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इन जानवरों में होता है सिक्स्थ सेंस, शिकार करने में मिलती है मदद

जिस तरह से इंसानों में सिक्स्थ सेंस होता है, वैसे ही जानवरों में भी सिक्स्थ सेंस होता है. अक्सर जानवर इस क्षमता का इस्तेमाल शिकार करने के लिए करते हैं.

जिस तरह से इंसानों में सिक्स्थ सेंस होता है, वैसे ही जानवरों में भी सिक्स्थ सेंस होता है. अक्सर जानवर इस क्षमता का इस्तेमाल शिकार करने के लिए करते हैं.

जानवर

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शार्क मछली अक्सर विद्युत क्षेत्रों की पहचान कर सकते हैं. उनके इस क्षमता को इलेक्ट्रोरिसेप्शन कहते हैं. अपनी इस क्षमता के जरिए शार्क दूर से ही अपने शिकार की पहचान कर लेते हैं. जैसे जब भी कोई मछली या जानवर हिलता है, तो उसकी मांसपेशियों के सिकुड़ने से विद्युत आवेश पैदा होता है. जिससे शार्क अपने शिकार को पहचान लेते हैं.
शार्क मछली अक्सर विद्युत क्षेत्रों की पहचान कर सकते हैं. उनके इस क्षमता को इलेक्ट्रोरिसेप्शन कहते हैं. अपनी इस क्षमता के जरिए शार्क दूर से ही अपने शिकार की पहचान कर लेते हैं. जैसे जब भी कोई मछली या जानवर हिलता है, तो उसकी मांसपेशियों के सिकुड़ने से विद्युत आवेश पैदा होता है. जिससे शार्क अपने शिकार को पहचान लेते हैं.
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बता दें कि प्लैटीपस भी ऐसा जानवर है, जिसके अंदर शार्क की तरह इलेक्ट्रोरिसेप्शन की क्षमता होती है. ये दलदल और पानी में रहने वाले शिकार को आसानी से पहचान कर लेते हैं. जानकारी के मुताबिक प्लैटिपस की चोंच में 40 हजार इलेक्ट्रोरिसेप्टर्स होते हैं, जिससे वे हवा में कूदते हुए भी शिकार की पहचान कर लेते हैं.
बता दें कि प्लैटीपस भी ऐसा जानवर है, जिसके अंदर शार्क की तरह इलेक्ट्रोरिसेप्शन की क्षमता होती है. ये दलदल और पानी में रहने वाले शिकार को आसानी से पहचान कर लेते हैं. जानकारी के मुताबिक प्लैटिपस की चोंच में 40 हजार इलेक्ट्रोरिसेप्टर्स होते हैं, जिससे वे हवा में कूदते हुए भी शिकार की पहचान कर लेते हैं.
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चमगादड़ों में भी सिक्स्थ सेंस होता है. वे बहुत तेज गति से रात के अंधेरे में उड़ते हैं और जमीन पर छोटे से छोटे शिकार को पहचान लेते हैं. बता दें इसके लिए वे इकोलोकेशन का उपयोग करते हैं, जो ध्वनि तरंगों के जरिए शिकार की स्थिति का सटीक अनुमान लगा पाते हैं. वहीं चमगादड़ के गले से खास अल्ट्रासाउंड तरंग निकलती है, जो उनके नाक और मुंह से निकलती हैं. ये तरंग चीजों प्रतिबिम्बित होती हैं, जिनके लौटने पर चमगादड़ दूरी का अनुमान लगा पाते हैं.
चमगादड़ों में भी सिक्स्थ सेंस होता है. वे बहुत तेज गति से रात के अंधेरे में उड़ते हैं और जमीन पर छोटे से छोटे शिकार को पहचान लेते हैं. बता दें इसके लिए वे इकोलोकेशन का उपयोग करते हैं, जो ध्वनि तरंगों के जरिए शिकार की स्थिति का सटीक अनुमान लगा पाते हैं. वहीं चमगादड़ के गले से खास अल्ट्रासाउंड तरंग निकलती है, जो उनके नाक और मुंह से निकलती हैं. ये तरंग चीजों प्रतिबिम्बित होती हैं, जिनके लौटने पर चमगादड़ दूरी का अनुमान लगा पाते हैं.
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डॉलफिन भी इकोलोकेशन का उपयोग करके अपने आसापास की चीजों और अपने शिकार की स्थिति का पता लगाती हैं. क्योंकि पानी में इकोलोकेशन की तकनीक ज्यादा कारगर तरह से काम करती है. इसका डॉलफिन को फायदा मिलता है.
डॉलफिन भी इकोलोकेशन का उपयोग करके अपने आसापास की चीजों और अपने शिकार की स्थिति का पता लगाती हैं. क्योंकि पानी में इकोलोकेशन की तकनीक ज्यादा कारगर तरह से काम करती है. इसका डॉलफिन को फायदा मिलता है.
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पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड का उपयोग बहुत से जानवर और पक्षी करते हैं. इसी के सहारे वे मीलों का सफल तय करते हैं और कभी भटकते भी नहीं है. बता दें कि इस खास क्षमता को मैग्नेटोरिसेप्शन कहते हैं. ये क्षमता कबूतरों में बहुत कमाल की होती है. इसी वजह से कबूतरों को पहले संदेशवाहकों के तौर पर उपयोग में लाया जाता था.
पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड का उपयोग बहुत से जानवर और पक्षी करते हैं. इसी के सहारे वे मीलों का सफल तय करते हैं और कभी भटकते भी नहीं है. बता दें कि इस खास क्षमता को मैग्नेटोरिसेप्शन कहते हैं. ये क्षमता कबूतरों में बहुत कमाल की होती है. इसी वजह से कबूतरों को पहले संदेशवाहकों के तौर पर उपयोग में लाया जाता था.
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समुद्री कछुओं में एक खास काबिलयित होती है. कछुआ जियोमैग्नेटिक क्षमता के जरिए ये पता कर सकती हैं कि वे अपने अंडों से कितनी दूरी पर किस दिशा में हैं. इतना ही नहीं वे चुंबकीय तरंगों के जरिए अपनी भौगोलिक स्थिति को जान सकते हैं. इसके लिए उनके सिर की पीनियल ग्रंथि काम करती है.
समुद्री कछुओं में एक खास काबिलयित होती है. कछुआ जियोमैग्नेटिक क्षमता के जरिए ये पता कर सकती हैं कि वे अपने अंडों से कितनी दूरी पर किस दिशा में हैं. इतना ही नहीं वे चुंबकीय तरंगों के जरिए अपनी भौगोलिक स्थिति को जान सकते हैं. इसके लिए उनके सिर की पीनियल ग्रंथि काम करती है.
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मकड़ियों में अंदाजा लगाने की खास क्षमता होती है. वे आसपास की चीजों और उनकी गतिविधियों का पता लगा सकते हैं. इसके लिए वे अपने खास अंग स्लिट सेसिला का उपयोग मैकेनोरिसेप्टर्स के रूप में करते हैं.
मकड़ियों में अंदाजा लगाने की खास क्षमता होती है. वे आसपास की चीजों और उनकी गतिविधियों का पता लगा सकते हैं. इसके लिए वे अपने खास अंग स्लिट सेसिला का उपयोग मैकेनोरिसेप्टर्स के रूप में करते हैं.

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