Gita Press Gorakhpur: 100 करोड़ रुपये से ज्यादा की बिक्री, 41 करोड़ से ज्यादा बिकी हैं गीता प्रेस की पुस्तकें
गीता प्रेस गोरखपुर अभी गांधी शांति पुरस्कार मिलने की वजह से चर्चा में है. सरकार ने समाज की सेवा करने के लिए गीता प्रेस को 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने का निर्णय लिया है.
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View In Appगीता प्रेस भारत के सबसे पुराने प्रकाशनों में से एक है. इसकी स्थापना समाजसेवी घनश्याम दास गोयनका और साहित्यकार हनुमान दास पोद्दार ने मिलकर 1923 में कोलकाता में की थी. इस तरह गीता प्रेस के 100 साल पूरे हो गए हैं.
इस प्रकाशन की खासियत धार्मिक पुस्तकों को बेहद कम दाम पर उपलब्ध कराना है, जिससे इन पुस्तकों की पहुंच देश के घर-घर तक सुनिश्चित हो सकी. अभी इसके विक्रय केंद्र भारत और नेपाल में कई जगहों पर हैं.
यह एक गैर-लाभकारी प्रकाशन है. यही कारण है कि गीता प्रेस ने गांधी शांति पुरस्कार के साथ मिलने वाले 1 करोड़ रुपये को भी लेने से मना कर दिया है. प्रेस का कहना है कि दान नहीं लेना उसकी नीति का हिस्सा है.
यही कारण है कि अगर बिक्री के आंकड़े को देखेंगे तो शायद ही कोई प्रकाशन गीता प्रेस के आस-पास भी पहुंच पाएगा. अपने 100 सालों के इतिहास में गीता प्रेस ने 41.7 करोड़ पुस्तकों का प्रकाशन किया है.
गीता प्रेस के पास 3000 से ज्यादा धार्मिक व समाजिक महत्व के पुस्तकों का विशाल संग्रह है, जिनका प्रकाशन 14 विभिन्न भाषाओं में किया जाता है.
गीता प्रेस को लोकप्रिय बनाने में भागवद गीता, रामचरित मानस और हनुमान चालीसा का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है.
इस प्रकाशन ने अब तक भागवद गीता की 16.21 करोड़ कॉपी की बिक्री की है.
इसके बाद 11.73 करोड़ कॉपी के आंकड़े के साथ गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस और हनुमान चालीसा का स्थान है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, गीता प्रेस की सालाना बिक्री 2016 में 39 करोड़ रुपये रही, जो 2021 में 78 करोड़ रुपये पर पहुंच गई. 2022 में गीता प्रेस की बिक्री 100 करोड़ रुपये से ज्यादा रहने का अनुमान है.
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