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Recession 2023: छाने लगी मंदी, जर्मनी में दस्तक... यहां देखें भयावह महामंदी की तस्वीरें!

Global Economic Recession: आर्थिक मंदी अब कयासों से बढ़कर सच साबित होने लगी है और जर्मनी में इसने दस्तक दे दी है. इसके साथ ही लोगों को करीब 100 साल पहले आई महामंदी की यादें डराने लग गई हैं...

Global Economic Recession: आर्थिक मंदी अब कयासों से बढ़कर सच साबित होने लगी है और जर्मनी में इसने दस्तक दे दी है. इसके साथ ही लोगों को करीब 100 साल पहले आई महामंदी की यादें डराने लग गई हैं...

100 साल पहले आई थी महामंदी

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यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी की दहलीज पर मंदी ने दस्तक दे दी है. दिसंबर 2022 तिमाही में 0.50 फीसदी की गिरावट के बाद मार्च 2023 तिमाही में जर्मनी की जीडीपी 0.30 फीसदी सिकुड़ चुकी है. इस तरह आधिकारिक तौर पर आर्थिक मंदी का आगाज आ हो चुका है.
यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी की दहलीज पर मंदी ने दस्तक दे दी है. दिसंबर 2022 तिमाही में 0.50 फीसदी की गिरावट के बाद मार्च 2023 तिमाही में जर्मनी की जीडीपी 0.30 फीसदी सिकुड़ चुकी है. इस तरह आधिकारिक तौर पर आर्थिक मंदी का आगाज आ हो चुका है.
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यह पहली बार नहीं है, जब दुनिया के सामने आर्थिक मंदी आई है. दुनिया इससे पहले भी कई मौकों पर आर्थिक मंदी का सामना कर चुकी है. अभी से करीब 100 साल पहले प्रथम विश्वयुद्ध के बाद दुनिया ने अब तक की सबसे भयंकर मंदी का सामना किया था, जिसे महामंदी के नाम से जाना जाता है.
यह पहली बार नहीं है, जब दुनिया के सामने आर्थिक मंदी आई है. दुनिया इससे पहले भी कई मौकों पर आर्थिक मंदी का सामना कर चुकी है. अभी से करीब 100 साल पहले प्रथम विश्वयुद्ध के बाद दुनिया ने अब तक की सबसे भयंकर मंदी का सामना किया था, जिसे महामंदी के नाम से जाना जाता है.
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अगर किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में लगातार छह महीने यानी 2 तिमाही तक गिरावट आती है, तो इस दौर को अर्थशास्त्र में आर्थिक मंदी कहा जाता है. इस तरह जर्मनी में आधिकारिक तौर पर मंदी शुरू हो चुकी है.
अगर किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में लगातार छह महीने यानी 2 तिमाही तक गिरावट आती है, तो इस दौर को अर्थशास्त्र में आर्थिक मंदी कहा जाता है. इस तरह जर्मनी में आधिकारिक तौर पर मंदी शुरू हो चुकी है.
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वहीं अगर जीडीपी की ग्रोथ रेट में लगातार कमी आए तो इसे इकोनॉमिक स्लोडाउन यानी आर्थिक सुस्ती कहा जाता है. इसका मतलब हुआ कि मंदी में जीडीपी का साइज कम होता है, जबकि सुस्ती में जीडीपी के बढ़ने की रफ्तार कम हो जाती है.
वहीं अगर जीडीपी की ग्रोथ रेट में लगातार कमी आए तो इसे इकोनॉमिक स्लोडाउन यानी आर्थिक सुस्ती कहा जाता है. इसका मतलब हुआ कि मंदी में जीडीपी का साइज कम होता है, जबकि सुस्ती में जीडीपी के बढ़ने की रफ्तार कम हो जाती है.
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रही बात 'डिप्रेशन यानी महामंदी' की, तो यह रिसेशन यानी मंदी का सबसे भयावह रूप है. अगर 2 तिमाही के दौरान किसी देश की जीडीपी में 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आती है, तो उसे डिप्रेशन कहा जाता है.
रही बात 'डिप्रेशन यानी महामंदी' की, तो यह रिसेशन यानी मंदी का सबसे भयावह रूप है. अगर 2 तिमाही के दौरान किसी देश की जीडीपी में 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आती है, तो उसे डिप्रेशन कहा जाता है.
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प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1930 के दशक में सबसे भयानक महामंदी आई थी, जिसे The Great Depression कहा जाता है. अभी तक रिकॉर्डेड हिस्ट्री में दुनिया ने एक ही बार डिप्रेशन का सामना किया है. यह 1929 से 1939 तक चला था.
प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1930 के दशक में सबसे भयानक महामंदी आई थी, जिसे The Great Depression कहा जाता है. अभी तक रिकॉर्डेड हिस्ट्री में दुनिया ने एक ही बार डिप्रेशन का सामना किया है. यह 1929 से 1939 तक चला था.
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महामंदी के दौर में हालात इतने खराब हो गए थे कि दुनिया भर में लोगों के सामने खाने का संकट पैदा हो गया था. अमेरिका में लाखों लोगों का रोजगार चला गया था और बेघरों की संख्या में रिकॉर्ड वृद्धि हो गई थी.
महामंदी के दौर में हालात इतने खराब हो गए थे कि दुनिया भर में लोगों के सामने खाने का संकट पैदा हो गया था. अमेरिका में लाखों लोगों का रोजगार चला गया था और बेघरों की संख्या में रिकॉर्ड वृद्धि हो गई थी.
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भारत ने अभी तक 2 बार मंदी का सामना किया है. पहली बार  1991 में मंदी आई थी, जब विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो गया था. उसके बाद 2008 में अमेरिकी संकट के चलते मंदी के असर से दो-चार होना पड़ा था.
भारत ने अभी तक 2 बार मंदी का सामना किया है. पहली बार 1991 में मंदी आई थी, जब विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो गया था. उसके बाद 2008 में अमेरिकी संकट के चलते मंदी के असर से दो-चार होना पड़ा था.

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