ग्लेशियर में मौजूद है काली बर्फ, आखिर क्या होता है इससे नुकसान
वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में बर्फ पिघलने की रफ्तार तीन दशक पहले के मुकाबले तीन गुना हो गई है. इसकी वजह से समुद्र का जलस्तर दोगुना हैं. बता दें कि आर्कटिक महासागर में ग्रीनलैंड काफी बड़ा भूभाग और दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप है. वहीं काली बर्फ से इन ग्लेशियर को भी नुकसान पहुंच रहा है.
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View In Appएक अध्ययन के मुताबिक, ग्रीनलैंड 1000 साल में पहली बार सबसे ज्यादा गरम होने लगा है. साल 2019 के दौरान दुनिया के 40 फीसदी समुद्रों के जलस्तर में बढ़ोतरी के लिए आर्कटिक का पिघलना ही जिम्मेदार था. ग्रीनलैंड का पीटरमान ग्लेशियर भी अब दरक रहा है. वैज्ञानिक चिंतित हैं कि महासागर के सबसे नजदीक के इस ग्लेशियर के सिकुड़ने से बहुत बड़े क्षेत्र में फैली बर्फ लगातार गर्म होते महासागर के पानी में मिल जाएगी.
रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियरों में सफेद बर्फ के साथ तेजी से आकार बढ़ा रही काली बर्फ भी ग्लेशियरों की तेज रफ्तार से सिकुड़ने के लिए जिम्मेदार है. बता दें कि काली बर्फ सफेद बर्फ के मुकाबले ज्यादा तेजी से पिघल रही है. इसलिए ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहे हैं. अब सवाल ये उठता है कि बर्फ के सफेद रेगिस्तानों में ये काली बर्फ बन कैसे रही है. रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण जैसे-जैसे ग्लेशियर पिघल रहे हैं, वैसे-वैसे इन इलाकों में चट्टानें और धूलमिट्टी से भरे मैदान भी उभर रहे हैं.
चट्टानों और धूल मिट्टी के कारण सफेद बर्फ जो हैं, वो काले बर्फ में तब्दील हो रहे हैं. ‘द गार्जियन’ की रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिकों का कहना है कि अब हिमालय से अंटार्कटिका तक ब्लैक आइस बढ़ रही है. वहीं ज्यादातर जगहों पर मैदानों से उठने वाली धूल, जंगलों की आग से उठे धुएं, उद्योगों व डीजल इंजनों से निकलने वाले ब्लैक कार्बन के बहुत ही छोटे कण भी हजारों मील का सफर तय करके ग्लशियरों पर जाकर सफेद बर्फ को काली बर्फ में बदल रहे हैं.
वैज्ञानिक के मुताबिक कोई भी काला पदार्थ सफेद के मुकाबले सूरज से ज्यादा ऊर्जा सोखता है. वहीं पत्थर और चट्टानें ऊंची जगहों पर 40 डिग्री सेल्सियस तापमान के बराबर गर्म हो सकती हैं. वहीं अंटार्कटिका में 1970 के दशक से समुद्र की बर्फ हर 10 साल में एक फीसदी बढ़ जाती थी. हालांकि वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले साल ये अब तक के सबसे निचले स्तर पर था. वैज्ञानिकों का कहना है कि 1979 से 2021 के बीच आर्कटिक बाकी दुनिया के मुकाबले चार गुना तेजी से गरम हुआ है. इसीलिए दुनिया की एक तिहाई बर्फ का पिघलना ग्रीनलैंड में हो रहा है.
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