्वितीय साधक और धर्मप्रचारक भी माने जाते हैं. आयोजन स्थल ओडिशा का यह क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. यहां
गुरु पद्मसंभव को गुरु रिनपोछे के नाम से भी जाना जाता है. ये बौद्ध धर्म के अद्वितीय साधक और धर्मप्रचारक भी माने जाते हैं. आयोजन स्थल ओडिशा का यह क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. यहां "वन्दे मातरम्" की रचनाएं हुई थीं और राधानगर में सम्राट अशोक की तोशली वंश की सत्ता का अस्तित्व था. यह भूमि हमेशा से महान विचारकों का केंद्र रही है.
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कार्यक्रम में भाग लेने आए भिक्षुओं का कहना था,
कार्यक्रम में भाग लेने आए भिक्षुओं का कहना था, "दुनिया आज बहुत अस्थिर है और हम शांति के लिए प्रार्थना करना चाहते हैं. गुरु पद्मसंभव के अनुयायियों के दिलों में एक लंबा समय से यह आकांक्षा थी कि गुरु पद्मसंभव की याद में और उनकी शिक्षा के सम्मान में इस प्रकार का एक ऐतिहासिक आयोजन किया जाए.
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विशेष रूप से ओडिशा में, जहां से गुरु ने बौद्ध धर्म को तिब्बत और हिमालय के अन्य हिस्सों में फैलाया. इतिहासकारों का मानना है कि गुरु पद्मसंभव का जन्म यहीं हुआ था और वे तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पहले व्यक्ति थे.
विशेष रूप से ओडिशा में, जहां से गुरु ने बौद्ध धर्म को तिब्बत और हिमालय के अन्य हिस्सों में फैलाया. इतिहासकारों का मानना है कि गुरु पद्मसंभव का जन्म यहीं हुआ था और वे तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पहले व्यक्ति थे.
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गुरु पद्मसंभव को बौद्ध धर्म का दूसरा भगवान माना जाता है, क्योंकि उनके बिना न तो बौद्ध धर्म का अस्तित्व होता और न ही तिब्बत में बौद्ध संस्कृति का प्रसार होता.
गुरु पद्मसंभव को बौद्ध धर्म का दूसरा भगवान माना जाता है, क्योंकि उनके बिना न तो बौद्ध धर्म का अस्तित्व होता और न ही तिब्बत में बौद्ध संस्कृति का प्रसार होता.
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इस आयोजन में भूटान, लाओस, थाईलैंड, अमेरिका और अन्य देशों से भी प्रतिनिधि शामिल हुए. इसके अतिरिक्त, कार्यक्रम के दौरान भव्य जुलूस और सार्वजनिक सभा का भी आयोजन किया गया, जिसमें हजारों लोगों ने भाग लिया.
इस आयोजन में भूटान, लाओस, थाईलैंड, अमेरिका और अन्य देशों से भी प्रतिनिधि शामिल हुए. इसके अतिरिक्त, कार्यक्रम के दौरान भव्य जुलूस और सार्वजनिक सभा का भी आयोजन किया गया, जिसमें हजारों लोगों ने भाग लिया.
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यह आयोजन न केवल गुरु पद्मसंभव की शिक्षाओं के प्रसार को मान्यता देने का एक महत्वपूर्ण अवसर था, बल्कि बौद्ध समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक मिलन भी था, जो इस कार्यक्रम के माध्यम से शांति और सहिष्णुता का संदेश फैलाने के लिए एकत्र हुए थे.
यह आयोजन न केवल गुरु पद्मसंभव की शिक्षाओं के प्रसार को मान्यता देने का एक महत्वपूर्ण अवसर था, बल्कि बौद्ध समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक मिलन भी था, जो इस कार्यक्रम के माध्यम से शांति और सहिष्णुता का संदेश फैलाने के लिए एकत्र हुए थे.

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