Shani Dev: शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या में क्या है अंतर, जानिए प्रभाव से लेकर उपाय
ज्योतिष के अनुसार, शनि जब किसी राशि के 12वें भाव या राशि में रहते हैं या किसी राशि के दूसरे भाव में रहते हैं तो उस राशि पर शनि का साढ़ेसाती शुरू हो जाती है. इतना ही साढ़ेसाती का प्रभाव तीन चरणों का होता है, जो ढाई-ढाई साल का तीन चरण होता है. इस तरह से साढ़ेसाती की पूर्ण अवधि साढ़े सात साल की होती है.
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View In Appढैय्या की बात करें तो शनि जब गोचर में जन्मकालीन राशि से चतुर्थ या अष्टम भाव में स्थित होते हैं तो इसे शनि ढैय्या कहा जाता है. शनि ढैय्या की अवधि ढाई वर्ष की होती है.
सामान्यत: शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या को अशुभ और कष्टदायक माना जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है. कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार ही ढैय्या और साढ़ेसाती का अच्छा या बुरा फल मिलता है. ज्योतिष में शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने के उपाय भी बताए गए हैं.
शनिवार को शाम में दशरथ कृत शनि स्त्रोत का पाठ करने से भी शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव कम होता है. शनि देव की कृपा पाने के लिए आप शनिवार के दिन शनि से संबंधित चीजों जैसे, काली उड़द दाल, काले वस्त्र, सरसों तेल, लोहा और गुड़ आदि का दान करें.
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बरतें ये सावधानी: शनि देव की पूजा हमेशा सूर्यास्त के बाद ही करें. पूजा में तिल या सरसों तेल का प्रयोग करें, शनिवार को मांसाहार भोजन न करें, पूजा में नीले या काले रंग के वस्त्र पहनें, काले कुत्तों को न सताएं.
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