Mahakumbh Prayagwal: कुंभ में प्रयागवाल कौन होते हैं ? धार्मिक कार्य में इनकी अहम भूमिका क्यों है जानें
धार्मिक स्थलों से गहरे जुड़े होते हैं यहां के तीर्थपुरोहित, जिन्हें प्रयागवाल या स्थानीय भाषा में पंडा भी कहा जाता है. मोक्षदायक तीर्थराज प्रयाग में मृत्यु से मुक्ति का मार्ग, यहां के तीर्थपुरोहित प्रयागवाल ही दिखाते हैं.
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View In Appसनातन परंपरा संगम तट पर पूजन-अर्चन का अधिकार यहां के तीर्थपुरोहित प्रयागवालों को ही प्रदान करती है. जो यात्री प्रयाग में आता है, उसका समस्त धार्मिक कर्मकाण्ड प्रयागवाल ही कराता है.
महाकुंभ में प्रयागवालों के यजमान क्षेत्र, स्नान दान के आधार पर चलते हैं और यह अपने यजमानों की वंशावली सुरक्षित रखते हैं.
प्रयागराज में अस्थिदान और पिंडदान पूजन का विशेष महत्व हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है. बिना अस्थि पूजन और पिंडदान के पितरों को मुक्ति नहीं मिलती. ये अस्थि पूजन और पिंडदान प्रयागवाल ही करवाते हैं.
प्रयागवाल ही महाकुंभ और माघ मेला में आने वाले तीर्थयात्री के ठहरने की व्यवस्था करते हैं.
प्रयागवाल पहचान के लिए एक ऊंचे बांस पर अपना निशान या झंडा लगाते हैं. तीर्थयात्री इसी झंडे को देखकर अपने प्रयागवाल के पास पहुंचते हैं.
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