डीके शिवकुमार का मास्टर स्ट्रोक; अब कावेरी नदी पर भी होगी वाराणसी जैसी गंगा आरती, क्या खत्म होगा 150 साल का विवाद
कावेरी नदी को कर्नाटक की लाइफ लाइन माना जाता है. कावेरी के पानी पर वर्चस्व की लड़ाई में कर्नाटक की सरकार जबरदस्त ट्विस्ट ला रही है. कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी का मुद्दा इमोशनल तो है ही, लेकिन कर्नाटक सरकार इसे धार्मिक भी बना रही है.
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View In Appकर्नाटक के डिप्टी सीएम डी के शिवकुमार ने आइडिया निकला है कि क्यों न कावेरी नदी पर आरती शुरू कराई जाए, जैसे वाराणसी में गंगा आरती होती है. डी के शिवकुमार आरती शुरू कर के लाइफ लाइन के साथ आस्था को जोड़कर मजबूत बांध बनना चाहते हैं.
नदी किनारे खड़े-खड़े डीके शिवकुमार ने ऐलान कर दिया कि कावेरी की भी आरती होगी. डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने ऐलान कर दिया की गंगा आरती की स्टडी करने के लिए 20 लोगों की टीम वाराणसी जाएगी. वाराणसी से भी एक टीम बुलाई जाएगी, जिनकी देखरेख में यहां आरती संपन्न होगी. जानकारी के मुताबिक ज्यादा से ज्यादा एक महीने में कावेरी आरती शुरू हो जाएगी.
वाराणसी में गंगा आरती 1991 में शुरू हुई थी. 33 साल से वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर हो रही गंगा आरती की ख्याति पूरे विश्व में फैल चुकी है. वाराणसी में गंगा आरती जब शुरू हुई थी तो इतनी भव्य नहीं थी, लेकिन समय बिता और अब हजारों लाखों की संख्या में लोग देश-विदेश से गंगा आरती देखने के लिए वाराणसी पहुंचते हैं.
ठीक इसी तरह कर्नाटक के डिप्टी सीएम भी यही चाहते हैं कि कावेरी की आरती वाराणसी गंगा आरती की तरह हो. कावेरी की आरती वाला आइडिया एक मास्टर स्ट्रोक की तरह देखा जा रहा है. इस आरती के शुरू होने से कावेरी नदी पर कर्नाटक का एकाधिकार और मजबूत हो जाएगा. डीके शिवकुमार का आईडिया लाइफ लाइन से आस्था, पर्यटन और रोजगार को जोड़ता है.
कावेरी नदी के पानी को लेकर 150 साल से दक्षिण के राज्यों में जंग छिड़ी हुई है. अंग्रेजों से लेकर सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद भी कावेरी की लड़ाई खत्म नहीं हुई. मामला कितना संवेदनशील है, इससे समझिए कि कर्नाटक में कांग्रेस और तमिलनाडु में डीएमके कांग्रेस की सरकार होने के बाद भी तनातनी छिड़ी हुई है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद भी कर्नाटक, तमिलनाडु की मांग पूरी करने के लिए पानी देने को तैयार नहीं है. कर्नाटक के रवैये से तमिलनाडु के एम के स्टालिन बेहद नाराज है, लेकिन वह भी कोर्ट के जरिए ही पानी पर दावा कर सकते हैं. कर्नाटक और तमिलनाडु में सरकारी किसी की भी हो कावेरी नदी के पानी के सवाल पर नहीं झुकना ही सबसे बड़ी मजबूती और राजनीति है.
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