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Baidyanath Dham: सावन में श्रद्धालु 'बोल बम' का जयकारा लगाते पहुंचते हैं बाबा धाम, जानें- क्या है रावण से जुड़ा मंदिर का रहस्य?

Baidyanath Dham: वैद्यनाथ मन्दिर झारखण्ड के देवघर में है. यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है. भगवान शिव का एक नाम 'वैद्यनाथ' भी है. इस कारण लोग इसे 'वैद्यनाथ धाम' भी कहते हैं.

Baidyanath Dham: वैद्यनाथ मन्दिर झारखण्ड के देवघर में है. यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है. भगवान शिव का एक नाम 'वैद्यनाथ' भी है. इस कारण लोग इसे 'वैद्यनाथ धाम' भी कहते हैं.

बैद्यनाथ धाम (फोटो क्रेडिट-सोशल मीडिया)

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झारखंड के देवघर में शिव का अत्यन्त पवित्र और भव्य मंदिर स्थित है. हर साल सावन के महीने में वैद्यनाथ धाम में मेला लगता है.
झारखंड के देवघर में शिव का अत्यन्त पवित्र और भव्य मंदिर स्थित है. हर साल सावन के महीने में वैद्यनाथ धाम में मेला लगता है.
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सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु बोल-बम का जयकारा लगाते हुए बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं. बाबा भोलेनाथ के सभी श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगा जल लेकर बाबा के दरबार में आते हैं. श्रद्धालु लगभग 100 किलोमीटर पैदल यात्रा कर बाबा को जल चढ़ाते हैं.
सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु बोल-बम का जयकारा लगाते हुए बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं. बाबा भोलेनाथ के सभी श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगा जल लेकर बाबा के दरबार में आते हैं. श्रद्धालु लगभग 100 किलोमीटर पैदल यात्रा कर बाबा को जल चढ़ाते हैं.
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झारखंड के देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम का शिव मंदिर अपने आप में बेहद अनोखा है. इसलिए यहां सालभर भक्त दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर की खासियत ये है कि त्रिशूल नहीं पंचशूल है जिसे सुरक्षा कवच कहा जाता है.
झारखंड के देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम का शिव मंदिर अपने आप में बेहद अनोखा है. इसलिए यहां सालभर भक्त दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर की खासियत ये है कि त्रिशूल नहीं पंचशूल है जिसे सुरक्षा कवच कहा जाता है.
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कहा जाता है कि पूरे देश में सिर्फ इसी मंदिर में पंचशूल है. वहीं धर्माचार्यों की मानें तो अगर कोई 6 महीने तक लगातार शिव ज्योतिर्लिंग की पूजा करता है तो उसे पुनर्जन्म का कष्ट नहीं उठाना पड़ता.
कहा जाता है कि पूरे देश में सिर्फ इसी मंदिर में पंचशूल है. वहीं धर्माचार्यों की मानें तो अगर कोई 6 महीने तक लगातार शिव ज्योतिर्लिंग की पूजा करता है तो उसे पुनर्जन्म का कष्ट नहीं उठाना पड़ता.
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वहीं मंदिर के शिखर पर लगे पंचशूल के इतिहास को लेकर धर्म के जानकारों का अलग-अलग मत है. इनमें से एक ये है कि इस त्रेतायुग में लंका के राजा रावण ने इस मंदिर को बनवाया था और उन्होंने लंका के चारों द्वार पर पंचशूल का सुरक्षा कवच स्थापित किया था.
वहीं मंदिर के शिखर पर लगे पंचशूल के इतिहास को लेकर धर्म के जानकारों का अलग-अलग मत है. इनमें से एक ये है कि इस त्रेतायुग में लंका के राजा रावण ने इस मंदिर को बनवाया था और उन्होंने लंका के चारों द्वार पर पंचशूल का सुरक्षा कवच स्थापित किया था.
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वहीं इसके अलावा अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के पूर्व महासचिव दुर्लभ मिश्रा बताते हैं कि धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि रावण को पंचशूल के सुरक्षा कवच को भेदना आता था. जबकि भगवान राम के बस में ये नहीं था. विभीषण ने जब ये बात श्रीराम को बताई तभी वो लंका में प्रवेश कर पाएं. वहीं रावण के द्वारा स्थापित किए गए पंचशूल से ही कोई भी आपदा का असर इस मंदिर पर नहीं होता.
वहीं इसके अलावा अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के पूर्व महासचिव दुर्लभ मिश्रा बताते हैं कि धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि रावण को पंचशूल के सुरक्षा कवच को भेदना आता था. जबकि भगवान राम के बस में ये नहीं था. विभीषण ने जब ये बात श्रीराम को बताई तभी वो लंका में प्रवेश कर पाएं. वहीं रावण के द्वारा स्थापित किए गए पंचशूल से ही कोई भी आपदा का असर इस मंदिर पर नहीं होता.
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मंदिर के पंडितों का कहना है कि, यहां के सभी 22 मंदिरों पर लगे पंचशूलों को साल में एक बार महाशिवरात्रि के दिन नीचे उतार जाता है और फिर एक विशेष पूजा के बाद उन्हें फिर से स्थापित किया जाता है. बता दें कि पंचशूल को नीचे उतारने और वापस स्थापित करने का अधिकार एक परिवार को दिया गया है.
मंदिर के पंडितों का कहना है कि, यहां के सभी 22 मंदिरों पर लगे पंचशूलों को साल में एक बार महाशिवरात्रि के दिन नीचे उतार जाता है और फिर एक विशेष पूजा के बाद उन्हें फिर से स्थापित किया जाता है. बता दें कि पंचशूल को नीचे उतारने और वापस स्थापित करने का अधिकार एक परिवार को दिया गया है.
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देवघर के पंडित दुर्लभ मिश्रा ने पंचशूल और त्रिशूल का अंतर बताते हुए कहा कि, पंचशूल पांच तत्व पृथ्वी, जल, पावक, गगन और समीर से बनता है. जबकि त्रिशूल में तीन तत्व वायु, जल और अग्नि से बनता है.
देवघर के पंडित दुर्लभ मिश्रा ने पंचशूल और त्रिशूल का अंतर बताते हुए कहा कि, पंचशूल पांच तत्व पृथ्वी, जल, पावक, गगन और समीर से बनता है. जबकि त्रिशूल में तीन तत्व वायु, जल और अग्नि से बनता है.
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यहा आने वाले सभी भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. श्रद्धालुओं को कहना है कि यह इकलौता शिव मंदिर है जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान है. बता दें कि हर साल सावन के महीने में यहां मेला लगता है. श्रद्धालु बताते हैं कि यहां मांगी गई सभी दुआएं पूरी होती है.
यहा आने वाले सभी भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. श्रद्धालुओं को कहना है कि यह इकलौता शिव मंदिर है जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान है. बता दें कि हर साल सावन के महीने में यहां मेला लगता है. श्रद्धालु बताते हैं कि यहां मांगी गई सभी दुआएं पूरी होती है.

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