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हरियाणा में JJP और जम्मू-कश्मीर में PDP की राजनीति पर लगेगा ताला? जानें कैसा होगा सियासी भविष्य
Haryana-J&K Result: हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की जेजेपी खाता भी नहीं खोल पाई और महबूबा मुफ्ती की जीडीपी तीन सीटों में ही सिमट गई. सवाल ये है कि इन दोनों ही पार्टियों का अब क्या भविष्य होगा?

जेजेपी और पीडीपी दोनों ही पार्टियां अपने-अपने राज्यों में वजूद खोती नजर आ रही हैं. हरियाणा की जेजपी और जम्मू-कश्मीर की पीडीपी को इस चुनाव में जनता ने नकार दिया.
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हरियाणा और जम्मू कश्मीर चुनाव में बहुत कुछ दिलचस्प देखने को मिला. जहां एक ओर हरियाणा में बीजेपी ने कांग्रेस के सपनों पर पानी फेर दिया वहीं दूसरी ओर नेशनल कॉन्फ्रेंस भी बहुमत से सिर्फ चार सीटों से चूक गई. हालांकि, उन्होंने गठबंधन की सरकार बना ली है.
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हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की जेजेपी खाता भी नहीं खोल पाई और महबूबा मुफ्ती की पीडीपी तीन सीटों में ही सिमट गई. जेजेपी और पीडीपी, यह दोनों ही पार्टियां भाजपा के साथ गठबंधन में रही हैं और दोनों के साथ सरकार भी चलाई जा चुकी है, लेकिन चुनाव में मिली करारी हार के कारण दोनों पार्टियों की राजनीति खत्म होती हुई दिख रही है.
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दुष्यंत चौटाला तो खुद अपनी सीट उचाना कला पर जमानत तक नहीं बचा पाए तो वहीं महबूबा मुफ्ती ने अपनी पारंपरिक सीट से अपनी बेटी इल्तिजा मुफ्ती को चुनाव लड़ाया, लेकिन वह भी हार गई, लेकिन सवाल यह है कि इन दोनों पार्टियों का प्रदर्शन चुनाव के दौरान इतना खराब क्यों रहा और आगे इनका क्या भविष्य है.
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पीडीपी ने पिछले चुनाव में 28 सीटें जीती थी और भाजपा के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई थी. जो इस बार तीन सीटों पर ही सिमट कर रह गई. पिछली सरकार में पीडीपी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था इसलिए उनको लेकर जनता में नाराजगी थी. नाराजगी इस कदर देखने को मिली कि पीडीपी अपनी पैतृक सीट पर 9000 वोटों से हार गई.
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हरियाणा में दुष्यंत चौटाला ने चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया. यह गठबंधन काम तो नहीं आया उल्टा दुष्यंत चौटाला दो-दो निर्दलीय उम्मीदवारों से पीछे रह गए. चुनाव से पहले यह माना जा रहा था कि कहीं मामला फंसता है तो जेजेपी किंगमेकर बन सकती है, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.
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पीडीपी की इस हार को पार्टी के राजनीतिक भविष्य पर संकट के रूप में बड़ा सवालिया निशान माना जा रहा है. अगले 5 सालों में पता चलेगा कि यह दोनों पार्टियों कुछ बेहतर कर पाती है या नहीं.
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इस हार से दोनों ही पार्टियों को यह सीख मिली होगी कि जहां जनता नाराज है वहां पर कोई भी, कितना ही बड़ा नेता क्यों ना हो वह जीत नहीं सकता. फिलहाल दोनों ही पार्टियों को अपनी जड़े मजबूत करनी होंगी. 5 सालों तक लगातार राजनीतिक गतिविधियां तेज करनी होगी तभी कुछ जनाधार मजबूत हो सकता है
Published at : 10 Oct 2024 04:10 PM (IST)
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