Pushpa 2 ने अपनाए ये 5 पुराने तरीके और बन गई गेमचेंजर, बॉलीवुड को क्या सीखना चाहिए साउथ से?
देश में कई अलग-अलग फिल्म इंडस्ट्रीज मिलकर इंडियन फिल्म इंडस्ट्री को बनाती हैं. अगर इंडियन फिल्म इंडस्ट्री को पेड़ माना जाए तो उसकी अलग-अलग शाखाएं हैं बाकी की फिल्म इंडस्ट्री. तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ज्यादा पॉपुलर है. अब अगर इनमें भी कौन सी शाखा सबसे ज्यादा बड़ी और मजबूत है, ये देखेंगे तो हम पाते हैं कि जब से इंडिया में फिल्में बननी शुरू हुईं तब से ही बॉलीवुड सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री बनकर सामने आ चुका था.
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View In Appसबसे बड़े स्टार्स, सबसे बड़ी कहानियां और सबसे ज्यादा रुपया, वर्ल्डवाइड सबसे बड़ी पहुंच..इन सबको अगर मानक मानें तो इस मामले में बॉलीवुड ही खास रहा है. लेकिन पुष्पा 2 ने बॉलीवुड को भी हिलाकर रख दिया है. फिल्म ने जितनी कमाई की है, उतनी कमाई आज तक कोई भी बॉलीवुड नहीं कर पाई. तो चलिए इस पर नजर डालते हैं कि आखिर वो वजहें क्या रहीं, जिन्हें पुष्पा 2 को इतनी बड़ी फिल्म बना दिया. और तेलुगु सिनेमा से बॉलीवुड को क्या सीखना चाहिए.
मास अपील: फिल्म की खास बात ये है कि फिल्म ने मास को अपने साथ जोड़ा है. आम दर्शक जो अपनी जिंदगी की उलझनों में फंसे हुए हैं वो कुछ देर का एंटरटेनमेंट चाहते हैं न कि फिल्म देखने में बिना मतलब का दिमाग लगाना चाहते हैं. फिल्म ने वो सब कुछ दे दिया है, जिस आम दर्शक खुद से जोड़कर देखता है. फिल्म में एक्शन, प्यार, रिश्ते सब कुछ हैं, जो बॉलीवुड फिल्मों में एक साथ देखने को नहीं मिलता. फिल्म में हीरो को अपनी भतीजी को गुंडों से बचाते दिखाने वाला सीन, आप सोचिए जरा पिछले कितने दशकों से बॉलीवुड ने दिखाया ही नहीं. नई जनरेशन के लोगों के लिए ये नया था और पुरानी जनरेशन के लिए नॉस्टैल्जिया वाला. ये वजह रही कि फिल्म से दर्शक कनेक्ट कर पाए.
लार्जर दैन लाइफ हीरो: बॉलीवुड में नायक आम इंसान होता है और वो वास्तविकता के काफी करीब भी होता है. इसमें कुछ गलत भी नहीं है. लेकिन साउथ में नायक वैसा ही होता है जैसा अमिताभ बच्चन के जमाने में शुरू हुआ था और 90s तक आते-आते चरम पर जा चुका था. सनी देओल, सुनील शेट्टी और संजय दत्त जैसे सुपरहिट स्टार्स की पूरी एक लीग खड़ी हो गई थी. इन्होंने बॉलीवुड को एक के बाद एक बड़ी फिल्में दीं, लेकिन फिर बॉलीवुड ने इन्हें भुला दिया और ये वजह रही कि बॉलीवुड के पास ऐसी कोई ब्लॉकबस्टर नहीं आ पाई, जैसी तेलुगु में आ गई.
हीरो को ब्रैंड बना देना: इस फिल्म का हीरो पुष्पा न तो महंगे कपड़े पहनता है और न ही लग्जीरियस लाइफ जीता है. उसका चलने-फिरने का ढंग भी बिल्कुल खास नहीं है. इसके बावजूद उसे ऐसे पेश किया गया मानो वही वो तरीका है जो एक सुपरस्टार को अपनाना चाहिए. आम दर्शक उसे फॉलो करके रील और वीडियो बनाने लगे. वो खुद को पुष्पा से जोड़ने लगे. बॉलीवुड के पास ऐसा कोई हीरो सालों से नहीं आया जिससे आम दर्शक खुद को जोड़ पाए.
फिल्म के प्रमोशन का तरीका: ये पहली तेलुगु फिल्म और साउथ इंडियन फिल्म है जिसका बिहार के पटना में ट्रेलर रिलीज किया गया था. मेकर्स को पता था कि फिल्म साउथ में चलेगी ही, लेकिन हिंदी दर्शकों के बीच पहुंचना जरूरी है. ये तरीका काम आया और पहली बार कोई साउथ इंडियन फिल्म हिंदी में 600 करोड़ के ऊपर कमाई वाली फिल्म बन गई. ऐसा तो कोई बॉलीवुड फिल्म भी नहीं कर पाई. फिल्म की कमाई का 60 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा सिर्फ हिंदी दर्शकों से आया. बॉलीवुड के पास ये प्लस पॉइंट पहले से है कि उनकी भाषा की फिल्म को समझने वाले दर्शकों की संख्या साउथ सिनेमा के दर्शकों की संख्या से ज्यादा है. लेकिन वो इसका फायदा अभी तक नहीं उठा पाए.
दिलचस्प कहानी की जरूरत: ऐसा नहीं है कि बॉलीवुड के पास दिलचस्प कहानियां नहीं हैं, ऊपर बताई गई किसी एक वजह से फिल्म फिर भी इतना कमाल नहीं कर पातीं. पुष्पा 2 में जो कुछ भी दिखाया गया वो पुराना होने के बावजूद भी नया था. फिल्म में एक्शन से लेकर कहानी पेश करने का तरीका पिछले दो दशकों से आ रही साउथ फिल्मों की पुनरावृत्ति ही लग रही थी. इसके बावजूद फिल्म की कहानी में नयापन दिखा. एक मजदूर, चंदन की तस्करी, विदेशों तक फैले जाल और उसमें से पनप के सामने आने वाला हीरो, ये कहानी दर्शकों को बढ़िया लगी. कहानी में ट्विस्ट एंड टर्न्स इतने ज्यादा हैं कि कोई मतलब न निकलने के बावजूद एंटरटेन कर जाते हैं.
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