इस संगीतकार ने द्वितीय विश्व युद्ध में लड़ी थी जंग, फिर अपने ही बर्थडे पर दान कर दी जिंदगी भर की कमाई
18 फरवरी 1927 के दिन जन्मे खय्याम का पूरा नाम मोहम्मद जहूर हाशमी है. वह बचपन से ही अभिनेता बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.
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View In Appबताया जाता है कि जब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ा तो सेना में भर्ती शुरू हो गईं. ऐसे में खय्याम ने भी सेना जॉइन कर ली और उस जंग में हिस्सा भी लिया. हालांकि, दो साल बाद ही उन्होंने आर्मी छोड़ दी.
इसके बाद खय्याम अभिनेता बनने का अपना सपना पूरा करने के लिए मुंबई चले गए. बतौर एक्टर उन्होंने 1948 में एसडी नारंग की फिल्म 'ये है जिंदगी' में काम किया.
खय्याम ने पहली बार फिल्म 'हीर रांझा' में संगीत दिया, लेकिन मोहम्मद रफी के गीत 'अकेले में वह घबराते तो होंगे' से उन्हें पहचान मिली. वहीं, 'शोला और शबनम' ने उन्हें संगीतकार के रूप में स्थापित कर दिया.
खय्याम कहते थे कि 'पाकीजा' की सफलता के बाद 'उमराव जान' का संगीत बनाते समय उन्हें काफी डर लग रहा था. दरअसल, दोनों फिल्मों की पृष्ठभूमि एक जैसी थी. खय्याम मानते थे कि रेखा ने उनके संगीत में जान फूंक दी थी.
तीन बार फिल्मफेयर से सम्मानित खय्याम जितना बेहतरीन संगीत बनाते थे, उतने ही शानदार इंसान भी थे. अपने 90वें जन्मदिन यानी साल 2016 के दौरान उन्होंने अपनी 10 करोड़ रुपये की संपत्ति दान कर दी थी.
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