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यूपी उपचुनाव में NDA और INDIA के लिए बड़ा खतरा बनेंगी मायावती? BSP के लिए जीत से ज्यादा जरूरी है ये बात
UP BY Elections: यूपी उपचुनाव की तारीखों का अब तक ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन सियासी पारा चढ़ने लगा है. जहां सपा और भाजपा की सीधी लड़ाई देखी जा रही थी. वहीं एक और पार्टी ने सबका गेम बिगाड़ दिया है.

UP BY Elections: यूपी उपचुनाव की तारीखों का अब तक ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन सियासी पारा चढ़ने लगा है. जहां सपा और भाजपा की सीधी लड़ाई देखी जा रही थी. वहीं एक और पार्टी ने सबका गेम बिगाड़ दिया है.
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उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. वैसे तो अब तक चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन सियासी पारा चढ़ने लगा है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद विधानसभाओं का दौरा कर रहे हैं तो वहीं समाजवादी पार्टी की भी तैयारी कम नहीं है, लेकिन एक और पार्टी है, जो मैदान में तारीखों के ऐलान से पहले ही एक्टिव हो चुकी है.
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लोकसभा चुनाव के बाद यह माना जा रहा था कि उत्तर प्रदेश के 10 विधानसभा सीटों पर भाजपा और सपा का कड़ा मुकाबला होगा, लेकिन बसपा की एंट्री ने इसे त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है. बसपा ने कानपुर के सीसामऊ और अयोध्या के मिलकपुर समेत अन्य कई सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान भी कर दिया है. देखा जाता था कि मायावती उपचुनाव से दूरी बनती थी, लेकिन इस बार वह उपचुनाव के नतीजे को कितना बदल पाएंगी आइए समझते हैं.
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जिन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं उनमें से कोई भी सीट बसपा के पास नहीं थी. इसलिए पार्टी के पास गंवाने जैसा कुछ भी नहीं है. बसपा की ऐसी कोई स्थिति नहीं है की उसके लिए ये सीटें प्रतिष्ठा का सवाल है, लेकिन मायावती के लिए यह जीत की नहीं बल्कि वजूद की लड़ाई है.
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उत्तर प्रदेश में बसपा पर बीजेपी की भी टीम होने का टैग लगा हुआ है. लोकसभा चुनाव में बसपा शून्य पर सिमट गई थी और वोट शेयर भी सिंगल डिजिट में आ गया था. इसलिए पार्टी ने चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही अपने उम्मीदवार मैदान में उतारने का ऐलान कर दिया है और उसकी कोशिश यह भी है कि पार्टी के पीछे से बीजेपी की बी टीम का टैग हटे.
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राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उपचुनाव में बसपा भाजपा और विपक्षी इंडी गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकती है क्योंकि मायावती की पार्टी की भूमिका ठोको पॉलिटिक्स वाली हो सकती है. इससे न केवल बीजेपी बल्कि सपा को भी सीटों का नुकसान हो सकता है. बसपा के वोट जाटव तक सीमित हो गए थे, लेकिन अपने वोट बेस को वह दलित मुस्लिम के पुराने शेप में लाने के लिए कभी सपा तो कभी बीजेपी पर निशाना साध रही है.
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क्योंकि उपचुनाव में बसपा एक्टिव हो चुकी है इसलिए अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले में से डी यानी कि दलित वोटों का नुकसान सपा को हो सकता है. जिस हिसाब से बसपा दलित और मुस्लिम वोटरों को साध रही है इससे भाजपा और सपा दोनों ही दलों का जातीय समीकरण डामाडोल हो सकता है. लोकसभा चुनाव में बसपा के सोशल इंजीनियरिंग की वजह से एनडीए और इंडी गठबंधन को कई सीटों पर नुकसान हुआ था.
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चुनाव में बसपा के आ जाने से सपा-भाजपा की सीधी लड़ाई त्रिकोणीय बन गई है. इन चुनाव में किस पार्टी को किस सीट पर जीत मिलती है यह तो इस बार बसपा के परफॉर्मेंस पर ही डिपेंड करेगा. बसपा भाजपा और सपा में से किस सीट पर किसे डेंट करती है, ये उस सीट का नतीजा तय करने में भी एक डिसाइडिंग फैक्टर साबित हो सकता है.
Published at : 29 Sep 2024 11:39 AM (IST)
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प्रशांत कुमार मिश्र, राजनीतिक विश्लेषक
Opinion