रोजाना 22 सिगरेट पीने के बराबर है दिल्ली की हवा में सांस लेना, हर दिन होती है आठ मौतें
प्रदूषण के स्तर बढ़ने पर कुछ सावधानियां इस प्राकार हैं - अस्थमा और क्रोनिक ब्रॉन्काइटिस वाले मरीजों को अपनी दवा की खुराक बढ़ानी चाहिए. स्मॉग की परिस्थितियों में अधिक मेहनत वाले कामों से बचें. धुंध के दौरान धीमे ड्राइव करें. धुंध के समय हार्ट के मरीजों को सुबह में टहलना टाल देना चाहिए. फ्लू और निमोनिया के टीके पहले ही लगवा लें. सुबह के समय दरवाजे और खिड़कियां बंद रखें. बाहर निकलना जरूरी हो तो मास्क पहन लें.
Download ABP Live App and Watch All Latest Videos
View In Appउन्होंने कहा, धुंध फेफड़े और हार्ट दोनों के लिए बहुत खतरनाक होती है. सल्फर डाइऑक्साइड की अधिकता से क्रोनिक ब्रॉन्काइटिस हो जाती है. हाई नाइट्रोजन डाइऑक्साइड स्तर से अस्थमा की समस्या बढ़ जाती है. पीएम-10 एयर पॉल्यूटेंट में मौजूद 2.5 से 10 माइक्रोन साइज के कणों से फेफड़े को नुकसान पहुंचता है. 2.5 माइक्रोन आकार से कम वाले एयर पॉल्यूटेंट फेफड़ों में घुस करके अंदर की परत को नुकसान पहुंचा सकते हैं. ब्लड में पहुंचने पर ये हार्ट की धमनियों (अर्टरीज) में सूजन कर सकते हैं.
डॉ अग्रवाल ने बताया, जब भी ह्यूमिडिटी का स्तर काफी होता है, वायु का प्रवाह कम होता है और तापमान कम होता है, जब कोहरा बन जाता है. इससे बाहर देखने में दिक्कत आती है और सड़कों पर दुर्घटनाएं होने लगती हैं. रेलवे और एयरलाइन की सेवाओं में भी देरी होने लगती है. जब वातावरण में प्रदूषण का स्तर काफी होता है तो प्रदूषक पैदा करने वाले कण कोहरे में मिल जाते हैं, जिससे बाहर अंधेरा छा जाता है. इसे ही स्मॉग कहा जाता है.
आईएमए ने दिल्ली-एनसीआर के सभी स्कूलों के लिए सलाह या एडवाइजरी जारी करने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री से पहले ही अपील की है, ताकि रेडियो, प्रिंट और सोशल मीडिया जैसे अलग-अलग मीडिया माध्यमों से इसे ब्रॉडकास्ट किया जा सके. 19 नवंबर को एयरटेल दिल्ली हाफ मैराथन को रद्द करने के लिए भी अनुरोध किया है.
डॉ अग्रवाल ने कहा, वायु प्रदूषण हर साल दिल्ली में 3,000 मौतों के लिए जिम्मेदार है, यानी हर दिन आठ मौतें. दिल्ली के हर तीन बच्चों में से एक को फेफड़ों में ब्लीडिंग की समस्या हो सकती है. अगले कुछ दिनों तक घर के अंदर रहने और एक्सरसाइज या वॉक के लिए बाहर न निकलने की सलाह दी गई है.
आईएमए के अध्यक्ष डॉ केके अग्रवाल ने कहा, धुंध एक कॉम्पलेक्स मिक्चर है और इसमें अलग-अलग प्रदूषण के तत्व जैसे- नाइट्रोजन ऑक्साइड और धूल कण मिले होते हैं. यह मिश्रण जब सूर्य के प्रकाश से मिलता है तो एक तरह से ओजोन जैसी परत बन जाती है. यह बच्चों और बड़ों के लिए एक खतरनाक स्थिति है. फेफड़े की बिमारी और सांस संबंधी समस्याओं वाले लोग इस स्थिति में सबसे अधिक प्रभावित होते हैं.
दिल्ली में हवा की गुणवत्ता का इंडेक्स 451 तक जा पहुंचा है, जबकि इसका अधिकतम स्तर 500 है. इस हवा में सांस लेने का मतलब है करीब 22 सिगरेट रोज पीने जितना धुआं आपके शरीर में चला जाता है. बीमार लोगों के अलावा स्वस्थ व्यक्तियों के लिए भी यह हवा हानिकारक है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मुताबिक, यह स्वास्थ्य की इमर्जेंसी की स्थिति है, क्योंकि शहर पूरी तरह से गैस चैंबर में बदल गया है.
- - - - - - - - - Advertisement - - - - - - - - -