यूपी उपचुनाव में भिड़ेंगे दलित राजनीति के दो सूरमा... चंद्रशेखर बनाम मायावती की जंग में कौन मारेगा बाजी?
बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद से किनारा कर लिया है. लोकसभा चुनाव में चंद्रशेखर समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव के पास भी गए थे, लेकिन वहां बात न बनने पर चंद्रशेखर अकेले चुनाव में उतरे और मजबूत जीत हासिल की.
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View In Appअब चंद्रशेखर आजाद ने किसी भी पार्टी से गठबंधन करने से साफ इनकार कर दिया है. उन्होंने कहा कि वह बिना किसी गठबंधन के सहारे ही उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ेंगे. क्योंकि जनता का भरोसा सभी पार्टियों से उठ चुका है. चंद्रशेखर का कहना है कि उनकी पार्टी नए लोगों को मौका देगी.
लोकसभा चुनाव में नगीना सीट जीतने के बाद ही चंद्रशेखर आजाद ने 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव में उतरने का ऐलान कर दिया था. जिन 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनमें से चार विधानसभा सीट खैर, मीरापुर, कुरंदकी की और गाजियाबाद पर आजाद समाज पार्टी ने प्रभारी की नियुक्ति भी कर दी है.
मायावती हो चाहे चंद्रशेखर आजाद दोनों ने ही किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन करने से इनकार कर दिया है. इस उप चुनाव में मिल्कीपुर विधानसभा सीट में दिलचस्प लड़ाई देखने को मिल सकती है. मिल्कीपुर समाजवादी पार्टी की खास सीट है क्योंकि यहां के विधायक अवधेश प्रसाद अब सांसद बन चुके हैं. ऐसे में मायावती और चंद्रशेखर आजाद इसी रणनीति पर काम कर रहे हैं कि कैसे समाजवादी पार्टी से मिल्कीपुर की सीट को छीना जाए.
कड़े मुकाबले तो उन सीटों पर भी देखने को मिल सकते हैं, जहां पर मुस्लिम आबादी ज्यादा है. लोकसभा चुनाव में बसपा के प्रदर्शन के बाद मायावती फैसला ले चुकी हैं कि आगे से मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने के बारे में नए सिरे से सोचा जाएगा. वहीं भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद न केवल दलितों बल्कि मुसलमानों के लिए भी आवाज उठा रहे हैं.
यह तो साफ दिख रहा है कि जितनी तेजी से चंद्रशेखर आजाद उत्तर प्रदेश में ऊपर आ रहे हैं. उतनी ही स्पीड से मायावती का वोट बैंक घटता जा रहा है. इसका उदाहरण तो साफ-साफ नगीना सीट है. लोकसभा चुनाव में नगीना सीट पर चंद्रशेखर आजाद को 51.19 वोट मिले थे और बसपा के सुरेंद्र पाल को 1.33 फीसदी. अंतर सबके सामने है. मायावती का जाटव वोटर भी भाजपा की तरफ न जाते हुए अखिलेश यादव की ओक चला गया है.
यूपी में दलित वोटर की हिस्सेदारी 21.1 फीसदी है, इसमें से जाटव दलित 11.7 फीसदी हैं. मायावती और चंद्रशेखर आजाद दोनों ही इस समुदाय से आते हैं. पहले मायावती को पूरे दलित समाज का सपोर्ट था, लेकिन गुजरते वक्त के साथ उनके पास सिर्फ जाटव वोटर ही रह गए थे, लेकिन अब तो चंद्रशेखर आजाद जाटव वोटर के भरोसे ही चुनाव में ताल ठोक रहे हैं और कोशिश तो यह है कि अब पूरा दलित समाज ही चंद्रशेखर आजाद को सपोर्ट करे.
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